जयललिता की फाइल तस्वीर
चेन्नई:
तमिलनाडु के पिछले चुनावों और मौजूदा गठबंधनों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी को 36.5 फीसदी मत हासिल हो जाए, वह जीत हासिल कर सकती है। अगर डीएमके प्रमुख करुणानिधि और उनके सहयोगी दल कांग्रेस के पक्ष में 5.75 फीसदी वोटों का ज्यादा झुकाव हो जाता है तो वो जयललिता के हाथ से सत्ता छीन सकते हैं। यह दीगर बात है कि जयललिता ने पिछले दो बड़े चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी।
जयललिता की एआईएडीएमके ने 2011 के विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों में भारी जीत हासिल की थी, लेकिन तमिलनाडु ने वर्ष 1984 के बाद से कभी भी एक पार्टी के पक्ष में दूसरी बार वोट नहीं दिया। राज्य की बड़ी दो पार्टियां - एआईएडीएमके और डीएमके बारी-बारी से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करती रही हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि जिन पार्टियों को आम चुनावों में जीत हासिल हुई हो, विधानसभा चुनावों में उनके वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज की जाती रही है।
इसका मतलब है कि आईओयू यानी इंडेक्स ऑफ ऑपोजिशन यूनिटी में तेज गिरावट आई है, और वोटों के बंटवारे की वजह से सिर्फ 36.5 फीसदी वोटों के आधार पर 118 सीटों के बहुमत के आंकड़े को हासिल किया जा सकता है। बीते समय के आंकड़े और मौजूदा गठबंधनों के आधार पर अपनी छोटी सहयोगी पार्टियों के साथ सत्ताधारी एआईएडीएमके को 38 से 44 फीसदी (यानी औसतन 42 फीसदी वोट) वोट हासिल हो सकता है। इसका मतलब है कि सत्ताधारी गठबंधन 195 सीटों पर पर भारी जीत हासिल करेगा।
डीएमके-कांग्रेस गठबंधन के औसतन 31 फीसदी वोट शेयर हैं, जिसका अर्थ है कि उसे सिर्फ 46 सीटें मिल पाएंगी। तीसरे मोर्चे को 14 फीसदी वोट और दो सीटें मिलने की संभावना है और अन्य को 13 फीसदी वोट और 9 सीटें मिल सकती हैं।
लेकिन जयललिता के कोटे के तीन फीसदी वोट यदि डीएमके गठबंधन के पक्ष में चले जाएं तो इसका मतलब होगा कि डीएमके की झोली में 62 सीटें आ जाएंगी। यदि पांच फीसदी वोट उसके (डीएमके) पक्ष में बढ़ जाए, तो उसे 99 सीटें और 5.75 फीसदी वोट स्विंग पर 120 सीटों के साथ उसे बहुमत हासिल हो सकता है। ऐसी सूरत में एआईएडीएमके को 94 सीटें ही मिलेंगी।
यदि एआईएडीएमके से 7 फीसदी वोटों का झुकाव डीएमके की ओर हो जाता है तो इसका मतलब होगा कि डीएमके की सीटों का आंकड़ा 143 तक पहुंच जाएगा और जयललिता की पार्टी सिर्फ 70 सीटों पर सिमटकर रह जाएगी। हालांकि अधिकतर राज्यों में एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक 7 फीसदी वोटों का हेरफेर नहीं देखा जाता, लेकिन तमिलनाडु में 1984 के बाद से औसतन 10 फीसदी वोटों में बदलाव देखा जाता रहा है। तमिलनाडु में 16 मई को मतदान है और मतों की गिनती 19 मई को होगी।
जयललिता की एआईएडीएमके ने 2011 के विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों में भारी जीत हासिल की थी, लेकिन तमिलनाडु ने वर्ष 1984 के बाद से कभी भी एक पार्टी के पक्ष में दूसरी बार वोट नहीं दिया। राज्य की बड़ी दो पार्टियां - एआईएडीएमके और डीएमके बारी-बारी से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करती रही हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि जिन पार्टियों को आम चुनावों में जीत हासिल हुई हो, विधानसभा चुनावों में उनके वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज की जाती रही है।
राज्य में इस बार के चुनाव में पहली बार स्पष्ट तौर पर मैदान में एक तीसरा मोर्चा भी है। डीएमडीके के कैप्टन विजयकांत और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबुमणि रामदॉस की पार्टी पीएमके के नेतृत्व में अन्य छोटे दलों का पीपुल्स वेलफेयर फ्रंट तमिलनाडु की सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है।
इसका मतलब है कि आईओयू यानी इंडेक्स ऑफ ऑपोजिशन यूनिटी में तेज गिरावट आई है, और वोटों के बंटवारे की वजह से सिर्फ 36.5 फीसदी वोटों के आधार पर 118 सीटों के बहुमत के आंकड़े को हासिल किया जा सकता है। बीते समय के आंकड़े और मौजूदा गठबंधनों के आधार पर अपनी छोटी सहयोगी पार्टियों के साथ सत्ताधारी एआईएडीएमके को 38 से 44 फीसदी (यानी औसतन 42 फीसदी वोट) वोट हासिल हो सकता है। इसका मतलब है कि सत्ताधारी गठबंधन 195 सीटों पर पर भारी जीत हासिल करेगा।
डीएमके-कांग्रेस गठबंधन के औसतन 31 फीसदी वोट शेयर हैं, जिसका अर्थ है कि उसे सिर्फ 46 सीटें मिल पाएंगी। तीसरे मोर्चे को 14 फीसदी वोट और दो सीटें मिलने की संभावना है और अन्य को 13 फीसदी वोट और 9 सीटें मिल सकती हैं।
लेकिन जयललिता के कोटे के तीन फीसदी वोट यदि डीएमके गठबंधन के पक्ष में चले जाएं तो इसका मतलब होगा कि डीएमके की झोली में 62 सीटें आ जाएंगी। यदि पांच फीसदी वोट उसके (डीएमके) पक्ष में बढ़ जाए, तो उसे 99 सीटें और 5.75 फीसदी वोट स्विंग पर 120 सीटों के साथ उसे बहुमत हासिल हो सकता है। ऐसी सूरत में एआईएडीएमके को 94 सीटें ही मिलेंगी।
यदि एआईएडीएमके से 7 फीसदी वोटों का झुकाव डीएमके की ओर हो जाता है तो इसका मतलब होगा कि डीएमके की सीटों का आंकड़ा 143 तक पहुंच जाएगा और जयललिता की पार्टी सिर्फ 70 सीटों पर सिमटकर रह जाएगी। हालांकि अधिकतर राज्यों में एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक 7 फीसदी वोटों का हेरफेर नहीं देखा जाता, लेकिन तमिलनाडु में 1984 के बाद से औसतन 10 फीसदी वोटों में बदलाव देखा जाता रहा है। तमिलनाडु में 16 मई को मतदान है और मतों की गिनती 19 मई को होगी।
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