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This Article is From Jul 04, 2012

आइए जानें क्या है यह सर्न, खोज और परिणाम...

आइए जानें क्या है यह सर्न, खोज और परिणाम...
नई दिल्ली: दुनियाभर के वैज्ञानिक सबसे बड़े टेस्ट में पास हो गए हैं। जिनीवा में सर्न के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने हिग्स बोसॉन कण जिन्हें आमतौर पर गॉड पार्टिकल्स भी कहा जाता है उसकी मौजूदगी के बेहद ठोस संकेत हासिल कर लिए हैं।

वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने प्रयोग के दौरान 123 जीईवी मास यानी द्रव्यमान के बोसॉन पार्टिकल्स की मौजूदगी दर्ज की है यानी उस रहस्यमय कण का ठोस अहसास उन्हें हो गया है जिसके लिए जिनीवा में धरती के सौ मीटर नीचे यह महाप्रयोग चल रहा है।

जहां तक सवाल वैज्ञानिकों के दावे के सही होने का है तो हिग्स बोसॉन यानी गॉड पार्टिकल के इस संकेत को 5 तक के स्केल पर 4.9 सिग्मा बताया गया है जिसका मतलब ये हुआ कि दस लाख मामलों में चूक की गुंजाइश सिर्फ एक बार है। यही वजह है कि जैसे ही सर्न में इस बात का ऐलान हुआ वहां मौजूद वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई।

दरअसल वैज्ञानिक इस खोज को लेकर बेहद उत्साहित हैं क्योंकि हिग्स बोसॉन की मौजूदगी ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़े रहस्यों पर से पर्दा उठाने में मददगार साबित होगा। अब इस बात को वैज्ञानिक तरीके से समझा जा सकेगा कि धरती चांद सितारे और दूसरी चीजें अपने वजूद में कैसे आईं। लेकिन यह जानना कम जरूरी नहीं कि गॉड पार्टिकल की जरूरत ही क्यों पड़ी।

दरअसल, अभी तक विज्ञान जिस थ्योरी पर काम करता है उसके मुताबिक सारे पदार्थ अणु परमाणु और दूसरे छोटे कणों से मिलकर बने हैं जिन्हें हम देख पाते हैं।
− इसे स्टैंडर्ड मॉडल कहा जाता है लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी ये है कि इससे इस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि पदार्थ के सूक्ष्म कणों को द्रव्यमान कैसे मिलता है।
यानी इन कणों के भीतर क्या होता है, इसी के जवाब में 1964 में छह वैज्ञानिकों ने हिग्स सिस्टम की थ्योरी रखी।

आखिर द्रव्यमान क्यों ज़रूरी है-
दरअसल, यही वो नाप है जिससे पता चल सकता है कि वो चीज कितने सारे सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी है
और अगर द्रव्यमान नहीं हो तो किसी भी पदार्थ को बनाने वाले सारे कण प्रकाश की रफ्तार से घूमते रहेंगे
और दुनिया जिस रूप में आज मौजूद है वैसी नहीं होती।
हिग्स थ्योरी के मुताबिक पूरा ब्रह्मांड एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिए पार्टिकल्स मास या द्रव्यमान लेते हैं। ब्रह्मांड की तुलना किसी बर्फीले मैदान से की गई है। जहां आपकी चाल धीमी हो जाती है।

और अब आइए ब्रह्मांड की बात करते हैं-
मौजूदा सिद्धातों के मुताबिक ब्रह्मांड की शुरूआत एक महाविस्फोट से हुई जिसे बिगबैंग कहा गया। यही वो पल है जब से समय या टाइम की शुरूआत भी मानी जाती है।
लाखों अरबों साल पहले हुए उस धमाके के बाद ब्रह्मांड बना। पदार्थ यानी मैटर वजूद में आए जिनसे आगे चलकर आकाशगंगाओं से लेकर तारे ग्रह और उपग्रह जैसी चीजें बनी।

नए प्रयोगों से ये बात साबित हो गई है कि हमारे ब्रह्मांड का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर हम टाइम मशीन को एकदम पीछे ले जाकर शुरुआती लम्हे पर ले जाकर रोके तो पूरा ब्रह्मांड सिर्फ एक बिंदु सरीखा होगा।

यही वजह है कि महाप्रयोग के लिए भी उसी माहौल की जरूरत पड़ी जो बिगबैंग के वक्त रहा होगा। लेकिन ये सब करना इतना आसान भी नहीं है। स्विटज़रलैंड और फ्रांस की सीमा पर ज़मीन के भीतर दुनिया के सबसे बड़े सर्कुलर ऐटम स्मैशर में मौजूद वैज्ञानिक उन कणों की मौजूदगी साबित करने में दिन रात लगे रहे जिन्हें वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल का नाम दे रखा है।

इसके लिए वैज्ञानिक बीते 4 साल से प्रकाश की रफ्तार से चल रही किरणों को एक दूसरे से टकराकर उन बेहद छोटे हिग्स बोसॉन का वजूद तलाशते रहे जिन्हें गॉड पार्टिकल कहा जा रहा है। ये खोज इतनी अहम है कि ऐलान से पहले वैज्ञानिकों को कई बार सोचना पड़ा।

दुनिया के इस सबसे बड़े महाप्रयोग में सौ से ज़्यादा देशों के करीब 8000 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और इसपर 10 अरब डॉलर से भी ज़्यादा ख़र्च हुए। एनडीटीवी शुरुआत से ही इस प्रयोग पर नज़र रखे हुए था और बीच बीच में सर्न जाता रहा है।

इतनी रफ्तार से ये काम पहले कभी नहीं हुआ- प्रोटोन की दो किरणें आपस में टकराईं और कंट्रोल रूम में बैठे
वैज्ञानिक एक−दूसरे को बधाइयां दी। करीब 10 खरब डॉलर की लागत वाले लार्ज हैड्रोन कोलाइडर नाम की
इस महामशीन में मौजूदा ताकत के मुकाबले तीन गुना रफ्तार से जब प्रोटांस आपस में टकराए तो 7 ट्रिलियन इलेक्ट्रॉन वोल्ट के बराबर ऊर्जा दर्ज की गई।

ये हालात प्रयोग को बिगबैंग यानी महाविस्फोट के बिलकुल करीब ले जाते हैं जिसके बाद हमारा पूरा ब्रह्मांड वजूद में आया। इसके लिए जिस मशीन का इस्तेमाल हुआ उसे नाम दिया गया लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स।

ये छोटे स्तर पर ब्राह्मांड की उत्पत्ति जैसा माहौल पैदा करती है इसके लिए − ज़मीन से 175 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनाई गई। वहां का तापमान शून्य से 270 डिग्री नीचे रखा गया। सुरंग में प्रकाश की रफ्तार से चार्ज्ड सबएटॉमिक पार्टिकल्स को तोड़कर द्रव्य यानी मैटर और ऊर्जा यानी एनर्जी के रिश्ते को जानने की कोशिश की गई।

सर्न यानी यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के इस महाप्रयोग में भारत ने भी करीब चार करोड़ डॉलर के उपकरण भेजे हैं। जिनमें वो दो मैग्नेटिक आर्म्स भी हैं जिनपर पार्टिकल एक्सलरेटर को रखा गया।

भारत की इस भागेदारी को बेहद सम्मान के साथ देखा जा रहा है। भारत ने 3 करोड़ डॉलर का हाइटेक साज़ोसामान और सौ साल से ज़्यादा मियाद की विशेषज्ञों की सेवाएं भी दान की हैं। हिग्स बोसॉन की तलाश में  भारतीय वैज्ञानिकों ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है। आख़िर, हिग्स बोसॉन में बोसॉन का नाम भी तो भारतीय वैज्ञानिक सत्येन नाथ बोस के नाम पर है।

इतना ही नहीं ब्रह्मांड की उत्पत्ति से भारतीय दर्शन के गहरे जुड़ाव की याद दिलाने के लिए भारत ने नटराज की ये मूर्ति भी भेंट की है जो चोल काल की बताई जाती है। तांडव करते शिव से बेहतर ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विनाश को भला कौन समझ सकता है।

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