अपने खास जायकों के लिए मशहूर नवाबों के शहर लखनऊ के लिए इस दफा रमजान बिल्कुल अलग हैं. दिन भर रोजा रखने के बाद इफ्तार के वक्त लोगों को लज्जत देने वाले खाने-पीने के बाजार लॉकडाउन के कारण वीरान हैं. हर रमजान में खासकर पुराने लखनऊ के बाजार इफ्तार से लेकर सुबह सहरी तक गुलजार रहते थे. लोगों की दिनचर्या बदल जाती थी और वे इफ्तार के बाद तरावीह की नमाज़ अदा करके रात भर इन बाजारों में चहल कदमी करते और सुबह सहरी के वक्त खाने-पीने का सामान खरीद कर घर लौटते थे. गलावटी कबाब, तंदूरी चिकन और मटन के विभिन्न व्यंजनों के साथ साथ शीरमाल, खमीरी रोटी और कुल्चा निहारी की दुकानों पर खासतौर से रौनक रहती थी. मगर इस बार लॉकडाउन ने सब पर ताला लगा दिया है. लखनऊ के लिए ऐसे रमजान पहले कभी नहीं गुजरे.
लॉकडाउन की वजह से इस बार रोजेदार अपने घरों में हैं और दुकानें सन्नाटे में. धर्म गुरुओं की अपील के बाद लोग तरावीह की नमाज भी घर में ही पढ़ रहे हैं. शहर काजी मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने सोमवार को ''भाषा'' को बताया कि लॉक डाउन की वजह से इस दफा लोगों से अपील की गई है कि वे तरावीह समेत तमाम नमाजें अपने घर में ही अदा करें. ऐसा करके वह न सिर्फ खुद को बल्कि समाज को भी कोरोना संक्रमण से महफूज रख सकेंगे. उन्होंने कहा कि यह सच है कि रमजान में खाने-पीने की दुकानें नहीं खुलने की वजह से बाजारों में वह रौनक नहीं है लेकिन रमजान का मतलब अच्छे व्यंजनों से नहीं बल्कि बेहतरीन इबादत से है.
रमजान अल्लाह का दिया एक तोहफा है जिसमें लोग इबादत करके अपनी दुआ कबूल करा सकते हैं. अल्लाह ने चाहा तो इस रमजान में हो रहे आर्थिक नुकसान की भरपाई भी हो जाएगी. बहरहाल, लॉकडाउन की वजह से कारोबार बंद है और कारोबारियों का भारी नुकसान हो रहा है. लखनऊ की मशहूर इदरीस बिरयानी के मालिक अबू बकर ने बताया "इस दफा रमजान में कारोबार पूरी तरह बंद है. इससे पहले रमजान से एक-दो माह पूर्व ही तैयारियां की जाती थी, मगर अब सब कुछ बिगड़ गया है."
उन्होंने कहा "बाजार में गोश्त नहीं मिल रहा है तो बिरयानी कैसे बनेगी. बकरा मंडी में जानवर नहीं आने से गोश्त नहीं मिल रहा है बहरहाल, जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई अगले कई सालों तक नहीं हो सकेगी." अबू बकर ने कहा कि हर साल रमजान के वक्त में दोगुनी बिक्री होती थी और दो शिफ्ट में काम किया जाता था, मगर कोरोना संक्रमण के मद्देनजर इंसान की जिंदगी कहीं ज्यादा कीमती है. हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि चीजें जल्दी ठीक हों. कुछ यही हाल लखनऊ के मशहूर टुंडे कबाबी प्रतिष्ठानों का भी है.
टुंडे की एक शाखा के प्रबंधक एहरार अहमद ने बताया कि आमतौर पर रमजान में हम लगभग साल भर के बराबर कमाई कर लिया करते थे मगर इस बार जबरदस्त नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से कारीगर नहीं मिल रहे हैं और कच्चा माल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. कुल मिलाकर हालात बेहद खराब हैं. खुदा जाने ये कहां जाकर रुकेंगे. लॉकडाउन के कारण खजूरों का आयात भी बंद है. रमजान में खजूर से इफ्तार करने की परंपरा है लेकिन लोग इस दफा आयातित खजूरों के जायके से महरूम हैं. कुल मिलाकर इस दफा रमजान में खाने पीने के शौकीन लोगों और दुकानदारों को कारोबार के लिहाज से गहरी निराशा मिल रही है.
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