धीरूभाई अंबानी की आज 85वीं जयंती है. उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज की नीव रखी थी.
नई दिल्ली:
धीरूभाई अंबानी की आज 85वीं जयंती है. उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज की नीव रखी थी. उनका जन्म 28 दिसंबर 1933 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ जिले में हुआ था. उनका पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था. उनका बचपन काफी संघर्ष के बीच बीता. न उनके पास कोई बैंक बेलेंस था और न ही कोई पिता की संपत्ति. उनके पिता स्कूल टीचर थे. जिनके देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी संभाली और धीरे-धीरे टाटा और बिरला के बीच खड़ा किया.
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उनकी सक्सेस स्टोरी काफी इंस्पिरेश्नल है. उनके आदर्शों पर चलते हुए मुकेश अंबानी भी एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन चुके हैं. उनकी जयंती के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनका करोड़पति बनने का सफर जो वाकई इंस्पिरेश्नल है.
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ऐसे हुई करियर की शुरुआत
परिवार की आर्थिक तंगी के बाद धीरूभाई को जिम्मेदारी लेना पड़ा. हाईस्कूल के बाद उनको पढ़ाई भी छोड़नी पड़ गई. Times Of India की खबर के मुताबिक, वो हर शनिवार और रविवार को गिरनार पर्वत के पास तीर्थयात्रियों को चाट-पकौड़ी बेचा करते थे. उन्होंने अपनी पहली जॉब यमन के एडेन शहर में की.
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1949 में वो काबोटा नाम की शिप में काम किया करते थे. 1958 में वो 50 हजार रुपये लेकर भारत लौटे और मसालों का छोटा-मोटा काम शुरू किया. जिसके बाद उन्होंने रिलायंस कंपनी खोलकर कपड़ा ट्रेडिंग कंपनी खोली. जिसके बाद वो नहीं रुके और कंपनी को आगे बढ़ाते चले गए.
बेटों को पढ़ाया विदेश में
धीरूभाई अंबानी ने भले ही पूरी शिक्षा न ग्रहण की हो लेकिन उन्होंने अपने दो बेटे- मुकेश और अनिल को पढ़ाया. उनकी पढ़ाई यूएस में कराई. जिसके बाद दोनों भारत लौटे तो रिलायंस इंडस्ट्रीज में जुड़ गए और पिता की हर तरह से मदद की. नतीजा ये रहा कि 6 जुलाई 2002 को जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी. यमन में उनकी पहली सैलरी 200 रुपये थी. लेकिन रिस्क लेकर उन्होंने करोड़पति बनने का सफर तय किया.
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