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एक दिन के लिए डिलीवरी एजेंट बना शख्स, बताई आपबीती- कैसे भेदभाव करते हैं लोग? कहा- छुआछूत सिर्फ कास्ट से नहीं बल्कि...

"यह भेदभाव और छुआछूत का नया रूप है. लोग कहते हैं कि इसे खत्म कर दिया गया है, नहीं. यह सिर्फ जाति से बदलकर वर्ग हो गया है. इसका रूप बदल गया है, लेकिन यह अभी भी मौजूद है."

एक दिन के लिए डिलीवरी एजेंट बना शख्स, बताई आपबीती- कैसे भेदभाव करते हैं लोग? कहा- छुआछूत सिर्फ कास्ट से नहीं बल्कि...
एक दिन के लिए डिलीवरी एजेंट बना शख्स

डिलीवरी एजेंट जो चिलचिलाती धूप, तेज़ बारिश और कड़ाके की ठंड हर मौसम में अपना काम जारी रखते हैं, इनकी नौकरी कितनी चुनौतियों से भरी होती है. हम में से बहुत से लोग जो एसी में बैठकर इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं. तमाम मुश्किलों का सांमना करते हुए ये दिन रात मेहनत करते हैं. इन्हीं चुनौतियों का अनुभव करने और उन्हें समझने के लिए दिल्ली के एक शख्स ने अनोखा फैसला किया. उसने एक दिन के लिए खुद डिलीवरी मैन बनने का फैसला किया, ताकि वो खुद अनुभव कर सके कि डिलीवरी एजेंट्स को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

दिल्ली के रहने वाले सलमान सलीम जो एक कंपनी में क्रिएटिव हेड हैं. उन्होंने एक दिन के लिए अपनी आरामदायक डेस्क की नौकरी छोड़कर ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट (Blinkit delivery agent) बनने का फैसला किया. जब सलमान ने डिलीवरी का काम शुरु किया तो उन्हें गर्मी, धूल और ट्रैफिक से लड़ते हुए ऑर्डर पहुंचाने पड़े. लेकिन उन्हें असली तकलीफ मौसम से ज्यादा लोगों के व्यवहार से हुई. उन्होंने महसूस किया कि डिलीवरी करने वालों के साथ समाज में अब भी भेदभाव होता है और ये सिर्फ जाति का नहीं, बल्कि काम और कपड़ों के आधार पर भी होता है.

सलीम ने कहा, "सिर्फ पुलिसकर्मी ही नहीं, बल्कि एसी कारों में बैठे लोग भी डिलीवरी करने वालों के साथ दूसरे दर्जे के यात्रियों जैसा व्यवहार करते हैं." सलीम ने बताया कि कई हाउसिंग सोसाइटियों में गार्ड उन्हें मुख्य लिफ्ट का इस्तेमाल करने से मना कर देते थे. मुझे अक्सर मुख्य लिफ्ट का इस्तेमाल करने से रोक दिया जाता था.मुझे या तो सीढ़ियों से जाने के लिए कहा जाता था, कभी-कभी चौथी मंजिल तक जाने के लिए या सर्विस लिफ्ट का इस्तेमाल करने के लिए. इस तरह का व्यवहार खास तौर पर हाउसिंग सोसाइटियों में आम था, जहां तथाकथित अमीर और शिक्षित लोग रहते हैं, वही लोग जो सोशल मीडिया पर हर तरह के भेदभाव के खिलाफ़ अपनी राय मुखर करते हैं."

सलीम की पोस्ट में यह भी कहा गया है कि सम्मान के साथ ड्रेस कोड नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा, "एक समाज के रूप में, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि डिलीवरी अधिकारी भी बाकी सभी लोगों की तरह ही इंसान हैं. हमें किसी की वर्दी या दिखावट के आधार पर उसके चरित्र, स्थिति या मूल्य के बारे में धारणा बनाना बंद कर देना चाहिए. हर कोई सम्मान का हकदार है, चाहे उसका पेशा कोई भी हो." 

उन्होंने ब्लिंकिट और ज़ेप्टो जैसी कंपनियों से भी आगे आने का आग्रह किया. सलीम ने अपनी पोस्ट के अंत में कहा, "ज़ेप्टो और ब्लिंकिट जैसी ग्रॉसरी डिलीवरी कंपनियों को डिलीवरी कर्मचारियों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता अभियान चलाने का समय आ गया है.  ये अभियान दयालुता और सम्मान को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ उचित व्यवहार किया जाए." 

सोशल मीडिया यूजर्स ने सलीम के विचारों को दोहराया और कमेंट सेक्शन में इस तरह के भेदभाव को देखने के अपने अनुभव साझा किए.

एक यूजर ने कहा, "सलमान ने सही कहा. मैंने यह भी देखा है कि समाज में डिलीवरी करने वालों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है. वे नौकरानियों या डिलीवरी करने वालों को निवासियों के लिए बनी लिफ्ट का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देते. दोहरे मापदंड और पाखंड का नाम लेकर उन्हें शर्मिंदा किया जाना चाहिए."

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एक अन्य यूजर ने अपनी बिल्डिंग में हुई एक हालिया घटना को याद किया. "एक ज़ेप्टो डिलीवरी करने वाला लिफ्ट में चढ़ा और कुछ सेकंड के भीतर एक महिला ने पूछा, 'आप डिलीवरी वाले हैं न?' उसने उससे दो बार सवाल किया और कहा कि उसे दूसरी लिफ्ट का इस्तेमाल करना चाहिए था. उसने शांति से कहा कि वह काम नहीं कर रही थी और गार्ड ने उसे इसी लिफ्ट का इस्तेमाल करने के लिए कहा. उसके बाद उसका हाव-भाव इतना खारिज करने वाला था - इससे मैं असहज हो गया."

एक यूजर ने कहा, "यह भेदभाव और छुआछूत का नया रूप है. लोग कहते हैं कि इसे खत्म कर दिया गया है, नहीं. यह सिर्फ जाति से बदलकर वर्ग हो गया है. इसका रूप बदल गया है, लेकिन यह अभी भी मौजूद है."

ब्लिंकिट और इसकी मूल कंपनी, ज़ोमैटो ने अभी तक वायरल पोस्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सलमान सलीम की पोस्ट ने ऑनलाइन लोगों को झकझोर दिया क्योंकि इसने आईना दिखाया. वर्दी अलग-अलग हो सकती है, लेकिन गरिमा वैकल्पिक नहीं है. और शायद, यह बदलने का समय है कि हम उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो हमारी सुविधाओं को चलाते हैं.

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