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49% पर नजर, वादों का क्‍या होगा असर? बिहार चुनाव में एनडीए बनाम महागठबंधन, महिला वोटर पर फोकस

बिहार में कुल मतदाताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 49% है. 2010 से लेकर 2020 तक हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान करती रही हैं. यही कारण है कि दोनों गठबंधनों ने इस बार महिलाओं पर सबसे बड़ा दांव लगाया है.

49% पर नजर, वादों का क्‍या होगा असर? बिहार चुनाव में एनडीए बनाम महागठबंधन, महिला वोटर पर फोकस
  • बिहार चुनाव में महिलाओं को लेकर एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने घोषणापत्रों में विशेष वादे किए हैं.
  • बिहार में कुल मतदाताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 49% है. यही कारण है कि हर दल उन्‍हें लुभाने में लगा है.
  • 2010 से लेकर 2020 तक हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान करती रही हैं.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सबसे बड़ा आकर्षण इस बार महिलाओं को लेकर हो रहा राजनीतिक विमर्श है. एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने-अपने घोषणापत्रों और चुनावी सभाओं में महिलाओं को केंद्र में रखकर वादों की बौछार कर दी है. सवाल यह है कि कौन-सा गठबंधन महिलाओं के लिए अधिक भरोसेमंद एजेंडा पेश कर रहा है और इन वादों का वास्तविक असर क्या होगा?

अगर आप एनडीए के महिला एजेंडा पर नजर डालें तो उसमें सबसे सशक्‍त और बड़ी घोषणा मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना है. जेडीयू के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने हाल ही में 1 करोड़ 6 लाख से अधिक महिलाओं को 10-10 हजार रुपए देने की योजना शुरू की है. पहली किस्त 75 लाख महिलाओं को डीबीटी के जरिए सीधे बैंक खाते में भेजी भी दी गई है. इस कार्यक्रम का उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया. 

सरकार का दावा है कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना है. 

उज्ज्वला और जनधन योजना का जिक्र

दूसरी चर्चा उज्ज्वला और जनधन योजना की है. भाजपा बार-बार उज्ज्वला गैस योजना का उल्लेख करती है, जिसके तहत बिहार में लाखों महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया है. प्रधानमंत्री बार-बार इसका जिक्र करते हैं कि कैसे इस योजना ने ग्रामीण महिलाओं को कई तरह की बीमारियों से बचाया है. 

वहीं जनधन योजना ने महिलाओं को बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर आर्थिक स्वतंत्रता का अहसास दिलाया. एनडीए का यह भी दावा है कि बिहार में महिला हेल्पलाइन, साइबर सेल और आरक्षण नीतियों से महिलाओं की सुरक्षा और भागीदारी बढ़ी है. 50% पंचायत आरक्षण को नीतीश कुमार अपनी “महिला क्रांति” की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. 

अगर बात शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र की करें तो ‘साइकिल योजना' और ‘पोशाक योजना' ने ग्रामीण बच्चियों के स्कूल जाने की संख्या में वृद्धि की और इसे बड़ा क्रांतिकारी कदम माना जाता है. भाजपा ने यहां तक वादा किया है कि हर जिले में महिला मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल खोले जाएंगे.

महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा

वहीं अगर महागठबंधन के महिला एजेंडे को देखा जाए तो वह अधिकार और अवसर की बात करता है. राजद ने वादा किया है कि महिलाओं को न्यूनतम 15 हजार रुपए वार्षिक भत्ता दिया जाएगा, ताकि वे अपने घर और बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर सकें. यह योजना सीधे गरीब परिवारों की महिलाओं को आकर्षित करती है. महागठबंधन ने यह भी घोषणा की है कि सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू किया जाएगा. साथ ही, सभी सरकारी दफ्तरों में महिलाओं के लिए अलग कार्य वातावरण और सुरक्षित कैंपस का वादा किया गया है.

कांग्रेस और लेफ्ट दलों ने मिलकर महिला साक्षरता को प्राथमिक एजेंडा बनाया है. “हर बेटी, स्नातक बेटी” अभियान के तहत ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई मुफ्त करने का वादा किया गया है. महागठबंधन का दावा है कि आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को बेहतर मानदेय देकर मातृ-शिशु पोषण योजनाओं को प्रभावी बनाया जाएगा और ग्रामीण क्षेत्रों में महिला हेल्थ क्लिनिक खोले जाएंगे.

दोनों पक्षों की चुनावी भाषा की अगर तुलना करें तो ये ‘मां बनाम बहन-बेटी' जैसा दिखता है. एनडीए अपने चुनावी नारों में “मां के आशीर्वाद से मोदी” जैसे भावनात्मक प्रतीकों का इस्तेमाल कर रहा है. वही महागठबंधन “लड़की पढ़ेगी, बिहार बढ़ेगा” और “बहन-बेटी का हक” जैसे नारे देकर सामाजिक न्याय से महिला सशक्तिकरण को जोड़ रहा है. बीजेपी मंदिर और आस्था के प्रतीकों से महिला वोट को साधने की कोशिश में है तो राजद-कांग्रेस महिला अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा को चुनावी हथियार बना रहे हैं.

महिला वोट बैंक पर क्‍यों है सभी की नजर

इस पूरे महिला मुकाबले के महिला वोट बैंक का गणित देखना दिलचस्प होगा. आखिर ऐसा क्या है कि सभी दल और सभी कुनबे महिलायों को रिझाने में लगे है. बिहार में कुल मतदाताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 49% है. 2010 से लेकर 2020 तक हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान करती रही हैं. यही कारण है कि दोनों गठबंधनों ने इस बार महिलाओं पर सबसे बड़ा दांव लगाया है.

एनडीए के चुनाव प्रचार में महिला मोर्चा की टीमें गांव-गांव जाकर योजनाओं का लाभ गिनवा रही हैं, वही महागठबंधन की ओर से राजद महिला सेल और कांग्रेस महिला विंग घर-घर जाकर “महिला सहायता योजना” और आरक्षण का संदेश पहुंचा रही हैं. सोशल मीडिया पर भी महिला इन्फ्लुएंसर्स और कार्यकर्ताओं के वीडियो क्लिप्स भी बड़ी संख्या में चलाए जा रहे हैं.

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