यह ख़बर 31 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

तीन सौ मंदिरों में संरक्षित हो रहा देवताओं पर अर्पित जल

खास बातें

  • एक ज्योतिषी और सामाजिक कार्यकर्ता ने जल संरक्षण के लिए जो काम किया है वह पूरे देश के लिए उदाहरण बन सकता है। मंदिरों में देव प्रतिमाओं को अर्पित किए जाने वाले जल के संरक्षण का अनूठा कार्य जयपुर में किया जा रहा है।
जयपुर:

यहां के एक ज्योतिषी और सामाजिक कार्यकर्ता ने जल संरक्षण के लिए जो काम किया है वह पूरे देश के लिए उदाहरण बन सकता है। मंदिरों में देव प्रतिमाओं को अर्पित किए जाने वाले जल के संरक्षण का अनूठा कार्य यहां किया जा रहा है।

अपने चहेतों के बीच गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने पिछले 13 वर्षो में राजस्थान के करीब 300 मंदिरों में जलसंरक्षण ढांचे का विकास किया है।

समाज सेवा और ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए गौड़ को महाराणा मेवाड़ अवार्ड समेत कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

हिंदू मंदिरों में भक्तों द्वारा अर्पित लाखों गैलन जल नालियों में बह जाता था।

गौड़ ने बताया कि वर्ष 2000 में उन्होंने अपना जलाभिषेक अभियान शुरू किया।

41 वर्षीय ज्योतिषी गौड़ ने बताया, "मैंने गौर किया कि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित जल पूरी तरह नालियों में बेकार चला जाता है। इसलिए मुझे इनका भूजल को रिचार्ज करने में इस्तेमाल करने की युक्ति सूझी।"

इसके बाद उन्होंने मंदिरों खास कर शिवालयों में जल संग्रह करने का काम शुरू किया। भूमि में भेजने से पहले जल को कई फिल्टर चैंबरों से गुजारा जाता है। गौड़ ने कहा कि इस परियोजना के तहत मंदिरों में जन सहयोग से कई टैंक और बोरवेल का निर्माण कराया गया।

गौड़ ने कहा, "कुछ मंदिरों में 30 फुट गहरा गड्ढा खोदने की जरूरत पड़ी ताकि प्रतिमाओं का जल सीधा वहां एकत्रित हो सके। प्रतिमाओं पर चढाए जाने वाले दूध को जमा करने के लिए पांच फुट के गड्ढे की अलग से जरूरत पड़ी।"

गौड़ ने आगे कहा, "मुझे तब बेहद खुशी हुई जब कई वैज्ञानिक और भूजल विशेषज्ञ मेरी मदद के लिए सामने आए और 'शिक्षा समिति' नाम के एक संगठन को इस काम में आगे किया। इस संस्थान ने हिसाब लगाया कि शहर में 300 से ज्यादा मंदिर हैं जहां श्रावण महीने में रोजाना कम से कम चार करोड़ 50 लाख लीटर जल भगवान शिव व अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं पर अर्पित किया जाता है।" उन्होंने कहा कि इस बर्बादी के अलावा श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित जल और दुग्ध का पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

गौड़ ने बताया, "आम तौर पर मंदिर के समीप जल और दुग्ध को निर्बाध बहने दिया जाता है। इससे अस्वास्थ्यकर वातावरण पैदा होता है। मंदिर के चारों ओर मच्छर और मक्खियों के पलने का वातावरण तैयार हो जाता है।"

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जल संरक्षण के काम में पेश आई कठिनाइयों के बारे में गौड़ ने बताया कि शुरू में इसके लिए पुजारियों को मना पाना आसान नहीं था। उन्होंने कहा कि उनके प्रयास को कई पुजारियों ने संदेह की दृष्टि से देखा। यहां तक कि जब उनके समर्थकों ने इस परियोजना के लिए धन जमा करना शुरू किया तब भी पुजारी आनाकानी करते रहे। लेकिन आज 300 मंदिर इस अभियान से जुड़े हैं।