 
                                            प्रतीकात्मक फोटो
                                                                                                                        - 29 वर्षों से जारी है भोपाल गैस कांड के पीड़ितों का संघर्ष
- सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग से लेकर नौजवान तक एकत्रित होते हैं
- एक-दूसरे की समस्याएं सुनते हैं और मदद भी करते हैं
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                                                                                भोपाल: 
                                        मध्य प्रदेश की राजधानी भेापाल के यादगार-ए- शाहजहांनी पार्क का हर शनिवार को नजारा ही निराला होता है, यहां सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग से लेकर नौजवान तक जमा होते हैं और अपने हक का नारा बुलंद करते हैं. बीते 29 वर्षों से यह सिलसिला अनवरत चल रहा है और यह तब तक चलने का दावा किया जाता है जब तक उन्हें अपना हक नहीं मिल जाता या सांस चलती रहेगी.
यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात रिसी मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) गैस ने तीन हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. इसके साथ ही हजारों लोगों को तिल-तिलकर मरने को छोड़ दिया. एक तरफ मरने वालों के परिजन हैं तो दूसरी ओर वे लोग जो मिक से मिली बीमारी से जूझ रहे हैं.
गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने आईएएनएस को बताया, "अक्टूबर 1986 से गैस पीड़ित हर शनिवार को यादगार-ए-शाहजहांनी पार्क में इकट्ठा होते हैं और अपना हक पाने का नारा बुलंद करते हैं. यहां आने वाले गैस पीड़ित अपने दर्द भी एक-दूसरे के बीच साझा करते हैं."
उन्होंने आगे बताया, "बीते 29 वर्षों से गैस पीड़ितों के हर शनिवार को इस पार्क में मिलने का सिलसिला जारी है. यहां पहुंचने वाले अपनी सभी समस्याओं का जिक्र करते हैं, साथ ही एक-दूसरे से राय भी लेते हैं कि क्या किया जाए. यहां आने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रसित होता है या तो वह स्वयं बीमार होता है या उसके परिजन. जिसे अस्पताल से सुविधा नहीं मिल रही है, उसे निजी अस्पताल के अलावा पैथालॉजी से जांच का परामर्श दिया जाता है."
शाहजहांनी पार्क पहुंची यूनियन कार्बाइड से गैस रिसने की रात को याद कर रहीसा बी सहम जाती हैं, वह बताती हैं, "उनका पुतलीघर क्षेत्र में घर है, उनके परिवार में पति नसीर के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी, गैस रिसने पर उनकी आंखों में मिर्ची जैसी लगी और सांस रुकने लगी. किसी तरह अपनी जान बचाई, मगर बीमारी ने पति को उनसे छीन लिया."
रहीसा बताती हैं कि जब से शनिवार को शाहजहांनी पार्क में बैठक का सिलसिला शुरू हुआ है, तभी से वे लगातार हर शनिवार को इस बैठक में हिस्सा लेने आती हैं. बस अस्वस्थ होने पर बैठक में नहीं आ पातीं. यह बैठक उन्हें अपनी समस्याएं बताने का मौका देती है, इतना ही नहीं समस्या के समाधान के लिए सहयोग भी मिलता है.
गैस पीड़ितों का कहना है कि उन्हें मुआवजे से लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं जो कुछ भी मिला है, वह सब संघर्ष के चलते ही मिला. राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकारें बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ खड़ी रही हैं, मगर न्यायालय के हस्तक्षेप ने उन्हें बहुत कुछ दिलाया, मगर वह नाकाफी है. यही कारण है कि उनकी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी.
भोपाल गैस हादसे को भले ही 32 वर्ष का वक्त गुजर चुका हो, मगर अपना हक पाने की लड़ाई लड़ने वालों को अब भी आस है कि एक दिन उनकी जीत जरूर होगी. शाहजहांनी पार्क पहुंचने वालों की आंखों में हक की आस आसानी से पढ़ी जा सकती है, उनका जुनून बरकरार है. वे इस बात पर अडिग हैं कि जब तक उनकी सांस चल रही है, वे अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे और शाहजहांनी पार्क में मिलते रहेंगे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
                                                                        
                                    
                                यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात रिसी मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) गैस ने तीन हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. इसके साथ ही हजारों लोगों को तिल-तिलकर मरने को छोड़ दिया. एक तरफ मरने वालों के परिजन हैं तो दूसरी ओर वे लोग जो मिक से मिली बीमारी से जूझ रहे हैं.
गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने आईएएनएस को बताया, "अक्टूबर 1986 से गैस पीड़ित हर शनिवार को यादगार-ए-शाहजहांनी पार्क में इकट्ठा होते हैं और अपना हक पाने का नारा बुलंद करते हैं. यहां आने वाले गैस पीड़ित अपने दर्द भी एक-दूसरे के बीच साझा करते हैं."
उन्होंने आगे बताया, "बीते 29 वर्षों से गैस पीड़ितों के हर शनिवार को इस पार्क में मिलने का सिलसिला जारी है. यहां पहुंचने वाले अपनी सभी समस्याओं का जिक्र करते हैं, साथ ही एक-दूसरे से राय भी लेते हैं कि क्या किया जाए. यहां आने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रसित होता है या तो वह स्वयं बीमार होता है या उसके परिजन. जिसे अस्पताल से सुविधा नहीं मिल रही है, उसे निजी अस्पताल के अलावा पैथालॉजी से जांच का परामर्श दिया जाता है."
शाहजहांनी पार्क पहुंची यूनियन कार्बाइड से गैस रिसने की रात को याद कर रहीसा बी सहम जाती हैं, वह बताती हैं, "उनका पुतलीघर क्षेत्र में घर है, उनके परिवार में पति नसीर के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी, गैस रिसने पर उनकी आंखों में मिर्ची जैसी लगी और सांस रुकने लगी. किसी तरह अपनी जान बचाई, मगर बीमारी ने पति को उनसे छीन लिया."
रहीसा बताती हैं कि जब से शनिवार को शाहजहांनी पार्क में बैठक का सिलसिला शुरू हुआ है, तभी से वे लगातार हर शनिवार को इस बैठक में हिस्सा लेने आती हैं. बस अस्वस्थ होने पर बैठक में नहीं आ पातीं. यह बैठक उन्हें अपनी समस्याएं बताने का मौका देती है, इतना ही नहीं समस्या के समाधान के लिए सहयोग भी मिलता है.
गैस पीड़ितों का कहना है कि उन्हें मुआवजे से लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं जो कुछ भी मिला है, वह सब संघर्ष के चलते ही मिला. राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकारें बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ खड़ी रही हैं, मगर न्यायालय के हस्तक्षेप ने उन्हें बहुत कुछ दिलाया, मगर वह नाकाफी है. यही कारण है कि उनकी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी.
भोपाल गैस हादसे को भले ही 32 वर्ष का वक्त गुजर चुका हो, मगर अपना हक पाने की लड़ाई लड़ने वालों को अब भी आस है कि एक दिन उनकी जीत जरूर होगी. शाहजहांनी पार्क पहुंचने वालों की आंखों में हक की आस आसानी से पढ़ी जा सकती है, उनका जुनून बरकरार है. वे इस बात पर अडिग हैं कि जब तक उनकी सांस चल रही है, वे अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे और शाहजहांनी पार्क में मिलते रहेंगे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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