- सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय देना बीजेपी और नीतीश कुमार की अगली राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
- बिहार की जातीय जनसंख्या और पंचफोरना समीकरण के कारण सम्राट चौधरी को आगे बढ़ाकर नया राजनीतिक चेहरा बनाया गया है
- जदयू के वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव को पांच बड़े विभाग सौंपे गए हैं, इससे भी विपक्ष में बेचैनी है.
बिहार में 2005 से सत्ता संभाल रहे नीतीश कुमार 2025 में भी मुख्यमंत्री बन गए. मगर इस बार की बिहार सरकार में बहुत कुछ बदल चुका है. पहली बार नीतीश कुमार ने गृह विभाग की जिम्मेदारी गठबंधन के किसी सहयोगी को सौंपी है. आरजेडी तो दूर नीतीश कुमार ने बीजेपी को भी कभी गृह विभाग ने नहीं दिया. मगर इस बार नीतीश कुमार ने मान गए. ऐसा क्यों? ये सवाल बिहार की सत्ता का खुद को दावेदार मानने वाले तेजस्वी यादव से लेकर प्रशांत किशोर के मन में मंत्रालयों के बंटवारे के बाद से ही घूम रहा है. कारण कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई थी. कमजोर हालत में थी, फिर भी न तो बीजेपी और न ही आरजेडी गृह मंत्रालय नीतीश कुमार से ले पाई. साफ है कि ये फैसला बगैर नीतीश कुमार की मर्जी के नहीं हो सकता था. वो भी तब केंद्र सरकार भी बहुत हद तक नीतीश कुमार के समर्थन पर चल रही है.
नीतीश कुमार ने क्यों सौंपा गृह मंत्रालय
जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार ये मानकर चल रहे हैं कि ये उनका आखिरी चुनाव है. अब जेडीयू में तो दूर की बात अब तक बीजेपी या बिहार का कोई भी नेता नीतीश कुमार के कद के आसपास भी नहीं है. सभी को कुछ जातियों और वर्गों को समर्थन जरूर है, मगर कोई ऐसा नेता नहीं है, जिस पर बिहार की जनता की आम सहमति हो कि ये बिहार को अच्छे से चला लेगा. आरजेडी से सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार ही जेडीयू में लाए थे. नीतीश कुमार का असली वोट बैंक कुर्मी और कुशवाहा जातियां हैं. इन दो जातियों के साथ पंचफोरना जातियों की जुगलबंदी ने उन्हें पिछले 20 सालों से बिहार की कुर्सी पर बनाए रखा है. ऐसे में वो कुशवाहा समाज से अपना प्रतिनिधि हमेशा बनाने की कोशिश करते रहे हैं. सम्राट चौधरी के अलावा उपेंद्र कुशवाहा को भी नीतीश कुमार ने काफी बढ़ाया, मगर दोनों उनसे अलग हो गए. सम्राट चौधरी बीजेपी के हो गए तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी में बना ली. यही एक फैसला सम्राट चौधरी के लिए फायदेमंद साबित हुआ और आज वो बिहार के गृह मंत्री बन गए.

दरअसल, नीतीश कुमार को अच्छी तरह से पता है कि अगर अगले चुनाव में भी अपनी पार्टी को सत्ता में रखना है तो किसी ना किसी को आगे बढ़ाना पड़ेगा और ये गृह मंत्रालय दिए बगैर संभव नहीं है. कारण बिहार में गृह मंत्रालय के जरिए ही नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि बनी. 2025 विधानसभा चुनाव से पहले कई आपराधिक वारदातें हुईं. विपक्ष ने इसे काफी उछाला भी, मगर ये जनता का विश्वास ही था कि इन घटनाओं का असर चुनाव पर नहीं पड़ा. मंत्रालय बंटवारे की बात आई तो बीजेपी में सम्राट चौधरी को लेकर कोई अगर-मगर नहीं था. उन्हें बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आशीर्वाद प्राप्त है. ऐसे में जब बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार को ये प्रस्ताव आया कि 2030 चुनाव को देखते हुए सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय दिया जाना चाहिए तो नीतीश कुमार भी इससे इनकार नहीं कर सके. जाहिर है बीजेपी अगला विधानसभा चुनाव अगर नीतीश कुमार नहीं लड़े तो सम्राट चौधरी के चेहरे पर लड़ने की तैयारी कर चुकी है.
किसको है बेचैनी और क्यों
नीतीश कुमार और बीजेपी के इस फैसले से तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर का बेचैन होना तय है. वो भी समझ रहे हैं कि इस फैसले का क्या असर होगा. कारण ये है कि बिहार जाति जनगणना के अनुसार, 2 अक्टूबर 2023 को जारी रिपोर्ट में राज्य की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है. इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) सबसे बड़ा समूह है, जो 36.01% है. इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27.12%, अनुसूचित जाति (एससी) 19.65%, अनारक्षित वर्ग 15.52% और अनुसूचित जनजाति (एसटी) 1.68% है. हालांकि, बिहार में यादव जनसंख्या के मामले में सबसे बड़ी जाति है, जो कुल आबादी का 14.26% है. वहीं मुस्लिम: 17.70% हैं. मगर, इसी से बिहार की सत्ता की वोटिंग पिछले 20 सालों से हो रही है.

दरअसल, यादवों की जनसंख्या ज्यादा होने और मुस्लिमों के समर्थन के कारण लालू यादव ने बिहार पर राज किया. उस दौर की यादें अब भी बिहार के लोगों के दिमाग में बैठी हुई हैं और ऐसा लगता है कि लोग नहीं चाहते कि यादव और वो भी आरजेडी का मुख्यमंत्री बने. ऐसे यादवों और मुस्लिमों को छोड़कर बाकी जातियां एकजुट होकर वोट करती हैं. यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या दुसाध की है. उनकी जनसंख्या 5.31%, रविदास की 5.2%, कोइरी मतलब कुशवाहा 4.2%, ब्राह्मण 3.65%, राजपूत 3.45%, मुसहर 3.08%, कुर्मी 2.87%, भूमिहार 2.86 हैं. ये सभी जातियां आरजेडी के यादव से मुकाबले के लिए एकजुट होती रही हैं और इनका समर्थन पचफोरना जातियां करती रही हैं. ऐसे में सम्राट चौधरी को आगे कर बीजेपी और जेडीयू ने जाति समीकरणों को साधते हुए एक नया चेहरा आगे कर दिया. यही कारण है कि तेजस्वी और प्रशांत किशोर के निशाने पर पहले से सम्राट चौधरी थे, और अब शायद और ज्यादा निशाने पर आएं.
अपराधियों और पुलिस विभाग में भी बेचैनी
बिहार के अपराधी से लेकर पुलिस तक नीतीश कुमार के कामकाज से परिचित थे. अब सम्राट चौधरी के आने से दोनों में खलबली तो मची हुई है, लेकिन सन्नाटे वाली. बीजेपी के कामकाज के बारे में सभी को मालूम है. सम्राट चौधरी बीजेपी के कोटे से गृह मंत्री बने हैं. ऐसे में उन्हें किसी तरह भी मैनेज करना अब मुश्किल हो जाएगा. अपराधियों को पता है कि आने वाले दिन उनके लिए ठीक नहीं होने वाले. कुछ ऐसा ही हाल पुलिस महकमे का भी है. उन्हें भी पता है कि अब नये तरीके से काम करना पड़ेगा. साथ ही कई नेता का चोला पहने लोगों को भी डर है कि कहीं उनकी फाइल न खुल जाए.
बिहार में नीतीश कुमार सहित किस मंत्री के पास कौन सा विभाग यहां देखें
Bihar cabinet portfolio allocation | CM Nitish Kumar keeps General Administration, Cabinet Secretariat, monitoring and all departments not allocated to anyone
— ANI (@ANI) November 21, 2025
Bihar Deputy CM Samrat Choudhary gets Home Department
Deputy CM Vijay Sinha gets the Land and Revenue Department and… pic.twitter.com/XTLxakEGRz
जेडीयू ने किसे बनाया सरकार में नंबर 2
नीतीश कुमार ने एक और बड़ा फैसला मंत्रालयों के बंटवारे में किया है. उन्होंने सबसे अधिक विभाग जदयू के वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव को दिए हैं. उन्हें ऊर्जा, योजना एवं विकास, मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन, वित्त और वाणिज्य-कर जैसे पांच बड़े विभाग मिले हैं. यह विभाग राज्य की अर्थव्यवस्था और राजस्व के लिए रीढ़ माने जाते हैं. वित्त विभाग पिछली एनडीए सरकारों में बीजेपी के पास रहता था. इस बार जदयू के पास है. जब तक जदयू के मंत्रियों की संख्या नहीं बढ़ती है, तब तक सबसे ज्यादा विभागों वाले मंत्री बिजेंद्र यादव ही हैं. ये भी बीजेपी के मिशन 2030 का ही हिस्सा है. जिसमें यादव जाति को ये जताना कि एनडीए में यादव जाति को काफी महत्व दिया जा रहा है. नीतीश कुमार की तरफ से बिजेंद्र यादव को इतनी अहमियत देने से विपक्ष में बेचैनी है. खासकर आरजेडी में, जिसका मुख्य वोटबैंक यादव हैं.

कौन हैं बिजेंद्र प्रसाद यादव
सुपौल विधानसभा सीट पर 79 वर्षीय बिजेंद्र प्रसाद यादव का जलवा लंबे अरसे से कायम है. JDU के कद्दावर नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव ने सुपौल सीट पर लगातार 9वीं बार चुनाव में जीत हासिल की है. बिजेंद्र प्रसाद यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 30 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. बिजेंद्र प्रसाद यादव को कुल 109085 मत मिले. उनकी टक्कर कांग्रेस के मिन्नतुल्लाह रहमानी से थी. रहमानी को 78282 वोट मिले. 1990 और 1995 में वे जनता दल से विधायक चुने गए. हालांकि, 2000 में वे पहली बार जदयू के टिकट से विधायक चुने गए. फिर 2005, 2010, 2015 और 2020 में भी बिजेंद्र प्रसाद यादव सुपौल से विधायक बने.
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