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बिहार में आज से चुनाव प्रचार शुरू करेंगे योगी आदियनाथ, क्या BJP को होगा उनकी कट्टर हिंदुत्वादी छवि का फायदा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज से बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार में उतर रहे हैं. पहले दिन उनकी दो जनसभाएं होनी है. क्या बीजेपी उनके जरिए हिंदुत्व की राजनीति को धार देना चाहती है, बता रहे हैं रंजन ऋतुराज.

बिहार में आज से चुनाव प्रचार शुरू करेंगे योगी आदियनाथ, क्या BJP को होगा उनकी कट्टर हिंदुत्वादी छवि का फायदा
पटना:

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से अपनी आध्यात्मिक सह राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले योगी आदित्यनाथ की छवि समस्त उत्तर भारत में एक कट्टर हिंदूवादी नेता की बन चुकी है. खासकर बिहार के राजपूत योगी जी में आगे की मंजिल भी देखते हैं. बिहार के अंदर उनकी अपनी एक अलग फैन फॉलोइंग है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की योजना योगी आदित्यनाथ की करीब 20 जनसभाएं कराने की है.

योगी आदित्यनाथ का असर

इसका एक उदाहरण यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भूमिहार बाहुल्य सिवान के गोरियाकोठी में बीजेपी प्रत्याशी देवेश कांत सिंह के विरोध में राजपूत खड़े थे, लेकिन जब वहां योगी आदित्यनाथ गरजने लगे तो रातों-रात सारे राजपूत बीजेपी की तरफ मुड़ गए. योगी आदित्यनाथ आज सर्वमान्य हिंदू नेता बन चुके हैं. आज वो पटना के दानापुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव के लिए प्रचार करेंगे. आज के चुनाव प्रचार का असर पटना के बाकी क्षेत्रों पर भी होना चाहिए. 

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अभी तक बिहार के राजनेता सिंबल बंटवारे में ही व्यस्त हैं. कभी कोई रूठ रहा है तो कभी कोई मान जा रहा है, इन सबके बीच बीजेपी आज से अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतार रही है. यह भाजपा की रणनीति साफ बता रही है. 

बीजेपी का सवर्ण प्रेम

भाजपा ने अपने हिस्मे में आई 90 सामान्य सीटों में से क़रीब 21 पर राजपूत उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. बिहार में योगी की करीब 20 जनसभाएं होनी हैं. योगी फैक्टर फ्लोटिंग और टिकट बंटवारे से नाखुश मतदाताओं को लुभाने में काफी मददगार होगा. बिहार में करीब 3.5 फीसदी राजपूत हैं. लेकिन बीजेपी ने उन्हें 25 फीसदी टिकट दिए हैं. मतलब साफ है की पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कम सीट की जीत के बाद बीजेपी राजपूत समाज को नाखुश नहीं देखना चाहती है. 

अभी तक बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव को धर्म का रंग नहीं दे पाई है और ना ही महागठबंधन इसे अगड़ा- पिछड़ा का रूप दे पाया है. इस हालात में जब चुनाव पूर्व धनतेरस से लेकर छठ महापर्व और कार्तिक पूर्णिमा तक हैं, मतदाता किस आधार पर मतदान करने के बारे में सोचेंगे.

बिहार के कई मुद्दे गौण हैं. धर्म और जाति में उलझा समाज राजनेताओं के भाषण के बीच अपनी सोच किधर बढ़ाएगा, यह एक प्रश्न है. 

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