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This Article is From Sep 22, 2011

रमेश ने बीपीएल सीमा के मुद्दे पर मोंटेक को पत्र लिखा

गरीबी रेखा के बारे में योजना आयोग की परिभाषा को लेकर उठे विवाद के बीच ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आयोग के उपाध्यक्ष को पत्र लिखा है।
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नई दिल्ली: गरीबी रेखा के बारे में योजना आयोग की परिभाषा को लेकर उठे विवाद के बीच ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को पत्र लिखकर उनकी गणना की पद्वति पर सवाल उठाया है और कहा है कि आयोग के अनुमान पर निर्भरता से समस्या का निदान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न योजनाओं के तहत परिवारों की पहचान के लिये अलग अलग मानदंडों को अपनाने की जरूरत होती है। उन्होंने इसके लिये तीन विकल्पों का प्रस्ताव किया जिनमें एक प्लान.ए में सुझाव दिया गया है कि कोई भी एकमात्र बीपीएल सूची अथवा कार्ड नहीं होगा। रमेश का यह पत्र योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह को ऐसे समय लिखा गया है जब योजना आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय को लिखे गये शपथपत्र को लेकर विवाद खड़ा हो गया है जिसमें शहरी क्षेत्र में 32 रुपये और ग्रामीण खेत्र में 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च करने वाले को गरीब नहीं माना गया है। सूत्रों के अनुसार इस मुद्दे पर मोंटेक ने भी रमेश के पत्र का जवाब दिया है जिसमें किसी भी अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले विभिन्न पहुलओं पर विचार किये जाने पर जोर दिया गया है। उन्होंने ग्रामीण विकास मंत्री को लिखा है कि इस मुद्दे पर विस्तृत विचार विमर्श किये जाने की आवश्यकता है। इस बीच, योजना आयोग के एक सदस्य ने कहा है कि केंद्र के पास सीमित संसाधनों के मद्देनजर आयोग के गरीबी रेखा की यह सीमा तय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन ने संवाददाताओं से कहा, यदि कोई चीज सीमित है, तो उसे आपको राज्यों को उतने की संसाधनों में आवंटन करना है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि खाद्यान्न सीमित हैं, तो उसका आवंटन विभिन्न राज्यों को किसी तुलनात्मक संकेतक के आधार पर किया जाएगा और यह संकेतक गरीबी रेखा है। सेन ने कहा कि राज्य सभी बीपीएल कार्ड धारकों के लिए सब्सिडी चाहते हैं। केंद्र राज्यों को आयोग द्वारा परिभाषित गरीबी रेखा के आधार पर कोष उपलब्ध कराता है। आयोग के अनुसार, एक मार्च, 2005 तक देश में गरीब लोगों की संख्या 40.74 करोड़ की थी। अनुमान के अनुसार, 8 करोड़ से ज्यादा परिवार बीपीएल की श्रेणी में आते हैं, जबकि राज्यों द्वारा 11 करोड़ परिवारों को कार्ड जारी किए गए हैं।

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