बिहार का ये चुनाव याद रखा जाएगा नीतीश कुमार की वजह से क्योंकि जदयू ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है. सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया. ये बात तो तय है कि महिलाओं ने हमेशा से नीतीश कुमार का साथ दिया और बिहार की महिलाओं ने जातियां तोड़ी है. लेकिन एक और वर्ग है जिसने नीतीश कुमार को चुपचाप वोट किया है. वो है बिहार के बुजुर्ग लोग जिनको नीतीश कुमार ने पेंशन 400 से बढ़ाकर कर 1,100 रुपये कर दिया, उसने जमीन पर एनडीए के पक्ष में पूरी तरह से पलड़ा झुका दिया. गांव-गांव में इसकी बहुत चर्चा रही. महिलाओं और बुजुर्गों ने नीतीश कुमार का कर्ज वोट दे कर चुकाया है.
तीसरी चीज जो एनडीए के लिए काम की. वह है नीतीश का ये आखिरी चुनाव होना. बिहार के लोगों को लगा कि नीतीश कुमार को उनके अच्छे कामों के लिए उनके अंतिम चुनाव में अंतिम तोहफा दिया जाए यानि उन्हें उनके कामों का इनाम दिया जाए. बिहार चुनाव में इस बार ये हुआ कि गांव-गांव में ये बात फैल गई कि यदि इस बार वोट नहीं किए तो अगली बार मतदाता सूची में नाम नहीं आएगा. तो गांव का गांव उमर पड़ा वोटिंग के लिए और जब वो मतदान केंद्र पर पहुंचे तो उन्हें लगा कि नीतीश कुमार ने अच्छा काम किया है.

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एक बार फिर आजमाते हैं तो उनको वोट डाल दिया खासकर महिलाओं ने. यदि आप पिछड़े चुनाव के आंकडों को देखें तो मध्यप्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र तक में जिन सरकारों ने महिलाओं के हाथ में पैसा पकड़ाया है वो जीते हैं. सबको 49 फीसदी तक वोट मिले हैं और यही बिहार में भी हुआ है. नीतीश कुमार अपने स्वास्थ्य को लेकर लगातार विपक्ष और मीडिया के निशाने पर रहे. मगर इस चुनाव में 80 से ज्यादा रैलियां करके उन्होंने इस धारणा को तोड़ा कि वो अस्वस्थ हैं. इसके पीछे उनकी पूरी मीडिया टीम और प्रवक्ताओं की पूरी फौज भी लगी रही. मगर उन्होंने लोगों के जनमानस में यह साबित कर दिया कि उनकी हालत इतनी भी खराब नहीं है कि वो भाषण ना दे सकें और रैलियां ना कर पाएं.
बाद में लोगों ने ये भी सोचा कि परिवार का मुखिया भले ही उम्रदराज हो आखिर में उन्हीं से पूछ कर सब काम करना पड़ता है क्योंकि बिहार में ऐसा ही होता है. लोगों ने सोचा कि नीतीश है तो निश्चित हैं और इसी भावना के तहत मतदान हुआ. एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है और ना ही परिवारवाद का. यदि नीतीश कुमार चाहते तो अपने बेटे निशांत को आगे कर सकते थे. मगर उन्होंने उसे नेपथ्य में ही रखा. इस चुनाव में नीतीश कुमार अकेले ऐसे खिलाड़ी रहे जिन्होंने सबसे ज्यादा अच्छा किया. पिछले बार के मुकाबले. नीतीश कुमार ने भले ही बिहार में कोई-कोई एक्सप्रेसवे ना बनवाया हो मगर सड़कें खूब बनवाई. जिससे लोगों का एक शहर से दूसरे शहर जाने में वक्त बचा. जिसका लोगों के दिमाग में वोट देते वक्त भी असर रहा.
विकास कार्य
जो भी अब पटना आता है वह एक बार पटना का मैरिन ड्राइव देखना नहीं भूलता. भले ही वो गोलघर नहीं जाता ना ही म्यूजियम जाता है मगर मैरिन ड्राइव जरूर जाता है. वहां खुली बस की ड्राइव जरूर लेता है. भले ही नीतीश कुमार ने पटना को छोड़ कर किसी और शहर को इतना विकसित नहीं किया है कि इलाज और पढ़ाई से लेकर एयरपोर्ट तक एक ही जिले में मिल जाए मगर लोगों में एक उम्मीद तो जरूर दी है. यही है नीतीश कुमार जिसे बिहार की जनता ने भर-भर कर वोट दिया है कि वही अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लें.
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