Do You Know: क्या आपने कभी किसी चौक-चौराहे पर लगी घोड़े की मूर्ति को गौर से देखा है? ज्यादातर लोग उस पर सवार राजा या योद्धा को देखते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों की नजर घोड़े की टांगों पर जाती है. दरअसल, इन टांगों में एक राज छिपा होता है...जो बताता है कि उस वीर की मौत कैसे हुई थी.

11वीं सदी से चला आ रहा 'Horse Code'(Horse statue meaning)
यह कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि एक प्राचीन परंपरा है जो 11वीं सदी से चली आ रही है. इसे 'Equestrian Statue Code' कहा जाता है. इस कोड का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी गृहयुद्ध (Civil War) के दौरान हुआ था. जब हजारों सैनिक मारे गए, तो उनकी याद में मूर्तियां बनाई गईं और मूर्तिकारों ने उनके घोड़े की टांगों से मौत का तरीका दर्शाया.

तीन कोड, तीन किस्म की मौतें (equestrian statue code)
- दोनों पैर जमीन पर: योद्धा की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई...बीमारी, बुढ़ापा या दुर्घटना.
 - एक पैर हवा में: योद्धा युद्ध में घायल हुआ, लेकिन मौत बाद में हुई.
 - दोनों पैर हवा में (रियरिंग पोज): योद्धा युद्धभूमि में शहीद हो गया.
 
यह कोड सबसे पहले वाशिंगटन डीसी में जॉर्ज थॉमस की मूर्ति में इस्तेमाल हुआ था. उसके बाद गेटिसबर्ग बैटलफील्ड पर बनी 300 से ज्यादा मूर्तियों में यही नियम अपनाया गया.
भारत में कहां दिखता है यह कोड? (mystery facts India)
- भारत में भी कई मूर्तियों में यह पैटर्न देखने को मिलता है.
 - छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्तियों में ज्यादातर दोनों पैर नीचे होते हैं यानी प्राकृतिक मौत.
 - वहीं, लखनऊ की हुसैनाबाद घड़ी के पास लगी मूर्ति में एक पैर ऊपर है, लेकिन इतिहास कहता है कि नवाब प्राकृतिक मौत मरे थे, यानि हर जगह यह कोड 100% लागू नहीं होता.
 

कभी-कभी टूट जाता है कोड (statue code history)
कई बार यह नियम कलाकार की रचनात्मक आजादी या बजट की कमी की वजह से टूट जाता है, जैसे गेटिसबर्ग में जनरल जॉन रेनॉल्ड्स की मूर्ति के दोनों पैर नीचे हैं, जबकि वे युद्ध में मारे गए थे.
(डिस्क्लेमर: NDTV इस वायरल वीडियो की सटीकता और प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता. इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से वायरल वीडियो पर आधारित है.)
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