प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 1983 में लिखी गई एक कविता के कुछ अंश सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इस कविता के जरिए पीएम मोदी ने आदिवासियों की स्थिति और संघर्षों को समझाने की कोशिश की है. दरअसल, नरेंद्र मोदी ने इस कविता को जिस परिस्थिति में लिखा, वह बड़ा दिलचस्प है. 'मारुति की प्राण प्रतिष्ठा' शीर्षक वाली इस कविता का एक अंश जो नरेंद्र मोदी के द्वारा हस्तलिखित है, उसकी प्रति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खूब शेयर की जा रही है.
'Maruti ki Pran Pratishtha'
— Modi Archive (@modiarchive) April 9, 2024
In 1983, @narendramodi, then an RSS Swayamsevak, was invited to participate in the 'pran pratishta' of a Hanuman temple in South Gujarat. The drive was long, and no soul was in sight for kilometres at a stretch. On his way to the village, he noticed… pic.twitter.com/LC0AhdkYMX
बता दें कि 1983 में जब नरेंद्र मोदी ने यह कविता लिखी तब वह एक आरएसएस (संघ) के स्वयंसेवक थे, उन्हें दक्षिण गुजरात में एक हनुमान मंदिर की 'प्राण प्रतिष्ठा' में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. रास्ता लंबा था और कई किलोमीटर तक कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था. गांव के रास्ते में उनकी नजर धरमपुर के आदिवासियों पर पड़ी, जो संसाधनों की कमी के कारण परेशानी में जीवन यापन कर रह रहे थे. उनके शरीर काले पड़ गए थे.
बता दें कि गुजरात के धरमपुर में स्थित भावा भैरव मंदिर, पनवा हनुमान मंदिर, बड़ी फलिया और अन्य स्थानीय मंदिरों सहित कई हनुमान मंदिरों में आज भी आदिवासी समुदाय द्वारा पूजा की जाती है.
नरेंद्र मोदी की इस कविता को देखकर आपको पता चल जाएगा कि वह कैसे देश की उन्नति के लिए हमारी जड़ों के महत्व को पहचानते हैं. किसी खास जनजाति के बारे में इस तरह के विचार केवल उसी व्यक्ति से उत्पन्न हो सकते हैं, जिसने अपना जीवन उन व्यक्तियों के बीच बिताया हो.
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