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तस्वीर : AFP
मावलिननॉन्ग:
मेघालय के छोटे से गांव मावलिननॉन्ग में प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित है, यहां की सड़क के किनारों पर फूलों की कतारें दिखाई देती हैं। ऐसी ही कई और निराली बातें इस गांव से जुड़ी हुई हैं जो इसे एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव बनाती हैं। हालांकि इस जगह की यह प्रतिष्ठा अपने साथ और भी बहुत कुछ लेकर आ रही है। 2003 तक 500 रहवासियों के इस गांव में कोई पर्यटक नहीं नज़र आता था। एक ऐसा गांव जहां सड़कें नहीं थी और सिर्फ पैदल ही आया जा सकता था, वहां कोई नहीं आता था लेकिन 12 साल पहले डिस्कवरी इंडिया ट्रैवल मैगेज़ीन के एक पत्रकार की बदौलत यह गांव दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बन गया। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में इस गांव का ज़िक्र किया था।
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इसके बाद से तो यहां पर्यटकों का तांता और ज्यादा लगने लगा और अब आलम यह है कि इस शांत इलाके में भी प्रदूषण की शिकायतें होने लगी हैं। 51 साल के गेस्टहाउस मालिक रिशोट का कहना है कि उन्होंने गांव के परिषद से बात की है कि वह सरकार से और पार्किंग लॉट बनाने के लिए कहें। सीज़न के वक्त तो एक दिन में करीब 250 पर्यटक इस गांव में आते हैं। मेघालय पर्यटन विभाग के पूर्व अधिकारी दीपक लालू ने तो गांव वालों को यह भी कह दिया था कि अब उन्हें किसी तरह की निजता के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अपने घर के बाहर कपड़े धोती हुई महिला की भी तस्वीर खींची जा सकती है।
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मावलिननॉन्ग को खासी आदिवासियों का घर माना जाता है और बाकियों से अलग यहां पैतिृक नहीं मातृवंशीय समाज है जहां संपत्ति और दौलत मां अपनी बेटी के नाम करती है। साथ ही बच्चों के नाम के साथ भी उनकी मां का उपनाम जोड़े जाने की प्रथा है। इस गांव के हर कोने में आपको बांस के कूड़ेदान नज़र आ जाएंगे और समय-समय पर स्वयंसेवी सड़कों को साफ करते दिखाई देंगे। बनियार मावरोह अपने गांव और परिवार के बारे में बताती हैं, 'हम रोज़ सफाई करते हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि गांव को साफ सुथरा रखने से शरीर स्वस्थ रहता है।'
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सफाई के प्रति मावलिननॉन्ग की यह लगन दरअसल 130 साल पहले शुरू हुई जब इस गांव में हैजे की बीमारी का आतंक छा गया था। किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा न होने की वजह से इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सफाई ही एकमात्र तरीका बच गया था। खोंगथोहरेम का कहना है 'क्रिश्चियन मिशनरी ने हमारे पूर्वजों से कहा था कि तुम सफाई के जरिए ही हैजे से खुद को बचा सकते हो। फिर खाना हो, घर हो, ज़मीन हो, गांव हो या फिर आपका शरीर सफाई ज़रूरी है।' यही वजह है कि घर घर में शौचालय के मामले में भी यह गांव सबसे आगे है और 100 में से लगभग 95 घरों में यहां शौचालय बना हुआ है।
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इसके बाद से तो यहां पर्यटकों का तांता और ज्यादा लगने लगा और अब आलम यह है कि इस शांत इलाके में भी प्रदूषण की शिकायतें होने लगी हैं। 51 साल के गेस्टहाउस मालिक रिशोट का कहना है कि उन्होंने गांव के परिषद से बात की है कि वह सरकार से और पार्किंग लॉट बनाने के लिए कहें। सीज़न के वक्त तो एक दिन में करीब 250 पर्यटक इस गांव में आते हैं। मेघालय पर्यटन विभाग के पूर्व अधिकारी दीपक लालू ने तो गांव वालों को यह भी कह दिया था कि अब उन्हें किसी तरह की निजता के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अपने घर के बाहर कपड़े धोती हुई महिला की भी तस्वीर खींची जा सकती है।
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मावलिननॉन्ग को खासी आदिवासियों का घर माना जाता है और बाकियों से अलग यहां पैतिृक नहीं मातृवंशीय समाज है जहां संपत्ति और दौलत मां अपनी बेटी के नाम करती है। साथ ही बच्चों के नाम के साथ भी उनकी मां का उपनाम जोड़े जाने की प्रथा है। इस गांव के हर कोने में आपको बांस के कूड़ेदान नज़र आ जाएंगे और समय-समय पर स्वयंसेवी सड़कों को साफ करते दिखाई देंगे। बनियार मावरोह अपने गांव और परिवार के बारे में बताती हैं, 'हम रोज़ सफाई करते हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि गांव को साफ सुथरा रखने से शरीर स्वस्थ रहता है।'
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सफाई के प्रति मावलिननॉन्ग की यह लगन दरअसल 130 साल पहले शुरू हुई जब इस गांव में हैजे की बीमारी का आतंक छा गया था। किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा न होने की वजह से इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सफाई ही एकमात्र तरीका बच गया था। खोंगथोहरेम का कहना है 'क्रिश्चियन मिशनरी ने हमारे पूर्वजों से कहा था कि तुम सफाई के जरिए ही हैजे से खुद को बचा सकते हो। फिर खाना हो, घर हो, ज़मीन हो, गांव हो या फिर आपका शरीर सफाई ज़रूरी है।' यही वजह है कि घर घर में शौचालय के मामले में भी यह गांव सबसे आगे है और 100 में से लगभग 95 घरों में यहां शौचालय बना हुआ है।
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