
- बिहार के सुपौल जिले के मरौना प्रखंड में कोसी नदी की तेज धार पार करते हुए शिक्षक और बूथ लेवल ऑफिसर जोखिम भरे हालात में मतदान केंद्रों तक पहुंच रहे हैं.
- घोघरारिया पंचायत के लक्ष्मीनिया गांव से सामने आए वीडियो में बीएलओ कमर से ऊपर पानी में डूबकर मतदान केंद्र तक पहुंचने की कोशिश करते दिखे.
- भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए मतदाता सूची के पुनरीक्षण का जिम्मा बीएलओ को सौंपा है, जो बाढ़ प्रभावित इलाकों में कार्य कर रहे हैं.
बिहार के सुपौल जिले के मरौना प्रखंड क्षेत्र में कोसी नदी की तेज धार को चीरते हुए शिक्षक सह बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) जान जोखिम में डालकर मतदान केंद्रों तक पहुंच रहे हैं. घोघरारिया पंचायत के लक्ष्मीनिया गांव से जो दो वीडियो सामने आए है, उन्होंने प्रशासनिक तैयारियों की पोल खोलकर रख दी. इन वीडियो में साफ दिख रहा है कि बीएलओ पांचू राम समेत कई कर्मचारी कमर से ऊपर तक पानी में डूबकर नदी पार कर रहे हैं.
नदी में बचाओ, बचाओ चिल्लाते नजर आए BLO
नदी पार करते समय कुछ बीएलओ "बचाओ-बचाओ" चिल्लाते नजर आए. एक अन्य वीडियो में एक बीएलओ छाती तक पानी में डूबते हुए जोखिम भरे हालात में मतदान केंद्र तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है. यह दृश्य न केवल खतरनाक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि चुनावी जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है. भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए मतदाता सूची के पुनरीक्षण, नाम जोड़ने और हटाने जैसे कार्यों का जिम्मा बीएलओ को सौंपा गया है.
मतदान केंद्रों तक जाने को जोखिम में डाल रहे जान
कोसी तटबंध के भीतर के गांवों तक पहुंचने के लिए उन्हें जलजमाव और बाढ़ के खतरे से जूझना पड़ रहा है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में स्थित मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए बीएलओ को बेहद कठिन और जोखिम भरे रास्तों से गुजरना पड़ रहा है. मरौना बीडीओ रचना भारतीय ने दावा किया कि कोसी तटबंध के भीतर जलजमाव वाले स्थानों पर नाव की व्यवस्था कराई गई है. हालांकि, सामने आए वीडियो जमीनी हकीकत को बयां करते हैं, जो प्रशासन के दावों से उलट है.
इन खतरनाक परिस्थितियों के बावजूद बीएलओ अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुटे हैं. लेकिन उनकी जान पर बना खतरा गंभीर सवाल उठाता है कि क्या प्रशासन ने उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम किए हैं? यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि प्रशासनिक तैयारियों पर भी सवाल खड़ा करती है.
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