सुनील गावस्कर और कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई प्रदान की (फाइल फोटो)
आजादी के बाद के सात दशक में देश में क्रिकेट ने लंबा सफर किया है. 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी. यह वह दौर था जब मुल्क में क्रिकेट धीरे-धीरे अपनी पैठ बना रहा था. क्रिकेट के खेल में उस समय भारतीय क्रिकेट टीम को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था. यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे स्थापित देश भी भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज खेलने में कोई खास रुचि नहीं लेते थे. कारण यह है कि उस दौर की भारतीय टीम को बेहद कमजोर आंका जाता था. बहरहाल, 2000 के बाद से यह स्थिति बदल चुकी है. आज हम क्रिकेट के सुपरपावर बन चुके हैं. यह दौर भारतीय क्रिकेट की श्रेष्ठता है. हाल के वर्षों में हमने क्रिकेट में एक समय बेहद मजबूत माने जाने वाली वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और पाकिस्तान जैसी टीमों को भी शिकस्त दी है. यह संभव हुआ है 1970 के दशक के बाद क्रिकेट परिदृश्य में ऐसे खिलाड़ियों के बल पर जिन्होंने अपने खेल कौशल का लोहा पूरी दुनिया में मनवाया. नजर डालते हैं ऐसे सात भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों पर जिन्होंने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदलने में अग्रणी भूमिका निभाई.
भारत ही नहीं, दुनिया के महान ओपनर सुनील गावस्कर
सुनील मनोहर गावस्कर को भारत की नहीं, दुनिया का महान ओपनर माना जा सकता है. छोटे कद के सनी ने अपने विकेट के लिए दुनिया के तमाम दिग्गज बल्लेबाजों को पसीना बहाने के लिए मजबूर किया. गावस्कर के स्ट्रेट ड्राइव और फ्लिक शॉट के तो कहने की क्या. तकनीक के लिहाज से मुंबई के इस क्रिकेटर को बेहद ऊंचा आंका जाता है. यह गावस्कर की तकनीक का कमाल ही था कि विश्व क्रिकेट के तेज गेंदबाजों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हेलमेट नहीं पहना. टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले 10 हजार रन का आंकड़ा सुनील गावस्कर ने ही छुआ था. 125 टेस्ट में 34 शतक उनके नाम पर हैं. भारतीय टीम को कप्तान रहते हुए भी उन्होंने कई सफलताएं दिलाई.
गेंदबाजी-बल्लेबाजी दोनों में धुरंधर कपिल देव
हरियाणा का यह हरफनमौला जब मैदान पर उतरता तो मानो स्टेडियम में बिजली कौंध जाती थी. कपिल देव चाहे गेंदबाजी कर रहे हों बल्लेबाजी, क्रिकेटप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र रहते थे. सही मायने में भारत के तेज गेंदबाजी का दौर कपिल के बाद ही शुरू हुआ. वर्ल्डकप-1983 में भारतीय क्रिकेट टीम के चैंपियन बनने को देश के खेल जगत की बड़ी उपलब्धि माना जाता है. कपिल देव ने अपनी कप्तानी और खेल कौशल से इस जीत को संभव बनाया था. इस वर्ल्डकप में कपिल ने जिम्बाब्वे के खिलाफ नाबाद 175 रन की पारी खेली थी जिस आज भी वनडे की यादगार पारियों में शुमार किया जाता है. 131 टेस्ट में 434 विकेट और 5248 रन कपिल की महानता की कहानी खुद बयां करते हैं. वनडे में भी कपिलदेव बेहद कामयाब रहे.
यह भी पढ़ें : देश के मौजूदा तेज गेंदबाजों को लेकर महान कपिल देव ने कह दी यह बड़ी बात
शतकों का बादशाह सचिन तेंदुलकर
सुनील गावस्कर के बाद यदि किसी बल्लेबाज ने अपने खेल कौशल ने दुनिया को चमत्कृत किया तो वे मुंबई के सचिन रमेश तेंदुलकर थे. क्रिकेट का लगभग हर रिकॉर्ड आज सचिन के नाम पर दर्ज है. अपने करीब 25 वर्ष के लंबे करियर में 'छुटके' सचिन ने करोड़ों क्रिकेटप्रेमियों को प्रशंसक बनाया. दुनिया के दिग्गज गेंदबाज भी सचिन से खौफ खाते थे. ऑस्ट्रेलिया के महान लेग स्पिनर शेन वॉर्न ने तो स्वीकार भी किया था कि सचिन उनके सपनों में आते हैं और बल्लेबाजी से उन्हें डराते हैं. वनडे में सबसे पहले 200 रन के बैरियर को सचिन तेंदुलकर ने ही पार किया. इंटरनेशनल क्रिकेट में शतकों का सैकड़ा सचिन के नाम पर है. टेस्ट में उन्होंने 51 और वनडे में 49 शतक बनाए. सबसे बड़ी बात यह कि सचिन ने देशवासियों को कई यादगार जीतों का तोहफा दिया.
'शिकार' करने में माहिर अनिल कुंबले
अनिल कुंबले की गेंदबाजी शैली दाएं हाथ के लेग स्पिनर के लिहाज से आदर्श नहीं थी. आम लेग स्पिनरों के मुकाबले वे गेंद को कुछ तेज गति से फेंकते थी. आलोचकों का कहना था कि कुंबले की गेंद अधिक टर्न भी नहीं करतीं. इसके बावजूद अपनी सटीकता और बल्लेबाज की कमजोरी को पकड़ने की क्षमता ने कुंबले की झोली विकेटों से भर दी. जिम लेकर के बाद टेस्ट क्रिकेट में एक पारी में पूरे 10 विकेट लेने वाले वे दूसरे गेंदबाज हैं. कुंबले ने अपनी करिश्माई गेंदबाजी से कई मौके पर भारतीय टीम को जीतें दिलाईं. वे भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज हैं. टेस्ट क्रिकेट में 619 और वनडे में 337 विकेट उनके नाम पर हैं.
यह भी पढ़ें : कोच अनिल कुंबले के बचाव में उतरे सुनील गावस्कर
भारतीय क्रिकेट की मजबूत दीवार राहुल द्रविड़
राहुल द्रविड़ का विकेट लेना हर किसी गेंदबाज का सपना होता था. डिफेंस के मामले में वे इतने मजबूत थे कि गेंदबाजों में झुंझलाहट पैदा कर देते थे. शोएब अख्तर और ब्रेट ली जैसे नामी गेंदबाज कई बार इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि द्रविड़ को आउट करके उन्हें सबसे ज्यादा संतुष्टि मिलती थी. अपनी इसी खूबी के कारण राहुल को 'भारतीय क्रिकेट की दीवार' की उपमा दी गई थी. राहुल टीममैन थे. भारतीय टीम के हित में वनडे मैचों में उन्होंने विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी भी संभाली. टेस्ट क्रिकेट में 13 हजार और वनडे में 10 हजार से अधिक रन बनाए. अपने बल्लेबाजी कौशल से भारतीय टीम को कई जीतें दिलाईं.
'कैप्टन कूल' एमएस धोनी
क्रिकेट के खेल में दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के दबदबा रहा है लेकिन रांची के धोनी ने इस बात को साबित किया कि छोटे शहर से भी बड़े खिलाड़ी निकल सकते हैं. शॉर्टर फॉर्मेट के क्रिकेट में धोनी को बेस्ट फिनिशिर का दर्जा हासिल है. कई मौकों में उन्होंने ऐसी स्थिति में टीम को जीत दिलाई जब हर कोई उम्मीद खो बैठा था. कप्तान के रूप में तो माही को काफी ऊंचा रेट किया जाता है. परिस्थितियां कैसी भी हों, वे हमेशा संयत बने रहते हैं. कप्तान के तौर पर कई बार हैरतअंगेज और साहसिक फैसले लेकर वे विपक्षी टीम को चौंका देते थे. धोनी ने टी20 वर्ल्डकप और 50 ओवरों के वर्ल्डकप में भारत को चैंपियन बनाया.
वीडियो : सेमीफाइनल में पहुंची टीम इंडिया
तीनों फॉर्मेट में समान रूप से कामयाब विराट कोहली
सचिन तेंदुलकर की तरह विराट कोहली को भी देश का सबसे बड़ा बल्लेबाज आंका जाता है. कई लोग तो उन्हें सचिन से भी ऊंचा बल्लेबाज मानते हैं. इसका कारण हैं स्कोर चेज करने में उनकी सफलता का प्रतिशत और तीनों फॉर्मेट के क्रिकेट में 50 रन के आसपास का औसत. विराट अपनी क्रिकेट आक्रामक अंदाज में खेलने के लिए जाने जाते हैं. भारतीय टीम को लगभग अजेय बनाने में उनकी भूमिका भी अहम रही है. टेस्ट में चार हजार, वनडे में आठ हजार से अधिक रन उनके नाम पर दर्ज हैं. 28 वर्ष के कोहली जब क्रिकेट से रिटायर होंगे तो सचिन की ही तरह सैकड़ों रिकॉर्ड उनके साथ होंगे.
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भारत ही नहीं, दुनिया के महान ओपनर सुनील गावस्कर
सुनील मनोहर गावस्कर को भारत की नहीं, दुनिया का महान ओपनर माना जा सकता है. छोटे कद के सनी ने अपने विकेट के लिए दुनिया के तमाम दिग्गज बल्लेबाजों को पसीना बहाने के लिए मजबूर किया. गावस्कर के स्ट्रेट ड्राइव और फ्लिक शॉट के तो कहने की क्या. तकनीक के लिहाज से मुंबई के इस क्रिकेटर को बेहद ऊंचा आंका जाता है. यह गावस्कर की तकनीक का कमाल ही था कि विश्व क्रिकेट के तेज गेंदबाजों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हेलमेट नहीं पहना. टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले 10 हजार रन का आंकड़ा सुनील गावस्कर ने ही छुआ था. 125 टेस्ट में 34 शतक उनके नाम पर हैं. भारतीय टीम को कप्तान रहते हुए भी उन्होंने कई सफलताएं दिलाई.
गेंदबाजी-बल्लेबाजी दोनों में धुरंधर कपिल देव
हरियाणा का यह हरफनमौला जब मैदान पर उतरता तो मानो स्टेडियम में बिजली कौंध जाती थी. कपिल देव चाहे गेंदबाजी कर रहे हों बल्लेबाजी, क्रिकेटप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र रहते थे. सही मायने में भारत के तेज गेंदबाजी का दौर कपिल के बाद ही शुरू हुआ. वर्ल्डकप-1983 में भारतीय क्रिकेट टीम के चैंपियन बनने को देश के खेल जगत की बड़ी उपलब्धि माना जाता है. कपिल देव ने अपनी कप्तानी और खेल कौशल से इस जीत को संभव बनाया था. इस वर्ल्डकप में कपिल ने जिम्बाब्वे के खिलाफ नाबाद 175 रन की पारी खेली थी जिस आज भी वनडे की यादगार पारियों में शुमार किया जाता है. 131 टेस्ट में 434 विकेट और 5248 रन कपिल की महानता की कहानी खुद बयां करते हैं. वनडे में भी कपिलदेव बेहद कामयाब रहे.
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शतकों का बादशाह सचिन तेंदुलकर
सुनील गावस्कर के बाद यदि किसी बल्लेबाज ने अपने खेल कौशल ने दुनिया को चमत्कृत किया तो वे मुंबई के सचिन रमेश तेंदुलकर थे. क्रिकेट का लगभग हर रिकॉर्ड आज सचिन के नाम पर दर्ज है. अपने करीब 25 वर्ष के लंबे करियर में 'छुटके' सचिन ने करोड़ों क्रिकेटप्रेमियों को प्रशंसक बनाया. दुनिया के दिग्गज गेंदबाज भी सचिन से खौफ खाते थे. ऑस्ट्रेलिया के महान लेग स्पिनर शेन वॉर्न ने तो स्वीकार भी किया था कि सचिन उनके सपनों में आते हैं और बल्लेबाजी से उन्हें डराते हैं. वनडे में सबसे पहले 200 रन के बैरियर को सचिन तेंदुलकर ने ही पार किया. इंटरनेशनल क्रिकेट में शतकों का सैकड़ा सचिन के नाम पर है. टेस्ट में उन्होंने 51 और वनडे में 49 शतक बनाए. सबसे बड़ी बात यह कि सचिन ने देशवासियों को कई यादगार जीतों का तोहफा दिया.
'शिकार' करने में माहिर अनिल कुंबले
अनिल कुंबले की गेंदबाजी शैली दाएं हाथ के लेग स्पिनर के लिहाज से आदर्श नहीं थी. आम लेग स्पिनरों के मुकाबले वे गेंद को कुछ तेज गति से फेंकते थी. आलोचकों का कहना था कि कुंबले की गेंद अधिक टर्न भी नहीं करतीं. इसके बावजूद अपनी सटीकता और बल्लेबाज की कमजोरी को पकड़ने की क्षमता ने कुंबले की झोली विकेटों से भर दी. जिम लेकर के बाद टेस्ट क्रिकेट में एक पारी में पूरे 10 विकेट लेने वाले वे दूसरे गेंदबाज हैं. कुंबले ने अपनी करिश्माई गेंदबाजी से कई मौके पर भारतीय टीम को जीतें दिलाईं. वे भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज हैं. टेस्ट क्रिकेट में 619 और वनडे में 337 विकेट उनके नाम पर हैं.
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भारतीय क्रिकेट की मजबूत दीवार राहुल द्रविड़
राहुल द्रविड़ का विकेट लेना हर किसी गेंदबाज का सपना होता था. डिफेंस के मामले में वे इतने मजबूत थे कि गेंदबाजों में झुंझलाहट पैदा कर देते थे. शोएब अख्तर और ब्रेट ली जैसे नामी गेंदबाज कई बार इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि द्रविड़ को आउट करके उन्हें सबसे ज्यादा संतुष्टि मिलती थी. अपनी इसी खूबी के कारण राहुल को 'भारतीय क्रिकेट की दीवार' की उपमा दी गई थी. राहुल टीममैन थे. भारतीय टीम के हित में वनडे मैचों में उन्होंने विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी भी संभाली. टेस्ट क्रिकेट में 13 हजार और वनडे में 10 हजार से अधिक रन बनाए. अपने बल्लेबाजी कौशल से भारतीय टीम को कई जीतें दिलाईं.
'कैप्टन कूल' एमएस धोनी
क्रिकेट के खेल में दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के दबदबा रहा है लेकिन रांची के धोनी ने इस बात को साबित किया कि छोटे शहर से भी बड़े खिलाड़ी निकल सकते हैं. शॉर्टर फॉर्मेट के क्रिकेट में धोनी को बेस्ट फिनिशिर का दर्जा हासिल है. कई मौकों में उन्होंने ऐसी स्थिति में टीम को जीत दिलाई जब हर कोई उम्मीद खो बैठा था. कप्तान के रूप में तो माही को काफी ऊंचा रेट किया जाता है. परिस्थितियां कैसी भी हों, वे हमेशा संयत बने रहते हैं. कप्तान के तौर पर कई बार हैरतअंगेज और साहसिक फैसले लेकर वे विपक्षी टीम को चौंका देते थे. धोनी ने टी20 वर्ल्डकप और 50 ओवरों के वर्ल्डकप में भारत को चैंपियन बनाया.
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तीनों फॉर्मेट में समान रूप से कामयाब विराट कोहली
सचिन तेंदुलकर की तरह विराट कोहली को भी देश का सबसे बड़ा बल्लेबाज आंका जाता है. कई लोग तो उन्हें सचिन से भी ऊंचा बल्लेबाज मानते हैं. इसका कारण हैं स्कोर चेज करने में उनकी सफलता का प्रतिशत और तीनों फॉर्मेट के क्रिकेट में 50 रन के आसपास का औसत. विराट अपनी क्रिकेट आक्रामक अंदाज में खेलने के लिए जाने जाते हैं. भारतीय टीम को लगभग अजेय बनाने में उनकी भूमिका भी अहम रही है. टेस्ट में चार हजार, वनडे में आठ हजार से अधिक रन उनके नाम पर दर्ज हैं. 28 वर्ष के कोहली जब क्रिकेट से रिटायर होंगे तो सचिन की ही तरह सैकड़ों रिकॉर्ड उनके साथ होंगे.
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