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बिहार चुनाव: सहरसा में 5 में से 4 बार जीती भाजपा, इस बार राजद की सामाजिक आधार मजबूत करने की रणनीति आएगी काम?

बिहार की सहरसा सीट शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का गढ़ रही, लेकिन समय के साथ यहां भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली. पिछले पांच चुनावों में चार बार भाजपा विजयी रही है, जबकि राजद को केवल 2015 में जीत मिली.

बिहार चुनाव: सहरसा में 5 में से 4 बार जीती भाजपा, इस बार राजद की सामाजिक आधार मजबूत करने की रणनीति आएगी काम?
  • सहरसा सीट बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण है और यहां पिछले पांच चुनावों में चार बार भाजपा विजयी रही है.
  • 2008 के परिसीमन के बाद सहरसा लोकसभा सीट खत्म होकर मधेपुरा में शामिल हो गई, जिससे समीकरण बदले हैं.
  • भाजपा मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए कोशिश कर रही है तो राजद सामाजिक आधार को मजबूत कर रही है.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव में सहरसा विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें हैं. कोसी नदी के किनारे बसा सहरसा का नाम संस्कृत शब्द 'सहस्रधारा' से पड़ा है, जिसकी बिहार की राजनीति में विशेष पहचान है. हालांकि कोसी, बागमती और गंडक नदियों से घिरा यह इलाका हर साल बाढ़ की मार झेलता है. पुल और सड़कें टूटने से जहां जीवन अस्त-व्यस्त होता है, वहीं यही बाढ़ मिट्टी को उपजाऊ भी बनाती है. यही वजह है कि सहरसा मक्का और मखाना उत्पादन का बड़ा केंद्र बन चुका है, जहां से हर साल लाखों टन मक्का का निर्यात होता है.

सहरसा मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है, जहां मैथिली और हिंदी प्रमुख भाषाएं हैं. हालांकि बिहार का 15वां बड़ा शहर होने के बावजूद यहां की साक्षरता दर केवल 54.57 फीसदी है.

पिछले पांच में से 4 चुनावों में भाजपा की जीत 

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो यह सीट शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का गढ़ रही, लेकिन समय के साथ यहां भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली. पिछले पांच चुनावों में चार बार भाजपा विजयी रही है, जबकि राजद को केवल 2015 में जीत मिली. इससे पहले जनता दल ने दो बार और जनता पार्टी तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक-एक बार यहां प्रतिनिधित्व किया था.

2008 की परिसीमन प्रक्रिया के बाद सहरसा लोकसभा सीट को खत्म कर मधेपुरा में मिला दिया गया, जिसे स्थानीय लोग राजनीतिक प्रतिशोध मानते हैं. इस बदलाव के बाद मधेपुरा जदयू का गढ़ बन गया. वहीं, सहरसा विधानसभा सीट पर भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता है. 2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां की अनुमानित जनसंख्या 6.42 लाख है, जिसमें 3.75 लाख मतदाता शामिल हैं. इनमें 1.95 लाख पुरुष, 1.80 लाख महिलाएं और 8 थर्ड जेंडर मतदाता हैं.

मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ की भूमि 

सहरसा न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है. यह कभी मिथिला साम्राज्य का हिस्सा रहा, जहां राजा जनक का उल्लेख मिलता है. महिषी में मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ इसी भूमि पर हुआ था. यहां चंडी मंदिर, कात्यायनी मंदिर और तारा मंदिर की धार्मिक मान्यता दूर-दूर तक फैली है. बाबाजी कुटी और मत्स्यगंधा का रक्तकाली मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जो चुनावी रुझानों में भी अपनी छाप छोड़ते हैं.

आर्थिक दृष्टि से कोसी क्षेत्र ईंट उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा जूट, साबुन, बिस्किट, चॉकलेट और प्रिंटिंग उद्योग स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं. कृषि और लघु उद्योगों के साथ ही यहां की युवा पीढ़ी कॉर्पोरेट नौकरियों और उद्यमिता की ओर भी तेजी से बढ़ रही है.

सहरसा में बाढ़ नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुदृे 

राजनीतिक समीकरण की बात करें तो भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करेगी, जबकि राजद जनता के बीच अपने सामाजिक आधार को और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है. जदयू का प्रभाव यहां लोकसभा स्तर पर जरूर है, लेकिन विधानसभा में उसका जनाधार सीमित माना जाता है. स्थानीय मुद्दों में बाढ़ नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार को लेकर लोगों की अपेक्षाएं हैं.

चुनावी इतिहास को देखा जाए तो सहरसा की जनता समय-समय पर बदलाव करती रही है. 2025 में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजद एक बार फिर वापसी कर पाएगी या भाजपा अपने गढ़ को बचाए रखने में सफल होगी. फिलहाल, सहरसा विधानसभा की जंग बिहार की राजनीति में एक बड़ा संदेश देने वाली साबित हो सकती है.

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