हैदराबाद के एक डॉक्टर (Hyderabad doctor) ने खुलासा किया कि लगभग 16 साल पहले एमबीबीएस (MBBS) पूरा करने के बाद भी उन्हें 9,000 रुपये का वेतन मिला. अपोलो हॉस्पिटल्स (Apollo Hospitals) के न्यूरोलॉजिस्ट (neurologist) डॉ. सुधीर कुमार (Dr Sudhir Kumar) ट्विटर पर चर्चा कर रहे थे कि कैसे उन्होंने यह सीखने के बाद कि "डॉक्टर का जीवन कम खर्च करने वाला होना चाहिए", केवल उसी के साथ जीना सीखा जो जरूरी था.
न्यूरोलॉजिस्ट ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर बताया, "20 साल पहले मैं भी एक युवा चिकित्सक था. डीएम न्यूरोलॉजी (2004) के 4 साल बाद मेरा वेतन ₹9000/माह था. यह एमबीबीएस में शामिल होने के 16 साल बाद था. सीएमसी वेल्लोर में अपने प्रोफेसरों को देखकर मैंने महसूस किया कि डॉक्टर का जीवन कम खर्च करने वाला होना चाहिए और कम से कम के साथ जीना सीखा."
वह एक ट्वीट का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि "एक युवा चिकित्सक के लिए समाज सेवा करना मुश्किल है जब वह खुद को कुछ बनाने के लिए संघर्ष कर रहा हो".
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने बताया कि उनकी मां को उनके कम वेतन के बारे में जानकर कैसा लगा. डॉ कुमार ने कहा, "मैं उस वेतन से खुश था, हालांकि, मेरी मां को यह देखकर दुख हुआ कि मुझे सरकारी कार्यालय (जहां मेरे पिता काम करते थे) में एक चपरासी के बराबर वेतन मिलता है. उन्होंने मुझे 12 साल तक स्कूली शिक्षा में कड़ी मेहनत करते देखा था, उसके बाद 12 साल तक एमबीबीएस, एमडी और डीएम में. आप एक मां के प्यार और दर्द को समझ सकते हैं!"
उन्होंने यह भी कहा कि जब वह पढ़ाई कर रहे थे तो लंबे समय तक कोई भी उन्हें देखने नहीं आ सकता था. उन्होंने कहा, "17 साल की उम्र में, साक्षात्कार के लिए अकेले बिहार से वेल्लोर (तमिलनाडु) से सेकंड क्लास में ट्रेन से यात्रा की (क्योंकि माता-पिता अपने नाबालिग बेटे के साथ जाना आर्थिक रूप से वहन नहीं कर सकते थे). 5 साल तक घर से कोई भी मुझे देखने नहीं आ सका, प्रवेश लिया और 5 साल से अधिक समय तक सब कुछ अपने दम पर मैनेज किया."
अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए, डॉ कुमार ने एक अन्य ट्वीट में कहा, "एमबीबीएस के दौरान किसी भी समय कपड़ों के केवल दो सेट थे. सीनियर्स से पुराने संस्करण की किताबें उधार लीं (केवल पुस्तकालय में नए संस्करण तक पहुंच सकते थे). बाहर खाना नहीं खाया और न ही रेस्तरां गया या फिल्में देखीं. कभी धूम्रपान या शराब नहीं पी."
शेयर किए जाने के बाद से पोस्ट को 71 हजार बार देखा जा चुका है. कई यूजर्स ने कहा, कि चिकित्सा क्षेत्र को खराब सैलरी दी जाती है.
एक यूजर ने कहा, "यह वास्तव में बहुत कम था. पीएचडी छात्रों को उस समय प्रति माह ₹ 8000 (कर-मुक्त) का वजीफा मिलता था!"
तीसरे यूजर ने कहा, "महंगाई को देखते हुए आज की दुनिया में कम वेतन पर जीवित रहना आसान नहीं है, खासकर तब जब आपके पास देखभाल करने के लिए एक परिवार हो."
चौथे यूजर ने लिखा, "यह सच है. भारत में डॉक्टरों को उचित वेतन नहीं मिल रहा है. लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्वास्थ्य रोगियों को लूटा जाता है. न तो इसमें कभी डॉक्टर का फायदा होता है और न ही रोगी का."
ये Video भी देखें:
Health For All: 7 अप्रैल को ही क्यों मनाते हैं World Health Day
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं