विज्ञापन
This Article is From Dec 12, 2018

'मामा' शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से बेदखल करने में कांग्रेस को आया पसीना, ये हैं कारण..

मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनावों (Madhya Pradesh Assembly Polls 2018) में कांग्रेस (Congress) इस बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है.

'मामा' शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से बेदखल करने में कांग्रेस को आया पसीना, ये हैं कारण..
शिवराज सिंह चौहान मध्‍यप्रदेश में बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनावों (Madhya Pradesh Assembly Polls 2018) में कांग्रेस (Congress) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. एक दशक से अधिक समय से काबिज शिवराज सिंह चौहान (Shivraj singh chouhan) सरकार के खिलाफ 'एंटी इनकंबेसी' फैक्‍टर भी पूरी तरह से कांग्रेस के काम नहीं आया और वह बहुमत के लिए जरूरी अंक तक नहीं पहुंच सकी. परिणामों की अंतिम घोषणा के बाद कांग्रेस पार्टी के खाते में 114 सीट आईं और वह बहुमत के लिए जरूरी 116 के  आंकड़े से दो सीट दूर रही. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) की ओर से समर्थन में घोषणा के बाद कांग्रेस को सत्‍ता की 'सीढ़ी' तो मिल गई है लेकिन शिवराज को पूरी तरह मात नहीं दे पाने की टीस लंबे समय तक उसे सालती रहेगी. मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बार टी20 मैच के तरह बेहद रोचक रहे. सीटों के रुझान में दोनों पार्टियों के बीच पूरे समय कड़ा संघर्ष चलता रहा और आखिरकार देर रात कांग्रेस को राहत की सांस लेने का मौका मिला. कभी रुझान में कांग्रेस पार्टी बाजी मारती दिख रही थी तो कभी बीजेपी (BJP) के इस रेस में आगे निकलने से भगवा पार्टी के समर्थकों को खुशी मनाने का मौका मिलता रहा. शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली बीजेपी को 'मात' देने में कांग्रेस को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा.

अटलजी की इस कविता को याद कर बोले शिवराज, हार की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मेरी

मध्‍यप्रदेश में इस बार हुए रिकॉर्ड मतदान के बाद ही कांग्रेस एक तरह से 'विनिंग मोड' में थी. 'एंटी इनकंबेसी' फैक्‍टर और एग्जिट पोल में अपने पक्ष में आए ज्‍यादातर रुझान को वह जीत का आधार मान रही थी लेकिन इस चुनावी समर में शिवराज सिंह 'धरती पकड़' साबित हुए. अंत में बाजी भले ही कांग्रेस के पक्ष में आई लेकिन शिवराज भी 'विजेता' से कम साबित नहीं हुए. दूसरे शब्‍दों में कहें तो मध्‍यप्रदेश (Madhya Pradesh) के चुनाव परिणामों को शिवराज की 'हार' के बजाय कांग्रेस की 'जीत' कहा जाना उपयुक्‍त होगा.

विधानसभा चुनाव परिणाम 2018 : मध्य प्रदेश


कांग्रेस ने इस बार सूबे में चुनाव पूरी तरह एकजुट होकर लड़ा था. वरिष्‍ठ नेता कमलनाथ (Kamal Nath) को हर कदम पर युवा ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का साथ मिला. दोनों ने मिलकर बीजेपी को पटखनी देने की रणनीति को अमली जामा पहनाया था. बीजेपी के कुछ कद्दावर नेताओं ने बागी बनकर एक तरह से इस चुनाव में कांग्रेस के लिए 'बी टीम' का काम किया. पूर्व सांसद रामकृष्‍ण कुसुमरिया दो सीटों पर बागी प्रत्‍याशी बनकर बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतरे तो सरताज सिंह ने तो ऐनचुनाव के पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया. कुसुमरिया और सरताज, दोनों ही अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में केंद्र में बनी बीजेपी सरकार में मंत्री रहे हैं. इन तमाम बातों के बावजूद शिवराज की कद्दावर छवि ने कांग्रेस को हर सीट के लिए कड़ा संघर्ष कराया. सत्‍ता विरोधी रुझान के बावजूद 'ब्रांड शिवराज' ने बीजेपी को करारी हार से बचाए रखा. बीजेपी मध्‍यप्रदेश का यह 'टी20 मुकाबला' हारी जरूर लेकिन अपना सम्‍मान बचाने में सफल रही. राजस्‍थान में वसुंधरा राजे और छत्‍तीसगढ़ में रमन सिंह की सरकार का इन चुनावों मे जिस तरह का हश्र हुआ, उसे देखते हुए शिवराज का प्रदर्शन हर तरह की सराहना का हकदार है.

भाजपा सांसद का CM शिवराज पर निशाना, कहा- 'माई के लाल' बयान से हुआ BJP को नुकसान

आखिरकार शिवराज सिंह में ऐसा क्‍या है कि मध्‍यप्रदेश में उनकी सरकार को मात देने का कांग्रेस का सपना पूरी तरह पूरा नहीं हो पाया. मध्‍यप्रदेश के लोग इसके पीछे कारण शिवराज सिंह की आम आदमी की छवि को मानते हैं. शिवराज ने बेहद चतुराई से यह छवि गढ़ी है. मध्‍यप्रदेश के बच्‍चों के लिए वे 'मामा' हैं तो महिलाओं के 'भाई'. व्‍यवहार में शिवराज बेहद सौम्‍य हैं, सियायत में शायद ही उनका कोई 'शत्रु' हो. यही कारण रहा कि राज्‍य में दो दशक से अधिक समय तक सत्‍ता पर काबिज रहे. शिवराज के भाषणों में भी यह देसीपन झलकता है. लोगों को लगता था कि उनके हितों को ध्‍यान रखने वाला शख्‍स ही राज्‍य में सीएम पद पर है. उनकी ओर से मध्‍यप्रदेश में चलाई गईं कई योजनाओं को इस मामले में मील का पत्‍थर माना जा सकता है.

वीडियो: शिवराज सिंह चौहान फिर जनता की अदालत में

भावांतर योजना से जहां उन्‍होंने नाराज किसानों को साधने की हरसंभव कोशिश की, वहीं लाड़ली लक्ष्‍मी, मुख्‍यमंत्री कन्‍यादान योजना से आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं और बालिकाओं का दिल जीता. मुख्‍यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना से उन्‍होंने राज्‍य के खर्चे पर बुजुर्गों को तीर्थयात्रा कराने का बीड़ा उठाया. इन योजनाओं को देशभर में प्रशंसा मिली और बाद में कई राज्‍यों ने इनका अनुसरण किया. इन योजनाओं से शिवराज ने मध्‍यप्रदेश को बीजेपी के 'गढ़' में तब्‍दील करने का हरसंभव प्रयास किया. कांग्रेस के कई नेता भी निजी बातचीत में स्‍वीकारते हैं कि शिवराज की लोकप्रियता का कारण उनकी यही 'देसी पहचान' है. जन आर्शीवाद यात्रा के जरिये वे पूरे मध्‍यप्रदेश में घूमे. किसान के पुत्र होने के कारण वे कृषि प्रधान राज्‍य मध्‍यप्रदेश को लोगों से बेहतर तरीके से कनेक्‍ट कर पाते हैं.अल्‍पसंख्‍यकों में भी उनकी अच्‍छी छवि है. हालांकि सत्ता विरोधी रुझान के कारण शिवराज के ये प्‍लस प्‍वॉइंट भी बीजेपी को जीत नहीं दिला पाए. वैसे, अंदरखाने यह भी चर्चा है कि बेहद कठिन चुनावी लड़ाई में उलझे शिवराज को दिल्‍ली स्थित शीर्ष नेतृत्‍व से पूरा सहयोग नहीं मिल पाया. यदि वे राज्‍य में इस बार भी जीतते तो उनका सियासी कद काफी बढ़ जाता और यह अंततोगत्‍वा दिल्‍ली में काबिज शीर्ष नेताओं के लिए भविष्‍य में परेशानी का कारण बनता. मुश्किल लड़ाई में शिवराज सिंह चौहान ने मध्‍यप्रदेश 'गंवाया' जरूर है लेकिन इस हार में भी वे अपना 'कद' बढ़ाने में सफल हुए हैं...

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com