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बिहपुर विधानसभा : इस बार फिर महकेगा कमल या जलेगी लालटेन, पार्टियों ने लगाया जोर

बिहपुर विधानसभा सीट पर सत्ताधारी बीजेपी (NDA) का कब्ज़ा है. पिछले कुछ चुनावों से यहां सत्ता बदलती रही है. यह सीट हमेशा से कांटे की टक्कर वाली रही है.

बिहपुर विधानसभा : इस बार फिर महकेगा कमल या जलेगी लालटेन, पार्टियों ने लगाया जोर

बिहार विधानसभा चुनाव में बिहपुर सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 152) बिहार के भागलपुर ज़िले के अंतर्गत आती है, जो कुल सात विधानसभा सीटों वाला ज़िला है. यह एक सामान्य (General) सीट है. इस क्षेत्र की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह गंगा और कोसी नदियों से घिरा हुआ है. इसके कारण यहां की राजनीति पर हर साल आने वाली बाढ़ और कटाव की समस्या का गहरा असर रहता है. 

इस बार क्या प्रमुख मुद्दे हैं?

  • बिहपुर की राजनीति में भौगोलिक चुनौतियों और जातीय ध्रुवीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. 
  • बाढ़ और कटाव बिहपुर का केंद्रीय मुद्दा है. नदियों के तेज कटाव के कारण कई गांवों की उपजाऊ भूमि नष्ट हो गई है. 
  • स्थानीय निवासियों की मुख्य मांग कटाव पीड़ितों के प्रभावी पुनर्वास और कटाव से बचाव के स्थायी उपायों को लेकर है.
  • क्षेत्र में बड़े उद्योगों की कमी से रोज़गार का अभाव है, जिसके चलते शिक्षित युवाओं का पलायन एक निरंतर चुनौती है.

वोटों का गणित और जातीय समीकरण

बिहपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 2.95 लाख है. सामाजिक समीकरणों की दृष्टि से यह सीट काफी विविधतापूर्ण है. जातीय आंकड़ों के अनुसार यहां पर ओबीसी, दलित और मुस्लिम मतदाता मिलकर 65% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो यहां के चुनावी परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं.

पिछली हार-जीत का हिसाब

बिहपुर सीट पर पिछले चार चुनावों से सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच रहा है. इनके बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है. 2020 में कुमार शैलेन्द्र (बीजेपी) ने 6,129 मतों से जीत हासिल की थी. उन्होंने शैलेश मंडल (राजद) को हराया था. उससे पहले 2015 में वर्षा रानी (राजद) को 12,716 मतों से जीत मिली थी. 2010 में कुमार शैलेन्द्र (बीजेपी) महज 465 मतों के अंतर से विधायक बने तो 2005 में शैलेश कुमार (राजद) ने 442 मतों से जीत हासिल की थी. 

इस बार माहौल क्या है? 

बिहपुर विधानसभा सीट पर सत्ताधारी बीजेपी (NDA) का कब्ज़ा है. पिछले कुछ चुनावों से यहां सत्ता बदलती रही है. यह सीट हमेशा से कांटे की टक्कर वाली रही है. आगामी चुनाव में बीजेपी अपने वर्तमान विधायक की व्यक्तिगत अपील और केंद्र-राज्य सरकार की योजनाओं के दम पर सीट बरकरार रखने की कोशिश करेगी. वहीं महागठबंधन (राजद) बाढ़ और कटाव से त्रस्त मतदाताओं के असंतोष, ओबीसी (यादव) और मुस्लिम वोटों के एकजुट होने की उम्मीद पर यह सीट वापस जीतने की ज़ोरदार कोशिश में है. 

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