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This Article is From Sep 07, 2023

Janmashtami : मिलिए रेखा श्रीवास्तव से, 24 साल से कृष्ण और राधा को तैयार कर रही हैं

सतना जिले की मशहूर मेकअप एंड कॉस्ट्यूम डिजायनर रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने रीवा के कॉलेज से एमए संगीत, हिंदी साहित्य और समाजशास्त्र से पढ़ाई की. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कल्चरर प्रोग्राम करते हुए नाटक में भाग लेती थी. इस दौरान सभी पात्रों को वे तैयार भी करती थी. यह करते-करते काफी अभ्यास हो गया.

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Janmashtami : मिलिए रेखा श्रीवास्तव से, 24 साल से कृष्ण और राधा को तैयार कर रही हैं

जन्माष्टमी के पर्व की देश भर में धूम है. मंदिरों में लोगों की भीड़, जगह-जगह मटकी फोड़ प्रतियोगिताएं भी हो रहीं हैं, लेकिन सतना में एक ऐसी भी महिला हैं जो अपनी आस्था कान्हा की कॉस्ट्यूम और राधा का मेकअप कर प्रकट रही हैं. पिछले चौबीस वर्षों से वे हर जन्माष्टमी में बच्चों को राधा-कृष्ण का आकार देती हैं. जन्माष्टमी के दिन सुबह से लेकर शाम तक राधा-कृष्ण बनने वाले लोगों की भीड़ जमा रहती है. इनकी इस कला का हर कोई कायल है. इन्हें कास्ट्यूम डिजायन के लिए प्रदेश के तमाम हिस्सों से बुलावा भेजा जाता है. कई नामी गिरामी स्कूलों ने प्रमाण पत्र भी दिए हैं. बात सतना में कृष्णम् वंदे कला केन्द्र का संचालन करने वाली रेखा श्रीवास्तव की है. जिनका यह सफर पिछले 24 सालों से चल रहा है. हर साल लगभग एक सैकड़ा बच्चों को राधा और कृष्ण के रुप में तैयार करती हैं.

शहर के डालीबाबा क्षेत्र में कला केन्द्र का संचालन करने वाली रेखा श्रीवास्तव फिलहाल सरस्वती विद्यालय से रिटायर हो चुकी हैं अब वे अपने घर से ही केन्द्र का संचालन कर रही हैं. उनके साथ 30 महिलाओं की टीम काम कर रही है. यह टीम वैसे तो हर त्योहार में लोगों की डिमांड के अनुसार उनका मेकअप करती हैं, जिसका पैसा लेती हैं लेकिन जन्माष्टमी, रामनवमी, महाशिवरात्रि और अन्य त्योहारों के दौरान केवल सामग्री का खर्च ही लेती हैं.

सतना जिले की मशहूर मेकअप एंड कॉस्ट्यूम डिजायनर रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने रीवा के कॉलेज से एमए संगीत, हिंदी साहित्य और समाजशास्त्र से पढ़ाई की. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कल्चरर प्रोग्राम करते हुए नाटक में भाग लेती थी. इस दौरान सभी पात्रों को वे तैयार भी करती थी. यह करते-करते काफी अभ्यास हो गया. शादी के बाद जब सतना आईं तो सरस्वती विद्यालय में पढ़ाने लगीं. इस दौरान जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे तब बच्चों को तैयार किया जाता. बच्चों की तैयारी का जिम्मा किसी और के पास होता था, लेकिन पसंद नहीं आता था. जिसके बाद सतना में कृष्णम वंदे कला केन्द्र की स्थापना करते हुए बच्चों को तैयार करने और ड्रेस उपलब्ध कराने लगी. आज स्थिति यह है कि इससे महिलाओं को जहां एक तरफ रोजगार मिल रहा है वहीं बच्चे बेहद कम खर्च में आकर्षक रुप में तैयार हो पा रहे हैं. जबकि इससे पहले ऐसा करने के लिए या तो रीवा, इंदौर, जबलपुर से कलाकारों को बुलाया जाता था वहीं अब सतना जैसे छोटे शहर में यह सबकुछ उपलब्ध हो रहा है.

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