झांसी:
यूपी के बुंदेलखंड के इलाके में कभी ददुआ सरीखे दर्जनों डकैतों के गिरोहों का दबदबा रहा, लिहाजा इसे सुरक्षा का मसला कह लें या वीरों की पारंपरिक जीवनशैली का असर, बंदूक यहां शुरू से ही सामाजिक सम्मान का प्रतीक रही है. डकैत अब खत्म हो गए लेकिन लोगों का बंदूक से लगाव आज भी है. झांसी आर्म्स एंड एम्युनेशन डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिलीप गुप्ता कहते हैं, आज भी झांसी इलाके में करीब 18 हजार लोगों के पास बंदूक का लाइसेंस है जिसमें से करीब 60 फीसदी लोग अब इसका इस्तेमाल नहीं करते, सिर्फ दिखावे के लिए बंदूक अपने ड्राइंग रूम में रखते हैं.
दिलीप गुप्ता का परिवार बीते 60 सालों से ये कारोबार करता आ रहा है. आज भी इनकी दुकान में दस हजार की लोकल मेड डबल बैरल बंदूक से
लेकर 5 लाख रुपयों वाली इंपोर्टेड राइफल तक मौजूद हैं. पर दिलीप गुप्ता कहते हैं कि वक्त के साथ ये कारोबार भी बदल रहा है, नए नियम सख्त हैं
अब लाइसेंस आसानी से नहीं मिलते. कारोबार में मंदी की एक वजह जुलाई 2015 में आर्म्स एक्ट में हुए बदलाव का लागू नहीं होना भी है, जिसके मुताबिक लोगों को अपने पास ज्यादा मात्रा में कारतूस रखने की इजाज़त दी गई है.
बुंदेलखंड क्षेत्र में पिछले कई दशकों से बंदूक रखना एक शान की बात माना जाता था. राजा रजवाड़ों के इस इलाके में बंदूक लोगों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है और पहचान का प्रतीक भी. लोग अक्सर हजारों रुपये देकर लाइसेंस के लिए लॉबिंग करते थे लेकिन अब बंदूक रखने की परंपरा कमजोर पड़ती जा रही है. वक्त के साथ समय भी बदला और जरूरतें भी.
दिलीप गुप्ता का परिवार बीते 60 सालों से ये कारोबार करता आ रहा है. आज भी इनकी दुकान में दस हजार की लोकल मेड डबल बैरल बंदूक से
लेकर 5 लाख रुपयों वाली इंपोर्टेड राइफल तक मौजूद हैं. पर दिलीप गुप्ता कहते हैं कि वक्त के साथ ये कारोबार भी बदल रहा है, नए नियम सख्त हैं
अब लाइसेंस आसानी से नहीं मिलते. कारोबार में मंदी की एक वजह जुलाई 2015 में आर्म्स एक्ट में हुए बदलाव का लागू नहीं होना भी है, जिसके मुताबिक लोगों को अपने पास ज्यादा मात्रा में कारतूस रखने की इजाज़त दी गई है.
बुंदेलखंड क्षेत्र में पिछले कई दशकों से बंदूक रखना एक शान की बात माना जाता था. राजा रजवाड़ों के इस इलाके में बंदूक लोगों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है और पहचान का प्रतीक भी. लोग अक्सर हजारों रुपये देकर लाइसेंस के लिए लॉबिंग करते थे लेकिन अब बंदूक रखने की परंपरा कमजोर पड़ती जा रही है. वक्त के साथ समय भी बदला और जरूरतें भी.
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