सोमवार को हैदराबाद में एक पुजारी एक दलित युवक को कंधों पर बिठाकर मंदिर के भीतर ले गए...(AFP)
हैदराबाद:
हैदराबाद में एक मंदिर के पुजारी ने नई शुरुआत करते हुए एक दलित युवक को अपने कंधों पर बिठाया, और श्री रंगनाथ मंदिर के भीतर लेकर गए. पुजारी ने मंदिर के भीतर पहुंचकर इस युवक आदित्य पारासरी को गले भी लगाया. हैदराबाद के चिल्कुर बालाजी मंदिर के पुजारी सीएस रंगराजन ने बताया कि उनके ऐसा करने से हालिया दिनों में दलितों के साथ हुए भेदभाव और उनके खिलाफ हुईं हिंसात्मक घटनाओं के विरुद्ध देशभर में मजबूत संदेश जाएगा.
बताया गया है कि यह परम्परा लगभग 3,000 साल पुरानी है, और तमिलनाडु में पुजारी द्वारा दलित युवक को कंधों पर बिठाकर मंदिर ले जाने की इस प्रथा को 'मुनि वाहन सेवा' के नाम से जाना जाता है.
पुजारी सीएस रंगराजन ने समाचारपत्र 'डेक्कन क्रॉनिकल' से बातचीत में जानकारी दी कि यह 2,700 साल पुरानी परम्परा को दोबारा शुरू करना है, जिसका उद्देश्य सनातन धर्म की महानता को पुनर्स्थापित करने और समाज के सभी वर्ग में समानता का संदेश प्रसारित करना है. उन्होंने कहा कि इस पहल के पीछे का मकसद दलितों के साथ हो रही उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना और विभिन्न वर्गों में बंधुत्व की भावना जाग्रत करना है.
चेगोंडी चंद्रशेखर नामक शख्स द्वारा फेसबुक पर पोस्ट किए गए वीडियो में गले में माला डाले हुए दलित श्रद्धालु करीब 50-वर्षीय पुजारी के कंधों पर हाथ जोड़े बैठा है, और आसपास चल रही भीड़ इस अनूठी घटना का वीडियो बना रही है.
मंदिर में नहीं मिला था प्रवेश, अब बदलाव की उम्मीद...
25-वर्षीय आदित्य पारासरी ने कहा कि मेरे मूल निवास महबूबनगर में ही मुझे हनुमान मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था. दलित होने की वजह से मेरा परिवार इस घटना से उत्पीड़ित और अपमानित महसूस कर रहा था. कई मंदिरों में अब भी यह सब जारी है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह बदलाव की शुरुआत है. इससे लोगों की मानसिकता बदलेगी.
गौरतलब है कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी के खिलाफ फैसला दिया था. इसके खिलाफ दलित समुदाय ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था. इस बंद के दौरान कई जगह से हिंसात्मक झड़पों की ख़बरें आई थीं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले की समीक्षा के लिए अपील की थी.
बताया गया है कि यह परम्परा लगभग 3,000 साल पुरानी है, और तमिलनाडु में पुजारी द्वारा दलित युवक को कंधों पर बिठाकर मंदिर ले जाने की इस प्रथा को 'मुनि वाहन सेवा' के नाम से जाना जाता है.
पुजारी सीएस रंगराजन ने समाचारपत्र 'डेक्कन क्रॉनिकल' से बातचीत में जानकारी दी कि यह 2,700 साल पुरानी परम्परा को दोबारा शुरू करना है, जिसका उद्देश्य सनातन धर्म की महानता को पुनर्स्थापित करने और समाज के सभी वर्ग में समानता का संदेश प्रसारित करना है. उन्होंने कहा कि इस पहल के पीछे का मकसद दलितों के साथ हो रही उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना और विभिन्न वर्गों में बंधुत्व की भावना जाग्रत करना है.
चेगोंडी चंद्रशेखर नामक शख्स द्वारा फेसबुक पर पोस्ट किए गए वीडियो में गले में माला डाले हुए दलित श्रद्धालु करीब 50-वर्षीय पुजारी के कंधों पर हाथ जोड़े बैठा है, और आसपास चल रही भीड़ इस अनूठी घटना का वीडियो बना रही है.
मंदिर में नहीं मिला था प्रवेश, अब बदलाव की उम्मीद...
25-वर्षीय आदित्य पारासरी ने कहा कि मेरे मूल निवास महबूबनगर में ही मुझे हनुमान मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था. दलित होने की वजह से मेरा परिवार इस घटना से उत्पीड़ित और अपमानित महसूस कर रहा था. कई मंदिरों में अब भी यह सब जारी है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह बदलाव की शुरुआत है. इससे लोगों की मानसिकता बदलेगी.
गौरतलब है कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी के खिलाफ फैसला दिया था. इसके खिलाफ दलित समुदाय ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था. इस बंद के दौरान कई जगह से हिंसात्मक झड़पों की ख़बरें आई थीं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले की समीक्षा के लिए अपील की थी.
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