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This Article is From Feb 11, 2020

Delhi Elections 2020: इन कारणों से जीत रहे हैं अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी

Delhi Assembly Elections 2020 में आम आदमी पार्टी का परचम लहराता हुआ दिख रहा है। ये हैं उसकी वजहें...

Delhi Elections 2020: इन कारणों से जीत रहे हैं अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी
Delhi Assembly Elections 2020: वोटों की गिनती शुरू

Delhi Elections Result आने शुरू हो गए हैं। अभी दिल्ली विधानसभा के सभी 70 सीटों पर वोटों की गिनती चल रही है। नतीजे तो नहीं आए हैं, लेकिन रुझानों से साफ है कि दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनेगी। दिल्ली की जनता ने Delhi Assembly Elections 2020 में हर मुद्दे पर गौर करने के बाद Arvind Kejriwal पर भरोसा जताया है। अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की यह बढ़त किस कारण से है?

Delhi Assembly Elections 2020 में आम आदमी पार्टी का परचम लहराता हुआ दिख रहा है। ये हैं उसकी वजहें...

चाल, चरित्र से ज़्यादा अहम चेहरा
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के शुरुआती रुझानों से एक बात साफ है कि दिल्ली के दिल में फिलहाल अरविंद केजरीवाल बसते हैं। दिल्ली वालों को केजरीवाल की सियासत और नेतृत्व पर ज़्यादा भरोसा है। भारतीय जनता पार्टी के जीतने की स्थिति में दिल्ली की कमान किसे मिलेगी? इस सवाल का जवाब बीजेपी कभी नहीं दे पाई। सिर्फ सामुहिक नेतृत्व का हवाला देकर सवाल से बचने की कोशिश गई। शायद इसी वजह से अरविंद केजरीवाल बार-बार बीजेपी को इस मुद्दे पर घेरते थे। Delhi Elections Results ने ये तो साफ कर दिया है कि चेहरा नहीं तो पूरे मन से वोट भी नहीं।

स्थानीय मुद्दे-बिजली, पानी, स्कूल
जब चुनाव स्थानीय है तो राष्ट्रीय मुद्दे का क्या करना? Aam Aadmi Party ने बीते एक साल से अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए हमेशा ही स्थानीय मुद्दों पर ज़ोर दिया। चाहे बात बिजली की हो या पानी की। इन्हें बार-बार मुद्दा बनाया गया। पार्टी शुरू से जानती थी कि बिजली और पानी जैसे मुद्दे दिल्ली के हर आदमी को प्रभावित करते हैं। ऐसे में इसका असर वोट पर भी दिखेगा। इन सबके बीच दिल्ली सरकार के स्कूलों की बेहतर होती स्थिति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। स्कूलों की हालत को बेहतर कर आम आदमी पार्टी ने अपनी मंशा को जाहिर कर दिया था कि वह दिल्ली के हर तबके के लोगों के बारे में सोचती है। चाहे वह तबका गरीब ही क्यों ना हो और अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजता हो।

'मुफ्त' का चंदन, घसो मेरे नंदन
अगर जनता सरकार को टैक्स देती है तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उसकी दैनिक जरूरतों का ख्याल रखे। बिजली, पानी और सफर जैसे पहलुओं इनमें सबसे अहम हैं। और अरविंद केजरीवाल की सरकार दिल्ली की ज़्यादातर आबादी को बिजली और पानी मुफ्त देती है। वहीं, महिलाओं के लिए डीटीसी बसों और दिल्ली मेट्रो में सफर मुफ्त कर दिया गया। एक तरह से दिल्ली सरकार ने अपने इन फैसलों से बड़े तबके को प्रभावित किया।

मोदी पर 'चुप', बाकी पर 'अटैक'
अरविंद केजरीवाल ने अनुभवों से सीखा है कि नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला उनके पक्ष में नहीं जाता। क्योंकि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है। लेकिन उनके बाद भारतीय जनता पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं जिस पर सियासी हमले का कोई नुकसान हो। Arvind Kejriwal इसी रणनीति को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के चुनाव प्रचार अमल में लाते रहे। चुनाव प्रचार के दौरान जब पाकिस्तान से प्रतिक्रिया आई तो इस पर अरविंद केजरीवाल ने साफ तौर पर कहा कि मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं और पड़ोसी मुल्क को इस पर बोलने का कोई हक नहीं है। दूसरी तरफ, अरविंद केजरीवाल के निशाने पर अमित शाह से लेकर दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी थे। यानी केजरीवाल नफा-नुकसान देखकर सियासी हमले कर रहे थे।

बीजेपी ने बिछाए कई जाल, लेकिन...
Aam Aadmi Party ने यह तय कर लिया था कि वह ऐसे मुद्दों से बचेगी जिनमें बीजेपी को फायदा हो सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने यह तय कर दिया वह शाहीन बाग में चल रहे धरना प्रदर्शन को मुद्दा बनाएगी। भले ही ऊपर-ऊपर बात कालिंदी कुंज वाली सड़क बंद होने से हर दिन लोगों को हो रही दिक्कतों की होती थी, लेकिन बीजेपी का मकसद इसे सांप्रदायिक रंग देकर सियासी फायदा उठाने का था। बीजेपी बार-बार केजरीवाल को इस मुद्दे पर अपनी राय रखने का ताल ठोकती थी। लेकिन केजरीवाल ने चतुराई से इस मुद्दे पर दूरी बनाए रखी। साथ ही खुद को हनुमान भक्त बताकर बीजेपी के सांप्रदायिक कार्ड को फेल करने की भी कोशिश की।

कांग्रेस है कहां? खोजो...
Delhi Assembly Elections 2020 में तीन बड़ी पार्टियां थीं- आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस। लेकिन चुनाव प्रचार से लेकर वोटों की गिनती से यह साफ हो गया है कि चुनाव बीजेपी और आप के बीच है। कांग्रेस कहीं भी नहीं है। उसके परंपरागत वोटर भी खेमा बदल चुके हैं। इसका ज़्यादा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ है। वोट प्रतिशत के हिसाब से किस पार्टी को कितना फायदा और कितना नुकसान हुआ। यह तो नतीजे घोषित होने के बाद ही साफ हो पाएगा। लेकिन कांग्रेस का चुनाव का हिस्सा होकर भी ना के बराबर चुनाव लड़ पाना भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाता दिख रहा है।

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