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बिहार चुनाव : अपराध की नर्सरी से राजनीति की पाठशाला तक... इस बार रुपौली की जनता किसे देगी अपना आशीर्वाद

अपराध की दुनिया मे मुक्कमल पहचान स्थापित करने के बाद शंकर सिंह और अवधेश मण्डल ने राजनीति का रुख किया. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में रुपौली में शंकर सिंह और अवधेश मण्डल की पत्नी बीमा भारती के बीच सीधा मुकाबला हुआ जिसमें बतौर निर्दलीय प्रत्याशी बीमा भारती की जीत हुई.

बिहार चुनाव : अपराध की नर्सरी से राजनीति की पाठशाला तक... इस बार रुपौली की जनता किसे देगी अपना आशीर्वाद
रुपौली में बेहद रोमांचक है मुकाबला
पूर्णिया:

बिहार चुनाव में इस बार सीमांचल में आने वाले रुपौली विधानसभा सीट पर सभी की नजरें टिकीं है. पिछली दफा हुए उप-चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने बाजी मारी थी. इस सीट का अपना एक रोचक इतिहास भी है. दरअसल, बिहार में राजनीति का अपराधीकरण हुआ या अपराधियों का राजनीतिकरण हुआ ,यह आज भी बहस का विषय है. दरअसल, आजादी के बाद जब चुनावी राजनीति की शुरुआत हुई तो उम्मीदवारों द्वारा अपराधियों की मदद से मतदान केंद्रों पर जबरन अपने पक्ष में मतदान कराने की परिपाटी आरम्भ हुई जिसे 'बूथ कैप्चरिंग' कहा गया.

बिहार में पहली बार इस तरह की घटना वर्ष 1957 के चुनाव में बेगूसराय में घटित हुई. 80 का दशक आते-आते जो अपराधी गिरोह दूसरों के लिए बूथ-कैप्चरिंग को अंजाम दिया करता था ,उन गिरोह के सरगनाओं के मन मे भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पनपने लगी. इसके बाद आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों ने राजनीति के दुनिया मे कदम रखना शुरू किया और 90 का दशक आते -आते ऐसे लोगों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया.

राजनीति का अपराधीकरण या अपराधियों के राजनीतिकरण में सभी राजनीतिक दलों ने अमूल्य योगदान दिया,जिसका नतीजा है कि आज दर्जनों सांसद और विधायकों के नाम के आगे ' बाहुबली' और 'रॉबिनहुड' जैसी उपाधियां आम बात है. ए डी आर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा के  निर्वाचित सदस्यों में 49 फीसदी विधायकों के खिलाफ़ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे.

जाहिर है,सीमांचल का यह इलाका भी अपराधियों के राजनीतिकरण से अछूता नही रहा. पूर्णिया से कई बाहुबलियों ने समय -समय पर संसद और विधानसभा तक का सफर तय किया. आज हम ऐसे ही एक विधानसभा क्षेत्र रुपौली की चर्चा कर रहे हैं जहां अपराध की नर्सरी से निकलकर राजनीति की पाठशाला में दाखिला लेने वाले दो बाहुबलियों के बीच कड़ी टक्कर है. वहीं ,मुकाबले का त्रिकोण जेडीयू बना रहा है तो जनसुराज गेम चेंजर बन जाए तो आश्चर्य भी नही होना चाहिए. 

90 के दशक में जातीय सेनाओं के हिंसक टकराव का बना रहा अखाड़ा

70 और 80 के दशक में नक्सलवाद की उर्वर-भूमि रही धमदाहा अनुमंडल का रुपौली प्रखण्ड 90 का दशक आते-आते जातीय-सेनाओं के खूनी-संघर्ष का अखाड़ा में तब्दील हो गया. उस दौर में इस इलाके में नार्थ बिहार लिबरेशन आर्मी और फैजान गिरोह अस्तित्व में आया. लिबरेशन आर्मी सवर्णों की तो फैजान गिरोह अतिपिछड़ी जतियों की सेना थी. लिबरेशन आर्मी का नेतृत्व टोला सिंह ने और फिर उसकी हत्या के बाद शंकर सिंह ने किया जबकि फैजान गिरोह का नेतृत्व अवधेश मण्डल करता रहा.

यही शंकर सिंह बहरहाल रुपौली विधानसभा क्षेत्र से  निर्दलीय विधायक हैं और फिर से चुनावी मैदान में हैं.जबकि उनके सामने अवधेश मण्डल की पत्नी बीमा भारती राजद के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं.कहने के लिए लिबरेशन आर्मी और फैजान गिरोह जातीय -सेना थी लेकिन मुख्यतः दोनों गिरोह हत्या, रंगदारी, अपहरण और जमीन कब्जा के कारोबार से जुड़ी हुई थी. वर्चस्व की लड़ाई में इस इलाके में तब दर्जनों हत्याएं हुई थी. दोनों गिरोह से जुड़े रहे दर्जनों अपराधियों ने कालांतर में पंचायती राज चुनाव और शहरी निकाय चुनाव के माध्यम से जनप्रतिनिधि का चोला धारण करने में सफलता हासिल किया.

बीमा भारती 05 बार तो शंकर सिंह बने 02 बार विधायक

अपराध की दुनिया मे मुक्कमल पहचान स्थापित करने के बाद शंकर सिंह और अवधेश मण्डल ने राजनीति का रुख किया. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में रुपौली में शंकर सिंह और अवधेश मण्डल की पत्नी बीमा भारती के बीच सीधा मुकाबला हुआ जिसमें बतौर निर्दलीय प्रत्याशी बीमा भारती की जीत हुई. हालांकि वर्ष 2005 फरवरी चुनाव में लोजपा प्रत्याशी के रूप में शंकर सिंह बीमा भारती को शिकस्त देने में कामयाब रहे. इसके बाद, लगातार अवधेश मण्डल की बादशाहत बरकरार रही और बीमा ने वर्ष 2005 नवम्बर,वर्ष 2010, वर्ष 2015 और वर्ष 2020 में बतौर जेडीयू प्रत्याशी रुपौली विधानसभा में जीत का परचम लहराया.हर चुनाव -परिणाम की खासियत यह रही कि शंकर सिंह बतौर लोजपा प्रत्याशी बीमा भारती के निकटतम प्रतिद्वंदी बने रहे.वर्ष 2024 में जब बीमा भारती ने जेडीयू छोड़ राजद का दामन थामा तो उन्हें विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना पड़ा.

बीमा भारती लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्णिया से राजद की उम्मीदवार बनी लेकिन जमानत जब्त हो गई.उसके बाद रुपौली सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय शंकर सिंह ने राजद की बीमा भारती को पराजित किया. अवधेश मण्डल खुद भवानीपुर प्रखण्ड के प्रमुख रह चुके हैं जबकि उनकी बेटी रानी भारती जिला परिषद सदस्य है .वहीं, शंकर सिंह की पत्नी पूर्णिया जिला परिषद की अध्यक्ष रह चुकी है और बहरहाल जिला पार्षद हैं.

जेडीयू के लिए प्रतिष्ठा का सवाल तो जनसुराज के लिए अस्तित्व का सवाल

बीमा भारती वर्ष 2005 से 2020 तक लगातार जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीतती रही लेकिन इस चुनाव में जेडीयू की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.वर्ष 2024 उपचुनाव में जेडीयू के कलाधर मण्डल दूसरे स्थान पर रहे.इसकी वजह रही कि बीमा भारती और कलाधर मण्डल एक ही सामाजिक पृष्ठभूमि से हैं और दोनों के आमने-सामने होने से मतों का विभाजन हुआ जिसका लाभ निर्दलीय शंकर सिंह को मिला.बीमा भारती को अपने स्वजातीय के अलावा माय समीकरण पर भरोसा था लेकिन अल्पसंख्यकों का साथ बीमा को नही मिला.

एक बार फिर शंकर ,बीमा और कलाधर आमने-सामने हैं.वहीं जनसुराज ने धानुक(कुर्मी) जाति से आने वाले आमोद कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है.यह मत अबतक जेडीयू को मिलता रहा है.जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह का रुपौली कार्यक्षेत्र रहा है. ऐसे में श्री सिंह के सामाजिक पृष्ठभूमि से जनसुराज उम्मीदवार आमोद कुमार  को कितना लाभ मिल पाता है यह देखना दिलचस्प होगा.बड़ा सवाल यह है कि क्या फिर एक बार बाहुबल की हनक पर बटन दबेगी या फिर एक नई परिपाटी का आगाज होगा.

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