- मधुबन विधानसभा सीट पूर्वी चंपारण जिले की प्रतिष्ठित सीट है, जो शिवहर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है
- इस सीट पर 1957 से राजनीतिक बदलाव हुए, जिसमें कांग्रेस, वाम दल और जनता पार्टी का दबदबा रहा है
- वर्ष 2005 के बाद मधुबन सीट एनडीए गठबंधन का मजबूत गढ़ बन गई, जिसमें जदयू और भाजपा ने जीत हासिल की
बिहार की मधुबन विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर है. पूर्वी चंपारण जिले की ये प्रतिष्ठापूर्ण सीट है. यह सीट शिवहर लोकसभा सीट के तहत आती है. सामान्य वर्ग की इस सीट पर बीजेपी और आरजेडी में सीधा मुकाबला है. 1957 के बाद से यह सीट बिहार में कई बड़े सियासी बदलावों की गवाह रही है. मधुबन बिहार के गंगा मैदान का एक हिस्सा है, जो अपनी उपजाऊ भूमि और कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए मशहूर है. धान, गेहूं और मक्का यहां की प्रमुख फसलें हैं. आम के बगीचे और नहरों का बड़ा जाल यहां दिखता है. मधुबन के मंदिर, दरगाह और साप्ताहिक बाजार सामाजिक-सांस्कृतिक एकता का प्रतिबिंब हैं.
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो मधुबन विधानसभा सीट 1957 में बनी थी. 1957 से 2020 तक यहां 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. प्रारंभिक वर्षों में मधुबन विधानसभा चुनाव कांग्रेस और वाम दलों का दबदबा रहा. 1957 में यहां से एक निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे और 1962 में कांग्रेस ने विजय पताका लहलाई. फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने लगातार 3 बार जीत से अपनी गहरी पैठ बनाई.
कांग्रेस ने 1977 और 1980 में वापसी की. जनता पार्टी के नेता सीताराम सिंह ने 1985 में यहां विजय पताका फहराई और फिर यहां अपना दबदबा बनाया. सीताराम सिंह ने 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट और 2000 में राजद उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की. वो बिहार सरकार में मंत्री भी बनाए गए.
वर्ष 2005 के बाद मधुबन सीट का सियासी रुख बदल गया. यह एनडीए गठबंधन का मजबू किला बन गई. जदयू ने वर्ष 2005 और 2010 में जीत हासिल की.वर्ष 2015 और 2020 में भाजपा ने यह सीट अपने नाम की. लगातार दो बार जीत के साथ भाजपा ने यहां मजबूत पैठ बनाई है.
इस बार मधुबन विधानसभा सीट से आठ उम्मीदवार मैदान में हैं. भाजपा ने निवर्तमान विधायक राणा रंधीर को फिर टिकट दिया है.राजद ने संध्या रानी को प्रत्याशी बनाया है. जन सुराज ने शिव शंकर राय को प्रत्याशी बनाया है. मधुबन सीट पर किसान, यादव, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक मतदाताओं की तादाद ज्यादा है. एनडीए के सामने इस बार 20 साल पुराना दबदबा बनाए रखने की चुनौती है.
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