मार्टा वैन्डुज़र-स्नो द्वारा बनवाए गए इवैपोट्रांसपिरेशन टॉयलेट की लागत सिर्फ 9,978 रुपये आती है
लुधियाना की रहने वाली 20-वर्षीय रेणु जिस वक्त शादी होने के बाद उत्तर प्रदेश के उसूरी में आकर बसी, उसे एक ज़ोरदार झटका लगा... उसके नए घर में शौचालय नहीं था, और उसे निबटने के लिए खुले मैदानों में जाना पड़ने लगा...
रेणु का कहना था, "जब तक मेरी शादी नहीं हुई थी, मैं सोचती थी 'शौचालय' तो बुनियादी ज़रूरत और हक है... मैं समझती थी कि घर में शौचालय होता ही है... लेकिन जब मेरे नए घर में शौचालय नही मिला, तब मुझे उसकी अहमियत का पता चला..."
खैर, डेढ़ साल तक संघर्ष करने के बाद रेणु को आखिरकार नए घर में भी शौचालय मिल गया, और उसकी मदद की अमेरिकी पीएचडी छात्रा मार्टा वैन्डुज़र-स्नो ने, जो पिछले तीन साल से हिन्दुस्तान में ही रह रही हैं...
रेणु ने कहा कि भारत में लड़कियां कई पीढ़ियों से बिना शौचालयों के ही रहती आ रही हैं... उन्हें शौच तथा मूत्रत्याग के लिए ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और बहुत-बहुत देर तक उस दबाव को शरीर में ही रोककर रखना पड़ता है...
अमेरिका के बोस्टन में पली-बढ़ीं मार्टा वैन्डुज़र-स्नो यहां राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के साथ वॉलंटियर के तौर पर जुड़ी हुई हैं, और इस समस्या से निजात पाने में हमारे देश की मदद कर रही हैं... मार्टा का मानना है कि शौचालय मूलभूत अधिकार होना चाहिए, और इसे सभी को मिलना चाहिए... अब तक वह उसूरी, अयोध्या का पुरवा, जिमींदार का पुरवा और ढकोलिया गांवों में कम लागत वाले 100 से भी ज़्यादा इवैपोट्रांसपिरेशन टॉयलेट (evapotranspiration toilets) बनवा चुकी हैं... इन दिनों वह उत्तर प्रदेश के एक और ग्रामीण हिस्से में 20 नए टॉयलेट बनवाने के लिए काम कर रही हैं...
दिलचस्प बात यह है कि मार्टा वैन्डुज़र-स्नो द्वारा बनवाए गए इवैपोट्रांसपिरेशन टॉयलेट की लागत सिर्फ 9,978 रुपये आती है, जबकि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा बनवाए गए शौचालय की लागत लगभग 17,000 रुपये है...
मार्टा के काम से लाभान्वित हुए इन गांवों में इन शौचालयों का निर्माण 'खुले में शौच की प्रवृत्ति' का अंत साबित हुआ है...
उसूरी के रहने वाले एक ग्रामीण ने कहा, "मेरी बेटी के लिए शौचालय बनवाना मेरा सपना था... मुझे इस का बुरा लगता था कि उसे खुले में निवृत्त होने जाना पड़ता था, या दबाव को बहुत देर तक रोककर रखना पड़ता था... अब मैं मार्टा के साथ काम कर रहा हूं, और अपने गांव में और शौचालय बनवाने में उनकी मदद कर रहा हूं... मैं यह सब पैसे के लिए नहीं, अपने परिवार और गांव की भलाई के लिए कर रहा हूं..."
आप भी देखिए, मार्टा के काम को लेकर NDTV स्पेशल प्रोजेक्ट्स टीम द्वारा तैयार किया गया एक वीडियो...
अब हमें कमेंट कर ज़रूर बताइगा, क्या इस तरह का कोई गांव आपकी नज़र में भी है, जहां अब खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है... (मार्टा वैन्डुज़र-स्नो के बारे में अधिक विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...)
रेणु का कहना था, "जब तक मेरी शादी नहीं हुई थी, मैं सोचती थी 'शौचालय' तो बुनियादी ज़रूरत और हक है... मैं समझती थी कि घर में शौचालय होता ही है... लेकिन जब मेरे नए घर में शौचालय नही मिला, तब मुझे उसकी अहमियत का पता चला..."
खैर, डेढ़ साल तक संघर्ष करने के बाद रेणु को आखिरकार नए घर में भी शौचालय मिल गया, और उसकी मदद की अमेरिकी पीएचडी छात्रा मार्टा वैन्डुज़र-स्नो ने, जो पिछले तीन साल से हिन्दुस्तान में ही रह रही हैं...
रेणु ने कहा कि भारत में लड़कियां कई पीढ़ियों से बिना शौचालयों के ही रहती आ रही हैं... उन्हें शौच तथा मूत्रत्याग के लिए ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और बहुत-बहुत देर तक उस दबाव को शरीर में ही रोककर रखना पड़ता है...
अमेरिका के बोस्टन में पली-बढ़ीं मार्टा वैन्डुज़र-स्नो यहां राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के साथ वॉलंटियर के तौर पर जुड़ी हुई हैं, और इस समस्या से निजात पाने में हमारे देश की मदद कर रही हैं... मार्टा का मानना है कि शौचालय मूलभूत अधिकार होना चाहिए, और इसे सभी को मिलना चाहिए... अब तक वह उसूरी, अयोध्या का पुरवा, जिमींदार का पुरवा और ढकोलिया गांवों में कम लागत वाले 100 से भी ज़्यादा इवैपोट्रांसपिरेशन टॉयलेट (evapotranspiration toilets) बनवा चुकी हैं... इन दिनों वह उत्तर प्रदेश के एक और ग्रामीण हिस्से में 20 नए टॉयलेट बनवाने के लिए काम कर रही हैं...
दिलचस्प बात यह है कि मार्टा वैन्डुज़र-स्नो द्वारा बनवाए गए इवैपोट्रांसपिरेशन टॉयलेट की लागत सिर्फ 9,978 रुपये आती है, जबकि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा बनवाए गए शौचालय की लागत लगभग 17,000 रुपये है...
मार्टा के काम से लाभान्वित हुए इन गांवों में इन शौचालयों का निर्माण 'खुले में शौच की प्रवृत्ति' का अंत साबित हुआ है...
उसूरी के रहने वाले एक ग्रामीण ने कहा, "मेरी बेटी के लिए शौचालय बनवाना मेरा सपना था... मुझे इस का बुरा लगता था कि उसे खुले में निवृत्त होने जाना पड़ता था, या दबाव को बहुत देर तक रोककर रखना पड़ता था... अब मैं मार्टा के साथ काम कर रहा हूं, और अपने गांव में और शौचालय बनवाने में उनकी मदद कर रहा हूं... मैं यह सब पैसे के लिए नहीं, अपने परिवार और गांव की भलाई के लिए कर रहा हूं..."
आप भी देखिए, मार्टा के काम को लेकर NDTV स्पेशल प्रोजेक्ट्स टीम द्वारा तैयार किया गया एक वीडियो...
अब हमें कमेंट कर ज़रूर बताइगा, क्या इस तरह का कोई गांव आपकी नज़र में भी है, जहां अब खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है... (मार्टा वैन्डुज़र-स्नो के बारे में अधिक विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...)
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