- बिहार में RTI के तहत सामने आई जानकारी में कई वर्तमान मंत्री और सांसद वेतन के साथ पेंशन भी प्राप्त कर रहे हैं
- कुल आठ नेताओं के नाम आरटीआई सूची में शामिल हैं जिनमें बिहार सरकार और केंद्र सरकार के मंत्री भी शामिल हैं
- विपक्ष ने इस मामले को डबल बेनिफिट और नैतिकता के सवाल के तौर पर उठाकर सरकार पर आरोप लगाए हैं
बिहार की राजनीति इन दिनों एक नए विवाद में घिर गई है. एक आरटीआई (RTI) से सामने आई जानकारी ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का बड़ा मौका दे दिया है. आरटीआई में यह दावा किया गया है कि बिहार के कई ऐसे नेता, जो वर्तमान में राज्य सरकार या केंद्र सरकार में मंत्री हैं, वेतन के साथ-साथ पेंशन भी ले रहे हैं. यही नहीं इस सूची में कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं जो वर्तमान में सांसद हैं, लेकिन फिर भी बिहार सरकार से पूर्व सदस्य के रूप में पेंशन ले रहे हैं. 2 दिसंबर 2025 को सामने आई इस आरटीआई सूची में कुल आठ नेताओं के नाम शामिल हैं. सबसे ज्यादा चर्चा बिहार सरकार के मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव और केंद्र में मंत्री सतीश चंद्र दुबे के नाम को लेकर है. यह मामला सामने आते ही बिहार में सियासी तापमान अचानक बढ़ गया है.
नतीजे आए कुछ दिन हुए, नया विवाद शुरू
बिहार में हाल ही में एनडीए गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार को 202 सीटों पर विजय मिली है, जबकि आरजेडी सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई. सरकार बनते ही यह आरटीआई लिस्ट सामने आने से विपक्ष को नए सिरे से हमलावर होने का मौका मिल गया है. आरजेडी और अन्य विपक्षी दल इसे दोहरी कमाई और नैतिकता के सवाल से जोड़कर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं.
RTI में शामिल नेताओं के नाम और उनकी पेंशन का ब्योरा
- सतीश चंद्र दूबे – पेंशन: 59,000 (शुरू: 26.05.2019)
- बिजेंद्र प्रसाद यादव – पेंशन: 10,000 (शुरू: 24.05.2005)
- उपेंद्र कुशवाहा – पेंशन: 47,000 (शुरू: 07.03.2005)
- देवेश चंद्र ठाकुर – पेंशन: 86,000 (शुरू: 07.05.2020)
- ललन कुमार सर्राफ – पेंशन: 50,000 (शुरू: 24.05.2020)
- संजय सिंह – पेंशन: 68,000 (शुरू: 07.05.2018)
- नितीश मिश्रा – पेंशन: 43,000 (शुरू: 22.09.2015)
इन सभी नामों के सामने पेंशन राशि और उसकी शुरुआत की तारीख दर्ज है. आरटीआई में उपलब्ध यही कच्चा डेटा मीडिया में वायरल हो गया और फिर विवाद शुरू हो गया.
विपक्ष का सवाल- क्या नेता डबल बेनिफिट ले रहे हैं?
विपक्ष का आरोप है कि मंत्री, सांसद या विधायक रहते हुए पेंशन लेना नैतिकता के खिलाफ है. वे दावा कर रहे हैं कि सरकार के मंत्री और सांसद एक तरफ वेतन ले रहे हैं और दूसरी तरफ पुराना पेंशन भी जारी है. विपक्ष इसके जरिए सरकार पर लक्जरी पॉलिटिक्स के आरोप लगा रहा है.लेकिन जैसे-जैसे मुद्दा बढ़ा, सूची में शामिल नेताओं ने अपने-अपने स्पष्टीकरण भी देने शुरू कर दिए.उपेंद्र कुशवाहा ने सबसे पहले दी सफाई खबरें बेबुनियाद, अधूरी जानकारी फैलाई गई. आरटीआई सूची में नाम आने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर विस्तृत स्पष्टीकरण दिया. उन्होंने कहा कि मीडिया में जो खबरें चलाई जा रही हैं, वे तथ्यहीन और अधूरी हैं.
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि सूची में सिर्फ पेंशन शुरू होने की तारीख लिखी गई है. इसमें यह नहीं बताया गया कि कब पेंशन ली गई और कब नहीं. जब वे किसी सदन के सदस्य रहते हैं, उस दौरान उन्होंने कभी पेंशन नहीं ली. वर्तमान में वे राज्यसभा सदस्य हैं और राज्यसभा से ही वेतन लेते हैं. विधानसभा/विधान परिषद से उन्हें अभी कोई पेंशन नहीं मिल रही है. उन्होंने साफ लिखा कि कानूनन कोई भी व्यक्ति एक ही समय में वेतन और पेंशन दोनों नहीं ले सकता और वे इस नियम का पालन करते हैं.
पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा का नाम भी सूची में था. उन्होंने भी सोशल मीडिया X पर विस्तार से जवाब दिया. उनका कहना है कि उन्हें पूर्व विधायक के रूप में केवल 22 सितंबर 2015 से 8 नवंबर 2015 सिर्फ डेढ़ महीने तक पेंशन मिली. उसके बाद पेंशन 2015 में ही बंद कर दी गई. 8 दिसंबर 2025 को कोषागार अधिकारी से मिली रिपोर्ट में भी यह साफ दर्ज है. फिर भी अधूरी जानकारी के आधार पर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की गई है. कोई भी जनप्रतिनिधि एक साथ वेतन और पेंशन नहीं ले सकता, इसलिए यह दावा निराधार है.
नीतीश मिश्रा ने अपने द्वारा प्राप्त आधिकारिक पत्र भी सार्वजनिक किए ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके. अब सवाल ये है कि इसमें गलती किसकी है. RTI देने वाले विभाग की, या खबर समझने वालों की? इस विवाद का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि RTI में सिर्फ पेंशन कब शुरू हुई यह लिखा था, लेकिन पेंशन जारी है या बंद? या कौन कितनी पेंशन वास्तविक रूप से आज ले रहा है? यह जानकारी उसमें नहीं थी. यानी डेटा अधूरा था, जिससे भ्रम पैदा हुआ.
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि वर्तमान मंत्री पेंशन ले रहे हैं, लेकिन संबंधित नेताओं का कहना है कि कुछ की पेंशन पहले ही बंद हो चुकी है. कुछ ने सिर्फ गैर-सदस्य अवधि में ही पेंशन ली और अभी कोई भी डबल बेनिफिट नहीं ले रहा. अब यह मामला RTI की गलत व्याख्या से उपजे विवाद जैसा दिख रहा है. इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. वे इसे पारदर्शिता की कमी और जनता के पैसों का गलत उपयोग बताकर मुद्दा बना रहे हैं.
दूसरी ओर, नेता एक-एक कर सोशल मीडिया पर अपने दस्तावेज सार्वजनिक कर रहे हैं कि पेंशन ले रहे हैं या नहीं, पेंशन कब बंद हुई, किन अवधियों में वे सदस्य थे.सरकार फिलहाल बचाव की मुद्रा में है, जबकि प्रशासनिक स्तर पर यह सवाल उठ रहा है कि क्यों अधूरी RTI जानकारी जारी की गई.
राजनीति गरम, तथ्य आधे पूरा सच अभी सामने आना बाकी
RTI से सामने आया मामला बिहार की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन गया है. लेकिन हकीकत यही है कि जारी डेटा अधूरा था उसके आधार पर गलतफहमी पैदा हुई, नेताओं ने अपना पक्ष दस्तावेजों के साथ रखा है, अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि किसकी पेंशन वास्तव में चल रही है.फिलहाल यह मामला सूचना की अधूरी व्याख्या कैसे विवाद खड़ा करती है. विवाद जारी है, सियासत तेज है, और पूरा सच सामने आने में अभी थोड़ा समय लग सकता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं