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This Article is From Feb 24, 2017

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 : पीएम मोदी के 'रमजान-दीवाली' वाले भाषण के बाद अयोध्‍या में बीजेपी के लिए 'पहेली'

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 : पीएम मोदी के 'रमजान-दीवाली' वाले भाषण के बाद अयोध्‍या में बीजेपी के लिए 'पहेली'
अयोध्‍या: जैसे ही यूपी विधानसभा चुनाव का कारवां मंदिरों के शहर अयोध्‍या और इससे लगे जुड़वा शहर फैजाबाद पहुंचता है, लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी द्वारा किए गए प्रमुख वादे यानी विकास और सुशासन डावांडोल होते दिखते हैं. 1992 में लाखों कारसेवकों द्वारा ढहा दी गई 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद की जमीन पर एक भव्‍य राम मंदिर के निर्माण का वादा अभी भी कोसों दूर है. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण, जिसमें उन्‍होंने कहा था कि किसी भी जाति या धर्म को तरजीह नहीं मिलनी चाहिए, के बाद से अयोध्‍या के भाजपा नेता भ्रम की स्थिति में हैं. उनकी दीवाली-रमजान टिप्‍पणी (रमजान में बिजली की सप्‍लाई वैसी ही होनी चाहिए, जैसी की दीवाली पर होती है), अखिलेश यादव की सरकार पर एक तरह से कटाक्ष थी कि वो कथित रूप से मुस्लिमों पर ज्‍यादा मेहरबान रहते हैं जो‍कि उनके समर्थकों का बड़ा हिस्‍सा हैं.

अयोध्‍या में पार्टी कार्यकर्ता नहीं जानते कि उन्‍हें पीएम मोदी के आर्थिक लक्ष्‍यों के विषय में ज्‍यादा बात करनी चाहिए या राम मंदिर विवाद के बारे में. हालांकि छोटी छावनी मंदिर में इस तनाव का कोई निशान नहीं मिलता, जहां मुख्‍य पुजारी नृत्‍य गोपाल दास इस बात के इंतजार में हैं कि उन्‍हें बीजेपी प्रत्‍याशी के लिए चुनाव प्रचार करने को कहा जाएगा. वह शहर के बड़े मंदिरों में से एक के प्रमुख हैं और बीजेपी के राम मंदिर के स्‍थानीय प्रचार का चेहरा भी.

70 की करीब उम्र के पुजारी कहते हैं, 'अभी तक किसी ने मुझसे प्रचार के लिए नहीं कहा, लेकिन अगर वो कहते हैं तो मैं बीजेपी के प्रति अपना कर्तव्‍य निभाऊंगा, क्‍योंकि यही एकमात्र पार्टी है जो यहां राम मंदिर बनाएगी.
 
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उत्तर प्रदेश के अवध इलाके में पड़ने वाला अयोध्‍या राजधानी लखनऊ से करीब 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां सोमवार को मतदान होना है. अयोध्‍या और इसके आस-पास के इलाकों से 5 विधायक चुने जाते हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इनमें से केवल एक सीट मिली थी, बाकी की चार सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में गई थीं, जिसे तब युवा अखिलेश यादव (तब 37 वर्ष के थे) के धुआंधार प्रचार का लाभ मिला था. उनकी विकास की बातों ने सपा को फायदा पहुंचाया था.

1991 से ही बीजेपी के हर चुनाव घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण का वादा किया जाता रहा है, लेकिन 2012 में अयोध्‍या में पार्टी के लालू सिंह को हार का सामना करना पड़ा जो इससे पहले यहां से 5 बार विधायक रहे थे. वास्‍तव में 84 कोसी परिक्रमा में स्थित 35 सीटों में से साल 2012 में 25 सीटें सपा ने जीती थी. शास्‍त्रों के अनुसार 84 कोसी परिक्रमा को अयोध्‍या की पवित्र सीमा माना जाता है.

2012 में यहां से बीजेपी की हार को लेकर 50 वर्षीय गोपाल तिवारी विस्‍तार से बताते हैं. अयोध्‍या के सबसे बड़े मंदिर के बाहर धार्मिक कैलेंडर बेचने वाले तिवारी कहते हैं, 'अयोध्‍या में यूपी के अन्‍य शहरों की तुलना में विकास बिल्‍कुल नहीं हुआ, क्‍योंकि बीजेपी को यहां से जीतने के लिए केवल भव्‍य राम मंदिर के वादे के अलावा और कुछ भी नहीं करना होता था. लोग अब राम मंदिर के साथ-साथ बेहतर सड़क और बिजली का इंतजार करते-करते थक गए थे. इसलिए उन्‍होंने पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए वोट करने का निर्णय किया.

हार के बावजूद बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में लालू सिंह को उम्‍मीदवार बनाया. मोदी लहर पर सवाल लालू सिंह फैजाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीत गए. अयोध्‍या इसी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है. अच्‍छे दिन का नारा यूपी में बीजेपी के लिए काम कर गया और पार्टी ने राज्‍य की 80 संसदीय सीटों में से 72 पर कब्‍जा कर लिया. उसे नज़ीर मानते हुए पार्टी ने वर्तमान चुनाव में भी राम मंदिर की जगह 'सबका साथ सबका विकास' पर जोर देने का फैसला किया.

कई लोगों का मानना है कि यही कारण है कि पार्टी ने ऋषिकेश उपाध्‍याय जोकि लंबे समय से बीजेपी कार्यकर्ता हैं और शक्तिशाली महंतों या पुजारियों की पसंद भी थे, की जगह ट्रांसपोर्ट बिजनेस चलाने वाले वेद प्रकाश गुप्‍ता को अयोध्‍या से टिकट दिया, क्‍योंकि वह बीजेपी के विकास के एजेंडे के ज्‍यादा करीब हैं और उनकी पहचान राम मंदिर एजेंडे को लेकर नहीं रही है.
 
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बीजेपी के वेद प्रकाश गुप्‍ता को पार्टी के अंदर भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है

लेकिन बीजेपी के विनय कटियार जो फैजाबाद से तीन बार लोकसभा सांसद रहे हैं और वर्तमान में राज्‍यसभा सदस्‍य हैं, सलाह देते हैं कि उनकी पार्टी को निश्चित रूप से अयोध्‍या में विकास को राम मंदिर के साथ जोड़ना चाहिए. उनका तर्क है, अगर आप इसे बनाते हैं, वो आपके पास आएंगे. कटियार कहते हैं, अयोध्‍या एक धार्मिक केंद्र है जो तभी फलफूल सकता है जब मंदिर बनेगा.'

कोई भी राजनेता इस बात से इनकार नहीं करता कि अयोध्‍या में बुनियादी ढांचा आश्‍चर्यजनक रूप से खराब है. यह उस सोच का परिणाम है कि तीर्थयात्री तो हर हाल में यहां आएंगे ही, साथ ही सालों तक राम मंदिर पर होती राजनीति भी एक वजह है. लेकिन जैसा कि शहर के लोगों ने चुनाव से पहले अपनी बदलती इच्‍छा स्‍पष्‍ट कर दी, अखिलेश यादव और केंद्र की बीजेपी सरकार दोनों ने अयोध्‍या के लिए अपनी-अपनी परियोजनाओं की घोषणा कर दी. लेकिन उनमें से कोई भी बिजली, सड़क और पानी की समस्‍या का हल करती नहीं दिखती. अखिलेश यादव ने राम थीम पार्क की घोषणा की है जोकि एक रामायण संग्रहालय होगा.

अयोध्‍या रेलवे स्‍टेशन के पास ढाबा चलाने वाले ब्रिज यादव कहते हैं, 'ये लोग कोई उद्योग क्‍यों नहीं लगाते, ताकि मेरे दोनों ग्रेजुएट बेटों को रोजगार मिल सके. यहां हर युवक दुकानदार, गाइड या पंडित नहीं बनना चाहता.'

वलीलुल्‍लाह भी उनका समर्थन करते हैं. अयोध्‍या में करीब 5,000 मुस्लिम रहते हैं, जिनमें से वलीलुल्‍लाह भी हैं, जिनकी दर्जी की दुकान 1992 की हिंसा में जला दी गई थी. वह कहते हैं, 'विकास के मुद्दे को राम मंदिर के निर्माण से या किसी भी तरह के तुष्टिकरण की राजनीति से जोड़ना खतरनाक है, क्‍योंकि इससे तत्‍काल ही ध्‍यान लोगों की समस्‍याओं से हटकर राम जन्‍मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर चला जाता है.'

संभव है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की जगह बीजेपी के लिए अयोध्‍या सबसे महत्‍वपूर्ण क्षेत्र हो जाए, और हो सकता है कि पीएम मोदी के विकास के एजेंडे में राम मंदिर के निर्माण का वो महत्‍व न रह जाए या फिर कम महत्‍व रहे, लेकिन मंदिरों के इस शहर का बीजेपी के लिए बड़ा सांकेतिक महत्‍व बना रहेगा. अगले आम चुनाव में अभी करीब 2 वर्ष का समय है, और अगर बीजेपी इन विधानसभा क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तब विकास के एजेंडे को छोड़ने का लालच एक बार फिर जोर पकड़ लेगा.

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