
नई दिल्ली:
सोचिए, आपने कोई सामान ऑनलाइन ऑर्डर किया है, और वह आपके घर पर डिलीवर होने वाला है... और अचानक किसी लड़के की जगह एक लड़की स्कूटर चलाती हुई आपके घर पहुंचती है और हेल्मेट उतारकर घंटी बजाती है... हमें यकीन है, आप हैरान हो जाएंगे, लेकिन यकीन कीजिए, अब ऐसा सचमुच हो सकता है...

घर-घर सामान पहुंचाने के इस पेशे से जुड़े पुरुषों के 'वर्चस्व' को खत्म करती इन लड़कियों में से एक हैं 21-वर्षीय सुनीता, जो दिल्ली के संगम विहार इलाके में अपने माता-पिता, भाइयों और दो बहनों के साथ रहती है, और उसके मुताबिक उसके परिवार की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से भी कम है, सो, घर का खर्च चलाने में मदद करने के साथ-साथ कुछ 'अलग' कर दिखाने के इरादे को मन में संजोए सुनीता ने दिल्ली की एक स्टार्ट-अप कंपनी में नौकरी कर ली, जो घरों में सामान डिलीवर करने के लिए लड़कियों को काम पर रख रही थी...

सुनीता का कहना है कि उसे स्कूटर चलाने में डर लगता था, और उसके माता-पिता भी इस पेशे को चुनने को लेकर घबराए हुए थे... उन्हें सुनीता की सुरक्षा की भी चिंता थी... NDTV से बात करते हुए सुनीता कहती है, "शुरू में मुझे दिल्लीभर की सड़कों पर अकेले स्कूटर चलाने में डर लगता था, लेकिन वक्त के साथ-साथ मुझमें आत्मविश्वास आता गया और अब मुझे बिल्कुल डर नहीं लगता..."

सुनीता इस कंपनी के लिए स्कूटर पर सामान डिलीवर करने का काम करने वाली छह लड़कियों की टीम का हिस्सा है... इन सभी की उम्र 19 से 24 साल के बीच है, और ये अपने-अपने परिवार के लिए लगभग 10,000 रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं...

दिल्ली की 'ईवन कार्गो' की स्थापना 28-वर्षीय योगेश कुमार ने की थी, जो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ से ग्रेजुएट हैं... यह पूछे जाने पर कि सिर्फ लड़कियों के साथ यह डिलीवरी सर्विस शुरू करने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली, वह कहते हैं, "स्टीरियोटाइप को भी तोड़ना चाहता था, और समाज के गरीब तबके की लड़कियों को मौका देना चाहता था..." योगेश कुमार ने कहा, "मैं समझता हूं कि प्रत्येक महिला के पीछे एक कहानी होती है... वे विजेता के रूप में ही पैदा होती हैं... उन्हें सिर्फ एक मौका दीजिए, और फिर देखिए कितने बड़े-बड़े बदलाव आ सकते हैं..."

योगेश कुमार की स्टार्ट-अप ने 100 लड़कियों को स्कूटर चलाने की ट्रेनिंग दी, और इनमें से छह ने सभी चार चरणों को पूरा किया और स्थायी कर्मचारी के रूप में उन्हें भर्ती कर लिया गया... उन्होंने NDTV को बताया कि ज़्यादातर परिवार इस पेशे को पसंद नहीं करते, और उनकी ओर से समर्थन नहीं मिल पाने के कारण ड्रॉपआउट रेट बहुत ज़्यादा है...

दूसरी ओर, शाम्भवी नामक खरीदार कहती हैं, "जब भी घर पर कोई डिलीवरी आती है, कोई अनजान पुरुष आपके घर के दरवाज़े पर खड़ा होता है... मैं इससे हमेशा घबराती थी, चौकन्नी रहती थी... अब जब दरवाज़े के दूसरी तरफ एक लड़की होती है, सो, कुछ सुरक्षित-सा महसूस होता है..."

सुनीता का कहना है कि उसकी नौकरी ने उसे आज़ाद कर दिया है... अब उसमें पहले से कहीं ज़्यादा आत्मविश्वास है और वह पहले की तुलना में सुरक्षित भी महसूस करती है... सामान डिलीवर करने के अलावा वह दिल्ली के ही एक कॉलेज से ग्रेजुएशन भी कर रही है... वह कहती है, "मैं नेशनल कैडेट कॉर्प्स (एनसीसी) में शामिल होना चाहती हूं... मैं अपनी ज़िन्दगी में कुछ और भी करना चाहती हूं..."

योगेश कुमार बताते हैं कि एक टीम के रूप में ये छह लड़कियां दिनभर में लगभग 13 से 15 डिलीवरी कर लेती हैं... सिंगापुर इंटरनेशनल फाउंडेशन और सिंगापुर के टीआईएसएस डेवलपमेंट बैंक की सहायता से चलने वाली उनकी स्टार्ट-अप कंपनी अब काम का दायरा बढ़ाने, और ज़्यादा लड़कियों को ट्रेन करने व काम पर रखने के बारे में सोच रही है...

घर-घर सामान पहुंचाने के इस पेशे से जुड़े पुरुषों के 'वर्चस्व' को खत्म करती इन लड़कियों में से एक हैं 21-वर्षीय सुनीता, जो दिल्ली के संगम विहार इलाके में अपने माता-पिता, भाइयों और दो बहनों के साथ रहती है, और उसके मुताबिक उसके परिवार की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से भी कम है, सो, घर का खर्च चलाने में मदद करने के साथ-साथ कुछ 'अलग' कर दिखाने के इरादे को मन में संजोए सुनीता ने दिल्ली की एक स्टार्ट-अप कंपनी में नौकरी कर ली, जो घरों में सामान डिलीवर करने के लिए लड़कियों को काम पर रख रही थी...

सुनीता का कहना है कि उसे स्कूटर चलाने में डर लगता था, और उसके माता-पिता भी इस पेशे को चुनने को लेकर घबराए हुए थे... उन्हें सुनीता की सुरक्षा की भी चिंता थी... NDTV से बात करते हुए सुनीता कहती है, "शुरू में मुझे दिल्लीभर की सड़कों पर अकेले स्कूटर चलाने में डर लगता था, लेकिन वक्त के साथ-साथ मुझमें आत्मविश्वास आता गया और अब मुझे बिल्कुल डर नहीं लगता..."

सुनीता इस कंपनी के लिए स्कूटर पर सामान डिलीवर करने का काम करने वाली छह लड़कियों की टीम का हिस्सा है... इन सभी की उम्र 19 से 24 साल के बीच है, और ये अपने-अपने परिवार के लिए लगभग 10,000 रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं...

दिल्ली की 'ईवन कार्गो' की स्थापना 28-वर्षीय योगेश कुमार ने की थी, जो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ से ग्रेजुएट हैं... यह पूछे जाने पर कि सिर्फ लड़कियों के साथ यह डिलीवरी सर्विस शुरू करने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली, वह कहते हैं, "स्टीरियोटाइप को भी तोड़ना चाहता था, और समाज के गरीब तबके की लड़कियों को मौका देना चाहता था..." योगेश कुमार ने कहा, "मैं समझता हूं कि प्रत्येक महिला के पीछे एक कहानी होती है... वे विजेता के रूप में ही पैदा होती हैं... उन्हें सिर्फ एक मौका दीजिए, और फिर देखिए कितने बड़े-बड़े बदलाव आ सकते हैं..."

योगेश कुमार की स्टार्ट-अप ने 100 लड़कियों को स्कूटर चलाने की ट्रेनिंग दी, और इनमें से छह ने सभी चार चरणों को पूरा किया और स्थायी कर्मचारी के रूप में उन्हें भर्ती कर लिया गया... उन्होंने NDTV को बताया कि ज़्यादातर परिवार इस पेशे को पसंद नहीं करते, और उनकी ओर से समर्थन नहीं मिल पाने के कारण ड्रॉपआउट रेट बहुत ज़्यादा है...

दूसरी ओर, शाम्भवी नामक खरीदार कहती हैं, "जब भी घर पर कोई डिलीवरी आती है, कोई अनजान पुरुष आपके घर के दरवाज़े पर खड़ा होता है... मैं इससे हमेशा घबराती थी, चौकन्नी रहती थी... अब जब दरवाज़े के दूसरी तरफ एक लड़की होती है, सो, कुछ सुरक्षित-सा महसूस होता है..."

सुनीता का कहना है कि उसकी नौकरी ने उसे आज़ाद कर दिया है... अब उसमें पहले से कहीं ज़्यादा आत्मविश्वास है और वह पहले की तुलना में सुरक्षित भी महसूस करती है... सामान डिलीवर करने के अलावा वह दिल्ली के ही एक कॉलेज से ग्रेजुएशन भी कर रही है... वह कहती है, "मैं नेशनल कैडेट कॉर्प्स (एनसीसी) में शामिल होना चाहती हूं... मैं अपनी ज़िन्दगी में कुछ और भी करना चाहती हूं..."

योगेश कुमार बताते हैं कि एक टीम के रूप में ये छह लड़कियां दिनभर में लगभग 13 से 15 डिलीवरी कर लेती हैं... सिंगापुर इंटरनेशनल फाउंडेशन और सिंगापुर के टीआईएसएस डेवलपमेंट बैंक की सहायता से चलने वाली उनकी स्टार्ट-अप कंपनी अब काम का दायरा बढ़ाने, और ज़्यादा लड़कियों को ट्रेन करने व काम पर रखने के बारे में सोच रही है...
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