लंदन:
दुनिया में अब तक के सबसे बड़े महाप्रयोग का नतीजा आ गया है, और जिनेवा में यूरोपियन ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने गॉड पार्टिकल, यानि 'हिग्स बोसॉन' कण के बेहद ठोस संकेत हासिल किए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक उन्होंने 123 जीईवी वजन का बोसॉन ऑब्ज़र्व किया है।
इस बयान का अर्थ है कि वैज्ञानिकों को उस रहस्यमय कण का ठोस अहसास हो गया है, जिसके लिए जिनेवा में धरती के 100 मीटर नीचे यह महाप्रयोग चल रहा है। वैज्ञानिकों ने 'हिग्स बोसॉन', यानि गॉड पार्टिकल के इस संकेत को इतना ठोस माना है कि अपने स्केल पर उसे पांच में से 4.9 सिग्मा बताया है, जिसे बेहद खास खोज के तौर पर देखा जाता है। जिनेवा के CERN में जिस वक्त यह ऐलान हुआ, वहां मौजूद वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई।
वैज्ञानिक इस खोज को लेकर इतने उत्साहित इसलिए हैं, क्योंकि 'हिग्स बोसॉन' को समझ लेने से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को जानने में वैज्ञानिकों को बड़ी मदद मिलेगी। यह पता चल सकेगा कि ब्रह्मांड, जिसमें हमारी धरती, चांद और सितारे शामिल हैं, कैसे बना। अभी तक माना जाता है कि अरबों साल पहले हुए एक महा-विस्फोट जिसे 'बिग बैंग' कहा जाता है, के बाद पदार्थ बने और फिर हमारा ब्रह्मांड, लेकिन यह प्रयोग उस राज से पर्दा उठा देगा कि ऊर्जा से पदार्थ कैसे बनता है।
क्या है 'गॉड पार्टिकल'...
यह वह कण हैं, जिससे ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझ जाएगी... पता चलेंगे कई ऐसे राज़, जो फिज़िक्स की कई थ्योरियों पर मुहर लगाएंगे। इस 'महामिशन' में भारत के वैज्ञानिक भी हिस्सा ले रहे हैं। स्विटजरलैण्ड और फ्रांस की सीमा पर ज़मीन के भीतर दुनिया के सबसे बड़े सर्कुलर एटम स्मैशर में मौजूद वैज्ञानिक उन कणों की मौजूदगी साबित करने में दिन-रात लगे रहे, जिन्हें वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल का नाम दे रखा है। अब इस ऐलान ने भौतिक विज्ञान के कई बुनियादी नियमों को साबित कर दिया, लेकिन इसके लिए वैज्ञानिक चार साल से प्रकाश की रफ्तार से चल रही किरणों को एक-दूसरे से टकराकर उन बेहद छोटे 'हिग्स बोसॉन' का वजूद तलाशते रहे, जिन्हें गॉड पार्टिकल कहा जाता है। हालांकि वैज्ञानिक पहले इन कणों का साया ही महसूस कर पाए थे, पर उसके बाद इतना तय हो गया कि वे कामयाबी के करीब हैं।
दुनिया के इस सबसे बड़े महाप्रयोग में 100 से ज़्यादा देशों के करीब 8,000 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और इस पर 10 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा खर्च हुए हैं। भारत ने भी तीन करोड़ डॉलर का हाइटेक साज़ोसामान और 100 साल से ज़्यादा मियाद की विशेषज्ञों की सेवाएं इस खोज में लगाई हैं। हिग्स बोसॉन की तलाश में भारतीय वैज्ञानिक भी दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे हैं, इसीलिए 'हिग्स बोसॉन' में शामिल 'बोसॉन' शब्द भारतीय वैज्ञानिक सत्येन नाथ बोस के नाम से लिया गया है।
इस बयान का अर्थ है कि वैज्ञानिकों को उस रहस्यमय कण का ठोस अहसास हो गया है, जिसके लिए जिनेवा में धरती के 100 मीटर नीचे यह महाप्रयोग चल रहा है। वैज्ञानिकों ने 'हिग्स बोसॉन', यानि गॉड पार्टिकल के इस संकेत को इतना ठोस माना है कि अपने स्केल पर उसे पांच में से 4.9 सिग्मा बताया है, जिसे बेहद खास खोज के तौर पर देखा जाता है। जिनेवा के CERN में जिस वक्त यह ऐलान हुआ, वहां मौजूद वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई।
वैज्ञानिक इस खोज को लेकर इतने उत्साहित इसलिए हैं, क्योंकि 'हिग्स बोसॉन' को समझ लेने से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को जानने में वैज्ञानिकों को बड़ी मदद मिलेगी। यह पता चल सकेगा कि ब्रह्मांड, जिसमें हमारी धरती, चांद और सितारे शामिल हैं, कैसे बना। अभी तक माना जाता है कि अरबों साल पहले हुए एक महा-विस्फोट जिसे 'बिग बैंग' कहा जाता है, के बाद पदार्थ बने और फिर हमारा ब्रह्मांड, लेकिन यह प्रयोग उस राज से पर्दा उठा देगा कि ऊर्जा से पदार्थ कैसे बनता है।
क्या है 'गॉड पार्टिकल'...
यह वह कण हैं, जिससे ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझ जाएगी... पता चलेंगे कई ऐसे राज़, जो फिज़िक्स की कई थ्योरियों पर मुहर लगाएंगे। इस 'महामिशन' में भारत के वैज्ञानिक भी हिस्सा ले रहे हैं। स्विटजरलैण्ड और फ्रांस की सीमा पर ज़मीन के भीतर दुनिया के सबसे बड़े सर्कुलर एटम स्मैशर में मौजूद वैज्ञानिक उन कणों की मौजूदगी साबित करने में दिन-रात लगे रहे, जिन्हें वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल का नाम दे रखा है। अब इस ऐलान ने भौतिक विज्ञान के कई बुनियादी नियमों को साबित कर दिया, लेकिन इसके लिए वैज्ञानिक चार साल से प्रकाश की रफ्तार से चल रही किरणों को एक-दूसरे से टकराकर उन बेहद छोटे 'हिग्स बोसॉन' का वजूद तलाशते रहे, जिन्हें गॉड पार्टिकल कहा जाता है। हालांकि वैज्ञानिक पहले इन कणों का साया ही महसूस कर पाए थे, पर उसके बाद इतना तय हो गया कि वे कामयाबी के करीब हैं।
दुनिया के इस सबसे बड़े महाप्रयोग में 100 से ज़्यादा देशों के करीब 8,000 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और इस पर 10 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा खर्च हुए हैं। भारत ने भी तीन करोड़ डॉलर का हाइटेक साज़ोसामान और 100 साल से ज़्यादा मियाद की विशेषज्ञों की सेवाएं इस खोज में लगाई हैं। हिग्स बोसॉन की तलाश में भारतीय वैज्ञानिक भी दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे हैं, इसीलिए 'हिग्स बोसॉन' में शामिल 'बोसॉन' शब्द भारतीय वैज्ञानिक सत्येन नाथ बोस के नाम से लिया गया है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं