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भोजपुरी लोकगीतों की जान बिजली रानी के निधन से एक युग का अंत, किडनी की थी समस्या और आखिरी समय में रहीं तन्हा

बचपन से ही लोकसंगीत और नौटंकी के मंचों से उनका लगाव रहा घर की आर्थिक परिस्थिति कमजोर थी, लेकिन सुर उनके लिए हिम्मत बन गया. यही कारण था कि बहुत छोटी उम्र में उन्होंने गांव–गांव घूमकर लोकगीत, सोहर, कजरी, झूमर और बिरहा गाना शुरू किया.

भोजपुरी लोकगीतों की जान बिजली रानी के निधन से एक युग का अंत, किडनी की थी समस्या और आखिरी समय में रहीं तन्हा

भोजपुरी संगीत की मिट्टी में एक चमकदार नाम था बिजली रानी. मंच पर उनकी उपस्थिति ऐसी होती थी कि भीड़ हजारों में हो या लाखों में, सब एक पल को सांस रोककर उन्हें सुनते थे. उनका गीत सिर्फ आवाज़ नहीं था, लोकजीवन की धड़कनों का दस्तावेज था. उनकी गायकी में गांव की चौपाल की महक थी, मेले-ठेले की रौनक थी और स्त्री-संवेदना की करुणा भी. साधारण परिवार से निकली यह असाधारण कलाकार बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के सिर्फ अपनी मेहनत, अपने हुनर और अपनी लगन से भोजपुरी संगीत की दुनिया में वह मुकाम हासिल कर गई, जिसे पहचान कहते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी विरासत है, लेकिन 24 अक्टूबर 2025 का दिन भोजपुरी संगीत जगत के लिए काले अक्षरों में दर्ज हो गया बिजली रानी अब इस दुनिया में नहीं रहीं. करीब 70 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया और उनके साथ भोजपुरी का एक लोकयुग समाप्त हो गया.

घर की आर्थिक स्थिति थी कमजोर

बिजली रानी बिहार के रोहतास जिले के नटवार क्षेत्र की रहने वाली थी. वे किसी बड़े खानदान या संगीत परिवार से नहीं आई थीं, उनका सफर संघर्षों से भरा था. बचपन से ही लोकसंगीत और नौटंकी के मंचों से उनका लगाव रहा घर की आर्थिक परिस्थिति कमजोर थी, लेकिन सुर उनके लिए हिम्मत बन गया. यही कारण था कि बहुत छोटी उम्र में उन्होंने गांव–गांव घूमकर लोकगीत, सोहर, कजरी, झूमर और बिरहा गाना शुरू किया.

बिजली रानी की आवाज में माटी की सोंधी खुशबू

बिजली रानी की आवाज में माटी की सोंधी खुशबू थी. वह बड़ी कलाकार इसलिए थीं क्योंकि वह जहां गाती थीं, वहां लोग खुद-ब-खुद रुक जाते थे. लोकगीतों को परफॉर्म करने का उनका अंदाज बेहद जोशीला और जिंदादिल था. वह सिर्फ गायिका नहीं, स्टेज की रानी थीं. उनकी बहन चांद रानी के साथ उनकी जोड़ी विशेष रूप से चर्चित रहीं. उनके कुछ प्रसिद्ध लोकगीत आज भी गांवों में शादी-ब्याह के अवसर पर बजते हैं. वो कहती थीं- "लोकगीत पैसा कमाने के लिए नहीं, लोगों के दिल में उतरने के लिए गाया जाता है."

भोजपुरी संगीत जगत आज फिल्मों और एलबमों की ओर बढ़ चुका है, लेकिन एक दौर ऐसा था जब स्टेज शो और लोक मंच ही भोजपुरी गीतों की जान हुआ करते थे. उस दौर की सबसे चमकीली लोकमंच की कलाकारों में बिजली रानी का नाम गर्व से लिया जाता है.

  • उन्होंने लोकसंगीत को जीवित रखने में बड़ा योगदान दिया
  • महिलाओं की भागीदारी को सांस्कृतिक मंचों पर बढ़ाया
  • ग्रामीण संस्कृति का सम्मान बढ़ाने में मदद की
  • भोजपुरी पहचान को जनता के बीच पहुंचाया

किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं...

जीवन के अंतिम वर्षों में बिजली रानी किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं. इलाज के अभाव और आर्थिक परेशानी उनके लिए बड़ा संकट बन गए. समय ने ऐसा मोड़ लिया कि जिस कलाकार ने जीवनभर भीड़ को खुश किया वह खुद अपने अंतिम दिनों में तन्हा पड़ने लगीं. इस दौरान भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने उनके इलाज के लिए आर्थिक मदद की थी, लेकिन बीमारी आखिर जीत ही गई.

उनके निधन की खबर जैसे ही फैली, भोजपुरी संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई. लोग कह उठे- 'एक आवाज़ चली गई… जिसे कोई बदल नहीं सकता'. रोहतास के नटवार गांव में जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो हजारों लोग उमड़ पड़े. गांव की महिलाओं ने रो-रोकर कहा- 'हमनी के रानी आज हमके छोड़ के चल गइली…'

बिजली रानी ने दिखाया लोककला कभी मरती नहीं

बिजली रानी ने दिखाया कि लोककला कभी मरती नहीं जब तक कलाकार जिंदा होते हैं. आज भी हजारों लोकगायिका उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानती हैं, उनका नाम भोजपुरी सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा. बिजली रानी चली गईं, लेकिन उनके गीत, उनके सुर, उनकी आत्मा हमेशा जिंदा रहेगी. उनकी कहानी याद दिलाती है, कलाकार मरते नहीं, उनके होने की पहचान गायन की लय में, लोक की धुनों में और अपनी मिट्टी की सांसों में हमेशा गूंजती रहती है.

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