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This Article is From Oct 11, 2015

पहले चरण के मतदान में दलित नेताओं और बागियों के बीच कड़ी रस्साकशी

पहले चरण के मतदान में दलित नेताओं और बागियों के बीच कड़ी रस्साकशी
चकई: बिहार विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर बीजेपी के दो घटक दलों के बीच प्रभुत्ता की लड़ाई और महागठबंधन की गूंज महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है। राज्य में पहले चरण के तहत सोमवार को 49 सीटों पर मतदान होगा।

चकई में हम (एस) प्रमुख जीतन राम मांझी राज्य में सर्वाधिक कद्दावर दलित नेता के पद से एलजेपी प्रमुख रामविलास पासवान को उखाड़ फेंकने की फिराक में हैं, जहां वर्तमान विधायक सुमित सिंह एलजेपी की ओर से एनडीए के आधिकारिक उम्मीदवार विजय सिंह के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। सुमित सिंह 'हम' के शीर्ष नेता नरेन्द्र सिंह के बेटे हैं।

एलजेपी उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे एक बीजेपी नेता दिवेश सिंह ने कहा कि यह हमारे लिए सुरक्षित सीट थी, लेकिन अब कुछ भी हो सकता है। रणनीतिक चाल के तहत आरजेडी ने चकई से पूर्व विधायक और बीजेपी नेता की विधवा को चुनाव मैदान में उतारा है।

एलजेपी के प्रदेश प्रमुख पशुपति पारस अलौली सीट पर अपने दबदबे को बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2010 के चुनाव में एक चतुर चाल चलकर अनुसूचित जाति वर्ग से महादलित को मैदान में उतारा था, जिसकी कीमत पासवान के भाई को अपनी सीट गंवाकर चुकानी पड़ी थी। अब पासवान सर्वाधिक गरीब जातियों के अपने खोए जनाधार को पाने के लिए मांझी की अपील पर निर्भर हैं।

अपने बढ़ते कद की अहमियत बताने के लिए मांझी ने हाल ही में कहा था कि पासवान ने उनसे अलौली में फोन के जरिए जनसभा को संबोधित करने की अपील की, क्योंकि वह खुद इसमें शामिल नहीं हो सके थे।

दलित वोट बैंक पर भरोसा करने वाले एनडीए के दोनों घटक दलों के नेताओं के बीच इस प्रकार की रस्साकशी चल रही है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मखदूमपुर रैली रद्द हो गई, तो बहुतों को इस बात की हैरानी हुई थी कि क्या 'हम' प्रमुख अपने ही क्षेत्र में घिर गए हैं और उन्हें मोदी के प्रचार की जरूरत है। इस सीट से मांझी चुनाव लड़ रहे हैं। 'हम' ने हालांकि जोर देकर कहा कि मांझी को अपने प्रचार के लिए किसी दूसरी पार्टी के बड़े नेता की जरूरत नहीं है।

उधर, दूर भागलपुर में राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन और बक्सर से सांसद अश्विनी चौबे के बीच प्रतिद्वंद्विता का मामला बीजेपी नेता विजय शाह के निर्दलीय के रूप में चौबे के बेटे और पार्टी उम्मीदवार अरिजीत शाश्वत के खिलाफ मैदान में कूद पड़ने से जुड़ा हुआ है।

बीजेपी खेमे में ऐसी खलबली मची है कि पार्टी प्रमुख अमित शाह के अलावा सुशील कुमार मोदी जैसे राज्य के शीर्ष नेताओं को वैश्य समुदाय के नेताओं से वार्ता करनी पड़ी, ताकि शहरी विधानसभा क्षेत्र में वे शाश्वत का समर्थन करें। साल 2014 के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत से पूर्व इसे बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सीमांचल के अलावा पूर्वी बिहार में एनडीए उतनी मजबूत स्थिति में नहीं है जितनी अन्य क्षेत्रों में। पूर्वी बिहार में सोमवार को मतदान होना है। बीजेपी ने पारंपरिक रूप से 49 सीटों में से अधिकतर पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं और इस बार भी उसके घटक दल एलजेपी, आरएलएसपी तथा हम इनमें से 22 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।

आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन के नेताओं का दावा है कि उम्मीदवारों के चयन के मामले में वे अपने एनडीए प्रतिद्वंद्वियों से बेहतर हैं लेकिन पप्पू कार्ड के चलते कई स्थानों पर उनकी संभावनाएं खतरे में पड़ सकती हैं। आरजेडी के निष्कासित नेता पप्पू यादव ने रणनीतिक चाल चलते हुए मुस्लिम और यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनमें से कई आरजेडी और जेडीयू से जुड़े रहे हैं और टिकट नहीं मिलने को लेकर गुस्से में थे।

नाथनगर में आरजेडी के पूर्व विधायक अबू कैसर को पप्पू यादव ने मैदान में उतारा है, जिससे वर्तमान जेडीयू विधायक अजय मंडल के लिए मुकाबला कड़ा हो गया है। पप्पू यादव राज्य का सघन दौरा कर रहे हैं और महागठबंधन के नेता उन पर बीजेपी के इशारों पर उनकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं।

स्थानीय कांग्रेस नेता विनय शर्मा ने कहा कि निश्चित रूप से वह हमारे नुकसान के लिए ऐसा कर रहे हैं। हालांकि वह कितना सफल होंगे, अभी यह पक्का नहीं है।

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