
मुंबई की इस लड़की की कहानी शर्तिया आपकी आंखों को नम कर डालेगी, और कहीं न कहीं, आप भीतर से दुआ करेंगे कि ऐसा बचपन किसी बच्चे को न मिले.... लेकिन, दूसरे ही पल आपको इस लड़की और उसकी मां पर गर्व महसूस होगा, और आप फिर दुआ करेंगे, काश, इतनी हिम्मत सभी को मिले...
'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' ने अपने फेसबुक पेज पर मुंबई की इस लड़की की कहानी शेयर की है, जो न केवल इस युवा डांसर की तकलीफों और संघर्ष को बयान करती है, बल्कि उसकी मां की मजबूत इच्छाशक्ति, संघर्ष और जिजीविषा को भी सामने लाती है... यह कहानी हमें बताती है कि एक मां कैसे अपनों बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सब कुछ पीछे छोड़कर एक अनजान-सी दुनिया में उनके सुनहरे भविष्य की इबारत लिखने की कोशिश करती है।
दरअसल, इस पोस्ट में यह युवा डांसर बताती है - "जब मैं सात साल की थी, तब मुझे वह सब देखना पड़ा, जिसे देखना किसी बच्चे के नसीब में नहीं होना चाहिए... मेरा पिता शराबी था, जो लगभग रोज़ मेरी मां को पीटता था... अलग-अलग धर्मों के होने के बावजूद मेरे माता-पिता ने प्रेम विवाह किया था, लेकिन वास्तव में उस घर में मेरी मां को कभी भी स्वीकार नहीं किया गया..."
यह लड़की आगे लिखती है - "माहौल उस समय और भी बिगड़ गया, जब मेरी मां ने दो बेटियों को जन्म दिया... मेरे पिता की मां ने मुझे या मेरी बहन को कभी गोद में नहीं लिया... वह हमें इस तरह नज़रअंदाज़ करती थी, जैसे हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है... हर रात मेरा पिता शराब पीता, और इस वजह से मेरी मां को पीटता, क्योंकि उसने बेटियां पैदा की थीं... और कभी-कभी किसी और बेकार वजह से भी, और यह सिलसिला सात साल तक चलता रहा..."
इस युवा नर्तकी के मुताबिक - "मेरी मां को काम करने की भी इजाज़त नहीं दी जाती थी, इसलिए वह हमें (दोनों बच्चियों को) कुछ भी दिलाने के लिए 10-10 रुपये की 'भीख' मेरे पिता से मांगती थी... मैं आज भी इस बात के लिए खुद को दोषी महसूस करती हूं, क्योंकि मैंने यह सब अपनी आंखों के सामने घटते देखा, और कुछ भी नहीं किया... मैं सिर्फ अपनी छोटी बहन को सीने से लगा लेती थी और रोती रहती थी..."
इसके बाद वह लिखती है - "एक रात मेरे पिता ने मां को इतनी बुरी तरह पीटा कि हालात बर्दाश्त से बाहर हो गए... तब मां ने रात को 2 बजे हम दोनों बहनों को उठाया, और रात को सोने के कपड़े पहने ही बिना जूतों और पैसों के हम सब सड़क पर निकल आए... हम एक स्थानीय बार में गए, जो उस वक्त भी खुला हुआ था... मेरी मां ने बार मालिक से एक फोन कॉल करने देने की गुज़ारिश की, जिसे उसने तुरंत मान लिया... उस बार मालिक ने हमें खाना खिलाने की पेशकश भी दी..."
लड़की बताती है - "इसके बाद मेरी मां के माता-पिता आकर हमें अपने साथ ले गए, और उसके बाद से अब तक उस परिवार (पिता के परिवार) को हमने दोबारा कभी नहीं देखा... कुछ साल बाद पिता का देहांत हो गया, लेकिन उसके बाद भी हमारे लिए उस परिवार को लेकर कभी कुछ नहीं बदला... मेरी मां और नाना-नानी ने हमारा स्कूल तो बदला ही, इस उम्मीद में हमारे नाम भी बदल दिए कि शायद इससे हम पिछली ज़िन्दगी भूल सकें, और हमारी नई ज़िन्दगी शुरू हो..."
यादों में डूबती-उतराती यह लड़की आगे लिखती है - "कभी-कभी मैं स्कूल में टीचर को सामने खड़ा देखकर ही रोना शुरू कर देती थी... मेरा ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने ही मुझे भरतनाट्यम की क्लास में दाखिला दिलवा दिया, और बस, फिर मेरी ज़िन्दगी बदल गई... आठ साल की उम्र से ही मैं नृत्य कर रही हूं..."
इसके आगे वह बताती है - "मेरी मां हमें पालने-पोसने के लिए दिन-रात काम करती थी, और भले ही इतने लंबे अरसे तक उन्हें बंदिशों में रखा गया था, उन्होंने हमें कुछ भी पढ़ने-सीखने की पूरी आज़ादी दी... मैं चीन जाकर बेली डान्सिन्ग कॉम्पीटीशन जीत चुकी हूं, और पूरे देश में जा-जाकर परफॉरमेंस देती हूं, और मेरी मां ने मुझे कभी भी नहीं रोका..."
आखिर में यह युवा नर्तकी लिखती है - "हमारी अपनी एक छोटी-सी दुनिया है, और हम बेहद खुश हैं... इतने साल तक हम संघर्ष कर पाए, इसकी इकलौती वजह यह रही कि हम हमेशा, हर पल जानते थे कि एक-दूसरे का सहारा बनने के लिए हम एक-दूसरे के पास हैं, और परिवारों को ऐसा ही होना भी चाहिए... सो, भले ही पहली बार में हम उतने खुशकिस्मत नहीं थे, लेकिन हम पर परमात्मा की कृपा रही कि हमें दूसरा मौका मिला, और हम अपनी ज़िन्दगी को नए मायने दे पाए..."
'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' ने अपने फेसबुक पेज पर मुंबई की इस लड़की की कहानी शेयर की है, जो न केवल इस युवा डांसर की तकलीफों और संघर्ष को बयान करती है, बल्कि उसकी मां की मजबूत इच्छाशक्ति, संघर्ष और जिजीविषा को भी सामने लाती है... यह कहानी हमें बताती है कि एक मां कैसे अपनों बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सब कुछ पीछे छोड़कर एक अनजान-सी दुनिया में उनके सुनहरे भविष्य की इबारत लिखने की कोशिश करती है।
दरअसल, इस पोस्ट में यह युवा डांसर बताती है - "जब मैं सात साल की थी, तब मुझे वह सब देखना पड़ा, जिसे देखना किसी बच्चे के नसीब में नहीं होना चाहिए... मेरा पिता शराबी था, जो लगभग रोज़ मेरी मां को पीटता था... अलग-अलग धर्मों के होने के बावजूद मेरे माता-पिता ने प्रेम विवाह किया था, लेकिन वास्तव में उस घर में मेरी मां को कभी भी स्वीकार नहीं किया गया..."
यह लड़की आगे लिखती है - "माहौल उस समय और भी बिगड़ गया, जब मेरी मां ने दो बेटियों को जन्म दिया... मेरे पिता की मां ने मुझे या मेरी बहन को कभी गोद में नहीं लिया... वह हमें इस तरह नज़रअंदाज़ करती थी, जैसे हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है... हर रात मेरा पिता शराब पीता, और इस वजह से मेरी मां को पीटता, क्योंकि उसने बेटियां पैदा की थीं... और कभी-कभी किसी और बेकार वजह से भी, और यह सिलसिला सात साल तक चलता रहा..."
इस युवा नर्तकी के मुताबिक - "मेरी मां को काम करने की भी इजाज़त नहीं दी जाती थी, इसलिए वह हमें (दोनों बच्चियों को) कुछ भी दिलाने के लिए 10-10 रुपये की 'भीख' मेरे पिता से मांगती थी... मैं आज भी इस बात के लिए खुद को दोषी महसूस करती हूं, क्योंकि मैंने यह सब अपनी आंखों के सामने घटते देखा, और कुछ भी नहीं किया... मैं सिर्फ अपनी छोटी बहन को सीने से लगा लेती थी और रोती रहती थी..."
इसके बाद वह लिखती है - "एक रात मेरे पिता ने मां को इतनी बुरी तरह पीटा कि हालात बर्दाश्त से बाहर हो गए... तब मां ने रात को 2 बजे हम दोनों बहनों को उठाया, और रात को सोने के कपड़े पहने ही बिना जूतों और पैसों के हम सब सड़क पर निकल आए... हम एक स्थानीय बार में गए, जो उस वक्त भी खुला हुआ था... मेरी मां ने बार मालिक से एक फोन कॉल करने देने की गुज़ारिश की, जिसे उसने तुरंत मान लिया... उस बार मालिक ने हमें खाना खिलाने की पेशकश भी दी..."
लड़की बताती है - "इसके बाद मेरी मां के माता-पिता आकर हमें अपने साथ ले गए, और उसके बाद से अब तक उस परिवार (पिता के परिवार) को हमने दोबारा कभी नहीं देखा... कुछ साल बाद पिता का देहांत हो गया, लेकिन उसके बाद भी हमारे लिए उस परिवार को लेकर कभी कुछ नहीं बदला... मेरी मां और नाना-नानी ने हमारा स्कूल तो बदला ही, इस उम्मीद में हमारे नाम भी बदल दिए कि शायद इससे हम पिछली ज़िन्दगी भूल सकें, और हमारी नई ज़िन्दगी शुरू हो..."
यादों में डूबती-उतराती यह लड़की आगे लिखती है - "कभी-कभी मैं स्कूल में टीचर को सामने खड़ा देखकर ही रोना शुरू कर देती थी... मेरा ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने ही मुझे भरतनाट्यम की क्लास में दाखिला दिलवा दिया, और बस, फिर मेरी ज़िन्दगी बदल गई... आठ साल की उम्र से ही मैं नृत्य कर रही हूं..."
इसके आगे वह बताती है - "मेरी मां हमें पालने-पोसने के लिए दिन-रात काम करती थी, और भले ही इतने लंबे अरसे तक उन्हें बंदिशों में रखा गया था, उन्होंने हमें कुछ भी पढ़ने-सीखने की पूरी आज़ादी दी... मैं चीन जाकर बेली डान्सिन्ग कॉम्पीटीशन जीत चुकी हूं, और पूरे देश में जा-जाकर परफॉरमेंस देती हूं, और मेरी मां ने मुझे कभी भी नहीं रोका..."
आखिर में यह युवा नर्तकी लिखती है - "हमारी अपनी एक छोटी-सी दुनिया है, और हम बेहद खुश हैं... इतने साल तक हम संघर्ष कर पाए, इसकी इकलौती वजह यह रही कि हम हमेशा, हर पल जानते थे कि एक-दूसरे का सहारा बनने के लिए हम एक-दूसरे के पास हैं, और परिवारों को ऐसा ही होना भी चाहिए... सो, भले ही पहली बार में हम उतने खुशकिस्मत नहीं थे, लेकिन हम पर परमात्मा की कृपा रही कि हमें दूसरा मौका मिला, और हम अपनी ज़िन्दगी को नए मायने दे पाए..."
"At the age of 7 I saw things that no child that age should see- I had an alcoholic father who would beat my mother up...
Posted by Humans of Bombay on Tuesday, 15 December 2015
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