
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाने का दौर जारी है. राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से राजनीतिक दलें अपनी ताकत टटोलते हुए आगे बढ़ रहे हैं. सियासी नजरिए से देखें तो बिहार में मगध, भोजपुर, मिथिला, अंग, सीमांचल पांच बड़े क्षेत्र है. इनमें कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां NDA मजबूत है तो कही महागठबंधन मजबूत है. बिहार का मगध क्षेत्र न केवल सियासी नजरिए से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नजरिए से भी काफी महत्वपूर्ण है. मगध में महागठबंधन काफी मजबूत है. मगध में 47 विधानसभा सीटें है. जिसमें पिछली चुनाव में महागठबंधन ने 30 सीटों पर जीत हासिल की थी. एनडीए को 17 सीटों पर संतोष करना पड़ा था.
इस बार के चुनाव में भी मगध अपनी महती भूमिका निभाएगा. ऐसे में मगध के किले को फतह करना किसी भी सियासी गठजोड़ के लिए बहुत जरूरी हो जाता है. इस रिपोर्ट में चर्चा मगध की, आइए जानते हैं बिहार जीतने के लिए मगध को जीतना कितना जरूरी है.
विधानसभा चुनाव 2020 में मगध का क्या था हाल
प्रशासनिक नजरिए से मगध प्रमंडल में बिहार की 5 जिलें शामिल हैं- गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल. लेकिन बात जब सियासत और चुनाव की होती है तो पटना और नालंदा को भी मगध में ही काउंट किया जाता है. बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में मगध में NDA को सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था. मगध की 47 में से 30 सीटें महागठबंधन के पाले में आई थी. NDA सिर्फ 17 सीटें जीत पाया था.
मगध के किस जिले में किस गठबंधन को मिली कितनी सीटें
- पटना के 14 में से 9 सीटें महागठबंधन, 5 एनडीए ने जीती थी.
- जहानाबाद की 3 की तीनों सीटें महागठबंधन ने जीती थीं.
- औरंगाबाद की सभी 6 सीटें महागठबंधन ने जीती थी.
- अरवल की दोनों सीटें महागठबंधन की झोली में आई थी.
- गया की दस में से 5-5 सीटें दोनों गठबंधन के हिस्से आई थी.
- CM नीतीश के गृह जिले नालंदा में 6 सीटें NDA और 1 सीट महागठबंधन के खाते में आई थी.
- नवादा में विधानसभा की कुल सीटें 5 है. इसमें 5 सीटें महागठबंधन तो एक सीट एनडीए के खाते में आई थी.
लोकसभा चुनाव 2024 में मगध के नतीजे
लोकसभा चुनाव में भी मगध के इलाके में NDA का प्रदर्शन अच्छा नहीं था. पाटलिपुत्र, जहानाबाद और औरंगाबाद की लोकसभा सीट NDA हार गई थी. जबकि इसके अलावा शेष बिहार में एनडीए अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने में कमोवेश सफल रही थी.
इस विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मगध का इलाका जीतना सबसे ज्यादा जरूरी है. इस बार NDA अपना प्रदर्शन बेहतर करना चाहता है तो महागठबंधन पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहता है. ऐसे में दिलचस्प बात यह भी है कि SIR की प्रक्रिया में सबसे कम वोट इसी इलाके में कटे हैं.
गठबंधन में बेहतर समन्वय बनाने की कोशिश
पिछले चुनाव में इस इलाके की 8 सीटें NDA, LJP, RLSP के कारण हारी थी. गोह, नबीनगर, बोधगया की सीट पर NDA की हार उपेंद्र कुशवाहा की RLSP के कारण हुई थी. ओबरा, शेरघाटी और इस्लामपुर की सीट लोजपा के कारण हारी थी.
अगर यह दोनों पार्टियां NDA गठबंधन में होती तो अतरी उर कुर्था सीट NDA जीत जाती. वहीं महागठबंधन की जीत में माले के साथ गठबंधन एक अहम फैक्टर था. इस इलाके में माले का प्रभाव है. पार्टी ने 12 में से 4 सीटें इसी क्षेत्र में जीती थीं. 2020 में महागठगंधन को इसका फायदा मिला था.
जातीय समीकरण साधना NDA के लिए चुनौती
इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति वोट काफी अहम हैं. महागठबंधन के पास माले के कारण इस वर्ग का बड़ा वोट बैंक है. कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष अनुसूचित जाति से आने वाले राजेश राम को बनाया है. वे भी इसी इलाके से आते हैं. वहीं भाजपा केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के सहारे गया और आसपास के जिलों में इस वोट बैंक को साधने की कोशिश करती है.
महादलित पॉलिटिक्स से एनडीए गठबंधन को उम्मीदें
नीतीश कुमार की महादलित पॉलिटिक्स से भी गठबंधन को उम्मीदें हैं. NDA के लिए सबसे बड़ी चुनौती कुशवाहा मतदाताओं को साधने की है. लोकसभा चुनाव में इस वोट बैंक में दरार आई थी. हालांकि, NDA को उम्मीद है कि सम्राट चौधरी, उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं के कारण इस बार कुशवाहा वोटर उनके साथ रहेंगे.
PK फैक्टर भी डालेगा असर
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रवि उपाध्याय बताते हैं कि इस इलाके में भाजपा कभी भी मजबूत नहीं रही. माले की मजबूत जमीन भी महागठबंधन को फायदा दिलाती है. विधानसभा सम्मेलनों के जरिए एनडीए ने नए सिरे से पांव फैलाने की कोशिश की है. अगर कार्यकर्ताओं का समन्वय हुआ तो वे बेहतर स्थिति में जा सकते हैं. इस चुनाव में प्रशांत किशोर इलाके में कैसे उम्मीदवार उतारते हैं, परिणाम इस पर भी निर्भर करेगा.
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