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चुप हो जा, मुंह तोड़ दूंगी... अस्पताल में बहू के लेबर पेन पर डांटती दिखी सास, Video देख भड़के लोग

प्रयागराज के अस्पताल में सास द्वारा लेबर पेन के दौरान बहू पर चिल्लाने का वीडियो वायरल. डॉक्टर और सोशल मीडिया यूज़र्स ने घटना पर जताई नाराजगी, कहा- “ऐसे वक्त में चाहिए प्यार, न कि अपमान.

चुप हो जा, मुंह तोड़ दूंगी... अस्पताल में बहू के लेबर पेन पर डांटती दिखी सास, Video देख भड़के लोग
अस्पताल में बहू के लेबर पेन पर भड़की सास!

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक अस्पताल से एक चौंकाने वाला वीडियो सामने आया है, जिसमें एक बुजुर्ग महिला अपनी बहू पर प्रसव पीड़ा (लेबर पेन) के दौरान चिल्लाती और उसका मज़ाक उड़ाती दिख रही है. यह महिला अपनी बहू से ‘नॉर्मल डिलीवरी' करवाने पर अड़ी थी, जबकि डॉक्टरों और परिवार वालों ने दिक्कतों के चलते सी-सेक्शन (caesarean) की सलाह दी थी.

‘रोना बंद करो, वरना मुंह तोड़ दूंगी'

वीडियो में बुजुर्ग महिला अपनी बहू पर चिल्लाते हुए कहती सुनाई देती है- “चुप हो जा, नहीं तो मुंह तोड़ दूंगी. अगर ऐसे ही रोएगी तो मां कैसे बनेगी?” इस दौरान गर्भवती महिला दर्द में कराहती दिखती है, जबकि सास उस पर ताने कसती रहती है. महिला के पति का हाथ पकड़ने पर भी उसने बहू को टोक दिया और कहा कि “हाथ छोड़ो.”

डॉक्टर ने पोस्ट कर जताई चिंता

वीडियो को गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. नाज़ फ़ातिमा ने सोशल मीडिया पर शेयर किया. उन्होंने लिखा कि प्रसव के समय परिवार को महिला के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण रहना चाहिए. उन्होंने पोस्ट में कहा, “ऐसे समय में सिर्फ़ प्यार से बोलना चाहिए.” 

देखें Video:

सोशल मीडिया पर गुस्सा 

वीडियो वायरल होते ही इंटरनेट पर लोगों ने गुस्सा जताया. एक यूज़र ने लिखा, “आप सबको समस्या सास में दिख रही है, लेकिन मुझे पति में दिख रही है जिसने अपनी पत्नी के लिए खड़ा होना जरूरी नहीं समझा.” एक अन्य ने कहा, “वीडियो पहले ही ट्रॉमाटिक था, फिर कमेंट सेक्शन में मर्दों को दिल वाला इमोजी डालते देखा — बहुत दुख हुआ.” एक और यूज़र ने लिखा, “वो दर्द में भी मुस्कुरा रही है, कितनी मजबूर है! शायद दादी अम्मा को कभी प्यार नहीं मिला, अब ईर्ष्या कर रही हैं.”

समाज में प्रसवकालीन सहानुभूति पर गंभीर सवाल

इस वीडियो ने समाज में महिलाओं के प्रति व्यवहार और प्रसवकालीन सहानुभूति की कमी पर गहरी बहस छेड़ दी है. विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को इस समय सबसे ज़्यादा मानसिक और भावनात्मक सहारे की आवश्यकता होती है, न कि अपमान या दबाव की.

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