विज्ञापन
This Article is From Nov 26, 2015

जब नेहरू ने कहा था, 'यह झांसी नहीं, जहां आप 'भाइयो-बहनो’ कहकर शुरू हो जाएं'

जब नेहरू ने कहा था, 'यह झांसी नहीं, जहां आप 'भाइयो-बहनो’ कहकर शुरू हो जाएं'
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (फाइल फोटो : AFP)
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि अब से 26 नवंबर को हर साल संविधान दिवस मनाया जाएगा। बता दें कि भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया था लेकिन वह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ था। संविधान के मसौदे को तैयार करने का काम इसके आकार लेने से तीन साल पहले और आजादी से भी एक साल पहले 1946 में शुरू हो गया था।

यह भी पढ़ें - सोनिया ने क्यों कहा 'इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा'

इसके लिए संविधान सभा की न जाने कितनी बैठक हई जिसमें देश और देशवासियों से जुड़े तमाम पहलुओं पर सदस्यों और जनता ने अपनी राय रखी। इन बैठक से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों का ज़िक्र इतिहासविद् रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में किया है। प्रस्तुत है उस किताब में शामिल संविधान सभा से जुड़े कुछ रोचक अंश -
 
  • 9 जनवरी 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी जिसमें कांग्रेस के प्रमुख नेता जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल आगे की सीटों पर बैठे थे। लेकिन कहीं इस बैठक को सिर्फ कांग्रेस पार्टी का शो न मान लिया जाए इसलिए विपक्ष के नेताओं को भी आगे की सीट पर बैठाया गया। एक राष्ट्रीय अखबार ने उस सम्मेलन की रिपोर्ट छापते हुए लिखा था कि 'गांधी टोपी और नेहरू जैकेट से भरी इस सभा में 9 महिला सदस्यों ने रंग भर दिया था।' 
 
  • यूं तो संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के सदस्य भी थे लेकिन वैचारिक रूप से यह सभी अलग अलग राय रखते थे जैसे इनमें से कुछ नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष थे तो कुछ ऐसे थे जो तकनीकी रूप से कांग्रेसी थे लेकिन आध्यात्मिक तौर पर आरएसएस और हिंदू महासभा के सदस्य थे। कुछ अपनी सोच में समाजवादी थे तो कुछ ज़मींदारों के हक़ में बोलने वाले थे। मोटे तौर पर इस सभा में लोकमत के हर पहलू को जगह देने की कोशिश की गई थी। 
 
  • ब्रिटेन के लोकप्रिय नेता विंस्टन चर्चिल ने भारतीय संविधान के निर्माण पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'संविधान सभा में भारत के एक बहुसंख्यक समुदाय का बोलबाला रहेगा।' चर्चिल के इस वक्तव्य को नकारते हुए संविधान को मूल रूप देने से पहले जनता से भी अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। हज़ारों की संख्या में लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी जैसे अखिल भारतीय वर्णश्रम स्वराज संघ ने कहा कि संविधान का आधार हिंदू धर्म होना चाहिए, साथ ही गो-हत्या और बूचड़खाने बंद करने की सिफारिश भी की गई थी। वहीं अल्पसंख्यक समूहों ने अपने अधिकारों की सुरक्षा की बात कही और दलितों ने ऊंची जाति के अत्याचारों के खात्मे की मांग की थी। इस तरह संविधान को तैयार करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की हिस्सेदारी मांगी गई थी। 
 
  • संविधान को तैयार करने के दौरान महिला आरक्षण पर भी बात हुई लेकिन मौजूदा दौर से इतर उस वक्त की महिला नेताओं ने सीटों और कोटे को दरकिनार करते हुए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता की मांग की। लेकिन महिला आरक्षण के पक्ष में सबसे दिलचस्प तरीके से एक पुरुष सदस्य आर के चौधरी ने अपनी बात रखी - मुझे लगता है कि हमें औरतों को एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र दे देना चाहिए। वैसे भी जब औरतें कुछ मांगती हैं तो उनकी मांग पूरी करना आसान हो जाता है लेकिन जब वो कुछ नहीं मांगती तो यह जानना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि आखिर वह चाहती क्या हैं। अगर हम उन्हें एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र दे देंगे तो वह उसी के लिए आपस में भिड़ती रहेंगी और सामान्य चुनावी क्षेत्रों से दूर रहेंगी। ऐसा नहीं किया तो हमें उन्हें वह सीटें देनी पड़ेंगी जिसके वह लायक नहीं हैं। 
 
  • संविधान सभा में सबसे विवादित विषय रहा भाषा जिसे लेकर अक्सर सदस्य ज्यादा ही भावुक हो जाते थे। ऐसे ही एक सदस्य आरवी धुलेकर ने हिंदी में अपनी बात कही जिस पर अध्यक्ष ने उन्हें टोकते हुए कहा कि सभा में मौजूद कई लोगों को हिंदी नहीं आती है और इसलिए वह उनकी बात समझ नहीं पा रहे हैं। इस पर धुलेकर ने तिलमिलाते हुए कहा कि 'जिन्हें हिंदुस्तानी नहीं आती, उन्हें इस देश में रहने का हक नहीं है।' जब काफी समझाने के बाद भी धुलेकर नहीं माने तो नेहरू ने आगे बढ़कर उन्हें अपनी सीट पर लौटने को कहा और सदन की गरिमा की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा कि 'ये कोई आपके झांसी की आमसभा नहीं है जहां आप 'भाइयो और बहनो' कहकर ऊंची आवाज़ में भाषण देना शुरू कर दें।'
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com