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बिहार चुनावः धमदाहा में जनसुराज की प्रतिष्ठा पर दांव, मंत्री लेशी सिंह जीतेंगी या संतोष कुशवाहा रचेंगे इतिहास

कभी बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान की सीट रही पूर्णिया की धमदाहा विधानसभा सीट पर इस चुनाव में मुकाबला दिलचस्प हो चला है.

बिहार चुनावः धमदाहा में जनसुराज की प्रतिष्ठा पर दांव, मंत्री लेशी सिंह जीतेंगी या संतोष कुशवाहा रचेंगे इतिहास
  • कभी बिहार के पहले दलित CM भोला पासवान की सीट रही पूर्णिया की धमदाहा सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प हो चला है.
  • नीतीश सरकार में मंत्री लेशी सिंह और JDU से RJD में गए संतोष कुशवाहा इस सीट पर आमने सामने हैं.
  • जनसुराज से राकेश कुमार प्रत्याशी हैं, जो यहां से MP रह चुके इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष की प्रतिष्ठा का सवाल है.
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बिहार के पूर्णिया की धमदाहा विधानसभा सीट पर जेडीयू कोटे से दो बार पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके संतोष कुशवाहा ने पाला बदलकर राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया और आरजेडी ने उन्हें धमदाहा विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतार दिया है. जाहिर है, कल तक एक ही सिक्के के दो पहलू रहे लेशी सिंह और संतोष कुशवाहा अब चुनावी समर में आमने-सामने होंगे. निश्चित तौर पर इससे यहां के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बदले-बदले नजर आ रहे हैं. इस स्थिति में नतीजे अप्रत्याशित भी हो सकते हैं. 

बड़ा सवाल यह है कि क्या लेशी सिंह लगातार चौथी बार अपना जादू बरकरार रख पाएंगी या फिर संतोष कुशवाहा उनके राजनीतिक तिलिस्म को तोड़ पाने में कामयाब हो जाएंगे. दूसरी ओर जनसुराज ने अपने जिलाध्यक्ष राकेश कुमार उर्फ बंटी यादव को उम्मीदवार बनाया है. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि जनसुराज केवल वोटकटवा की भूमिका तक सीमित रह जाता है और किसी की जीत या हार का कारण बनता है या बाजी मार ले जाता है.

कभी थे साथ-साथ, आज आमने-सामने

लेशी सिंह बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और पहली बार साल 2000 में समता पार्टी से जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली लेकिन नवंबर 2005 के चुनाव में उन्हें आरजेडी प्रत्याशी दिलीप कुमार यादव के हाथों हार मिली. लेकिन साल 2010 से वे लगातार जेडीयू के टिकट पर जीतती आ रही हैं. अगर वे इस बार विजयी होती है तो यह लगातार चौथा मौका होगा.

उधर, संतोष कुशवाहा पहली बार साल 2010 में बीजेपी टिकट पर बायसी विधानसभा से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. जब पूरे देश मे नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी तो संतोष कुशवाहा ने विपरीत धारा की नाव जेडीयू की सवारी कर पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से अप्रत्याशित जीत हासिल की थी. उसके बाद फिर 2019 में संतोष कुशवाहा ने पूर्णिया से जेडीयू प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की लेकिन 2024 में पप्पू यादव के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा. संतोष कुशवाहा 2014 से 2024 तक लेशी सिंह के साथ एक ही राजनीतिक मंच पर सवार थे लेकिन परिस्थितयां बदली तो चुनावी मैदान में आमने-सामने आ गए.

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कद्दावर मंत्री के रूप में है लेशी की पहचान

राजनीति के आरंभिक दौर में लेशी सिंह की बाहुबली बूटन सिंह की पत्नी के रूप में पहचान थी, जिनकी हत्या साल 2000 में कोर्ट परिसर में कर दी गई थी. पति की हत्या के बाद लेशी विधायक बनी तो उसके बाद पीछे मुड़कर नही देखी और खुद को राजनेता के रूप में स्थापित करने में सफल साबित हुईं. 20 वर्षों से अधिक समय तक धमदाहा विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुकी लेशी सिंह अपनी राजनीतिक कुशलता के लिए भी जानी जाती है. संतोष कुशवाहा के मैदान में आने के बाद यह चुनाव उनके राजनीतिक कौशल की अग्नि-परीक्षा मानी जा रही है.

क्या MKY समीकरण देंगे चौंकाने वाले परिणाम?

संतोष कुशवाहा को भले ही बीते लोकसभा चुनाव में पराजय मिली हो लेकिन एक युवा और सौम्य राजनेता के रूप में उनकी खास पहचान रही है. कुशवाहा समाज की राजनीति में उन्हें उत्तर बिहार के एक चेहरे के तौर पर  जाना जाता है. यही वजह रही कि उन्हें तेजस्वी यादव ने धमदाहा के चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया. MY समीकरण के साथ-साथ अगर कुशवाहा अपने स्वजातीय मतों को जोड़ पाने में सफल होते हैं तो MKY समीकरण के बूते चौंकाने वाले परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, कुशवाहा के उम्मीदवार बनने से कुर्मी समेत अन्य पिछड़ी जातियों के वोटबैंक में सेंधमारी की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.

दांव पर जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष की प्रतिष्ठा

जनसुराज ने उम्मीदवार के तौर पर पार्टी के जिलाध्यक्ष राकेश कुमार उर्फ बंटी यादव को चुनावी मैदान में उतारा है. यादव बिरादरी से आने वाले यादव आरजेडी प्रत्याशी का कितना नुकसान कर पाते हैं यह कह पाना कठिन है. धमदाहा जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह की जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है. वे दो बार पूर्णिया से सांसद भी रह चुके हैं. ऐसे में उनका राजनीतिक प्रभाव जनसुराज प्रत्याशी को कितना लाभ दिला पाता है, यह भी समय के गर्भ में है. ऐसे में निश्चित रूप से जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. कुल मिलाकर, समय के साथ-साथ धमदाहा की लड़ाई अबूझ पहेली बनती जा रही है जहां आने वाले दिनों में राजनीति के कई रंग देखने को मिलेंगे.

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