बांका की राजनीति के लिए शुक्रवार 14 नवंबर का दिन बेहद अहम और अप्रत्याशित साबित हुआ. जिले और आसपास के क्षेत्रों की दो सशक्त राजनीतिक हस्तियों- जेडीयू सांसद गिरिधारी यादव और झारखंड सरकार के मंत्री संजय यादव ने अपने-अपने बेटों को चुनाव मैदान में उतारकर राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं, लेकिन चुनाव परिणामों ने दोनों नेताओं के सपनों पर अचानक विराम लगा दिया.
बेटों को जनता ने नकारा
बांका के जेडीयू सांसद गिरिधारी यादव के पुत्र चाणक्य प्रकाश रंजन बेलहर से चुनावी मैदान में उतरे थे, वहीं झारखंड सरकार के मंत्री संजय यादव के पुत्र रजनीश भारती भागलपुर के कहलगांव विधानसभा क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमा रहे थे. दोनों ही उम्मीदवारों को युवा चेहरा, आधुनिक शिक्षा और परिवार की राजनीतिक पकड़ जैसे तत्वों का लाभ मिलने की उम्मीद थी. लेकिन मतदाताओं ने इस बार परंपरागत समीकरणों को दरकिनार करते हुए दोनों को स्पष्ट रूप से नकार दिया.
जेडीयू के खिलाफ लड़ा चुनाव
चाणक्य प्रकाश रंजन ने पहली बार चुनावी मैदान में उतरते हुए अपने पिता की ही पार्टी जेडीयू के विधायक मनोज यादव के खिलाफ लड़ाई लड़ी. लंदन से पढ़ाई कर लौटे चाणक्य की युवा छवि ने शुरुआती दौर में उत्साह जरूर पैदा किया, लेकिन चुनाव परिणाम में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. मनोज यादव ने जीत के बाद कहा कि पार्टी विरोधी गतिविधि विधानसभा चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मौके पर किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है और इस पर पार्टी स्तर पर कार्रवाई की जाएगी.
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बेटे के लिए मांगा था टिकट
दूसरी ओर,बांका के ढाकामोड़ निवासी झारखंड के मंत्री संजय यादव के पुत्र रजनीश भारती की हार और भी चर्चा में रही. संजय यादव ने दिसंबर 2024 में मंत्री पद मिलने के बाद राजद संगठन को बांका, भागलपुर, जमुई और मुंगेर सहित कई जिलों में नई सक्रियता दी थी. तेजस्वी यादव के बांका में हुए दो बड़े कार्यक्रमों ने भी संगठन में नई ऊर्जा भरी थी. इस सक्रियता का लाभ उठाते हुए वे अपने पुत्र के लिए टिकट सुनिश्चित कराने में सफल रहे थे. लेकिन चुनाव परिणाम में रजनीश भारती भी जनता का भरोसा जीतने में नाकाम रहे.
गिरिधारी यादव ने पुत्र की हार पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी निष्ठा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ है और उनका बेटा स्वतंत्र विचार वाला युवा है, जो अपने फैसले खुद लेता है. दोनों प्रभावशाली नेताओं के पुत्रों की हार ने क्षेत्रीय राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है. इसे राजनीतिक विरासत के बदलते स्वरूप और जनता द्वारा योग्य प्रतिनिधित्व की स्पष्ट मांग के रूप में देखा जा रहा है.
(बांका से दीपक कुमार की रिपोर्ट)
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