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बिहार चुनाव 2025 : तेज प्रताप के RJD से बेदखल होने के बाद हसनपुर सीट पर क्या बदलेगा जनता का रुख

खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में आने वाली हसनपुर सीट राजनीति हमेशा से जमीन और जमीर की लड़ाई रही है. इसके साथ ही यह सीट लालू प्रसाद यादव के परिवार की रणनीति का प्रयोग स्थल भी बनी.

बिहार चुनाव 2025 : तेज प्रताप के RJD से बेदखल होने के बाद हसनपुर सीट पर क्या बदलेगा जनता का रुख

बिहार का हसनपुर भी 243 विधानसभा सीटों में से एक है. ये समस्तीपुर जिले में आता है. ये खगड़िया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. ये एक ऐसी सीट है जो समस्तीपुर जिले के रोसड़ा अनुमंडल में स्थित है.  हसनपुर 1967 में विधानसभा क्षेत्र बना. साल 2000 के बाद से ये सीट आरजेडी और जेडीयू के बीच सीधी टक्कर का केंद्र बन गई, लेकिन इस सीट को असली राष्ट्रीय सुर्खियां तब मिलीं,जब 2020 में यहां से लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया गया. इससे पहले तेज प्रताप महुआ से उम्मीदवार थे. दरअसल, तेज प्रताप को 2015 में महुआ में 21 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली. इसके बाद लालू यादव ने तेज प्रताप के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश करनी शुरू की. इसके लिए हसनपुर का चुनाव किया गया क्योंकि यहां 30 प्रतिशत यादव आबादी है.आरजेडी के तेज प्रताप यादव ने जेडीयू के राजकुमार राय को 21,139 वोटों के बड़े अंतर से मात दी. तेज प्रताप को 80,991 वोट मिले, जबकि राजकुमार राय को 59,852 वोट मिले. यादव और मुस्लिम समीकरण ने इस सीट पर तेज प्रताप की जीत को सुनिश्चित किया.

लालू परिवार की रणनीति का प्रयोग स्थल

खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में आने वाली इस सीट राजनीति हमेशा से जमीन और जमीर की लड़ाई रही है. इसके साथ ही यह सीट लालू प्रसाद यादव के परिवार की रणनीति का प्रयोग स्थल भी बनी.

इस बार आरजेडी और जेडीयू के बीच देखने को मिल सकती है कांटे की टक्कर

हसनपुर सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है. इस सीट पर जेडीयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल सकती है. एक दिलचस्प बात ये भी है कि लालू परिवार ने अपने बेटे तेज प्रताप को पार्टी से बेदखल कर दिया है और तेज प्रताप ने अपनी पार्टी अलग बना ली है, सो कई रोचक तथ्य इस बार चुनाव में सामने आ सकते हैं.

तेज प्रताप से पहले समाजवादी गजेंद्र प्रसाद हिमांशु का गढ़ रही है ये सीट

तेजप्रताप से पहले इस सीट को समाजवादी विचारधारा के गजेंद्र प्रसाद हिमांशु के गढ़ के रूप में जाना जाता था.उन्होंने यहां 9 में 7 बार चुनाव जीता. वे एक पार्टी से जुड़कर नहीं रहे. वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) जैसे समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों से जुड़े रहे. उनकी छवि एक ईमानदार और सिद्धांतों पर चलने वाले नेता की मानी जाती थी. उनके राजनीतिक करियर में उन्हें दो बार मंत्री और बिहार विधानसभा के उप-अध्यक्ष का पद मिला.

खेती पर निर्भर हैं यहां के लोग

हसनपुर की बात करें तो ये ग्रामीण क्षेत्र में आता है. यहां की आबादी कृषि पर निर्भर है. कमला और बूढ़ी गंडक नदियों के कारण यहां की भूमि उपजाऊ है.

वोटरों का समीकरण जानें

मतदाताओं की बात करें तो हसनपुर में लगभग 2,99,401 (2024 तक) पंजीकृत मतदाता हैं. वहीं जातीय समीकरण में यादव, कुशवाहा, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग शामिल है. यादवों की आबादी सबसे अधिक यानी 30 प्रतिशत से अधिक, अनुसूचित जाति 17.55 प्रतिशत और मुस्लिम 11.20 प्रतिशत के करीब हैं. आरजेडी को यहां यादव और मुस्लिम समीकरण से फायदा हुआ है, वहीं जेडीयू-बीजेपी का गठबंधन पिछड़ा वर्ग, महादलित और कुशवाहा वोटरों के भरोसे दिखता है. (इनपुट IANS से भी)

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