प्रतीकात्मक तस्वीर
कोपनहैगन:
बचपन से हम सुनते आए हैं कि मेहनत का फल मीठा होता है लेकिन डेनमार्क में कैमरून से आए इस छात्र के लिए मामला उल्टा ही पड़ गया। 30 साल के इंजीनियरिंग छात्र मारियस यौबी, सरकारी आदेश के तहत डेनमार्क छोड़कर अपने घर चले गए क्योंकि वह पार्ट-टाइम काम करने के निर्देशों का पालन नहीं कर पाए और उन्होंने निर्धारित घंटों से ज्यादा काम कर लिया।
गौरतलब है कि युरोपीय देशों में डेनमार्क को अपनी सख्त प्रवासी नीतियों के लिए जाना जाता है और इस देश की सरकार ने हाल ही में अपने नियमों में कुछ ऐसी कड़ाई दिखाई है ताकि विदेशी वहां हमेशा के लिए न बस जाएं। मारियस भी डेनमार्क में अपनी पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम क्लीनर का काम करते थे और कभी कभी उनके काम करने के घंटे निर्धारित 15 घंटे प्रति हफ्ते से ज्यादा हो जाते थे। उनकी ज्यादा मेहनत डेनमार्क की नीतियों के खिलाफ थी और इसलिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
हालांकि मारियस की युनिवर्सिटी इस फैसले से खुश नहीं थी और उन्होंने अप्रवासी सेवा विभाग को इस बारे में चिट्ठी भी लिखी थी। कॉपी में लिखा गया था कि मारियस यौबी एक बहुत ही काबिल छात्र हैं। अगर एजेंसी अपना फैसला बदल सके तो अच्छा होगा वरना यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा। चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि देश के कानून की इज्जत की जानी चाहिए लेकिन इस मामले में सज़ा, अपराध के मुताबिक नहीं दी गई।
'मेरी मेहनत बेकार गई'
वहीं सरकार की तरफ से अधिकारी ने कहा है कि फैसला, नीतियों के हिसाब से ही लिया गया है। वहीं यौबी को अपनी डिग्री हासिल करने के लिए अभी थीसिस लिखना बाकी है और इसके अलावा उन्हें एक दानिश कंपनी के साथ इंटर्नशिप भी करनी हगोी जो कि उन्होंने अभी तक नहीं की है। जाने से पहले दानिश रेडियो से बात करते हुए यौबी ने कहा कि वह बहुत दुखी और हताश हैं कि उनकी मेहनत बेकार गई। उन्होंने कहा 'यह साढ़े चार साल तो धुएं में उड़ गए। मैंने यहां डेनमार्क में काफी कुछ बनाया, दोस्त बनाए। परिवार बनाया जिसे अब मैं छोड़कर जा रहा हूं।'
हालांकि इन सबके बावजूद यौबी को उम्मीद है कि वह डेनमार्क वापिस आएंगे और अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरी करेंगे। मुझे उम्मीद है कि मैं वापिस आऊंगा। लेकिन पहले मैं घर जाकर इंतजार करूंगा। उम्मीद है सब अच्छा होगा।
गौरतलब है कि युरोपीय देशों में डेनमार्क को अपनी सख्त प्रवासी नीतियों के लिए जाना जाता है और इस देश की सरकार ने हाल ही में अपने नियमों में कुछ ऐसी कड़ाई दिखाई है ताकि विदेशी वहां हमेशा के लिए न बस जाएं। मारियस भी डेनमार्क में अपनी पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम क्लीनर का काम करते थे और कभी कभी उनके काम करने के घंटे निर्धारित 15 घंटे प्रति हफ्ते से ज्यादा हो जाते थे। उनकी ज्यादा मेहनत डेनमार्क की नीतियों के खिलाफ थी और इसलिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
हालांकि मारियस की युनिवर्सिटी इस फैसले से खुश नहीं थी और उन्होंने अप्रवासी सेवा विभाग को इस बारे में चिट्ठी भी लिखी थी। कॉपी में लिखा गया था कि मारियस यौबी एक बहुत ही काबिल छात्र हैं। अगर एजेंसी अपना फैसला बदल सके तो अच्छा होगा वरना यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा। चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि देश के कानून की इज्जत की जानी चाहिए लेकिन इस मामले में सज़ा, अपराध के मुताबिक नहीं दी गई।
'मेरी मेहनत बेकार गई'
वहीं सरकार की तरफ से अधिकारी ने कहा है कि फैसला, नीतियों के हिसाब से ही लिया गया है। वहीं यौबी को अपनी डिग्री हासिल करने के लिए अभी थीसिस लिखना बाकी है और इसके अलावा उन्हें एक दानिश कंपनी के साथ इंटर्नशिप भी करनी हगोी जो कि उन्होंने अभी तक नहीं की है। जाने से पहले दानिश रेडियो से बात करते हुए यौबी ने कहा कि वह बहुत दुखी और हताश हैं कि उनकी मेहनत बेकार गई। उन्होंने कहा 'यह साढ़े चार साल तो धुएं में उड़ गए। मैंने यहां डेनमार्क में काफी कुछ बनाया, दोस्त बनाए। परिवार बनाया जिसे अब मैं छोड़कर जा रहा हूं।'
हालांकि इन सबके बावजूद यौबी को उम्मीद है कि वह डेनमार्क वापिस आएंगे और अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरी करेंगे। मुझे उम्मीद है कि मैं वापिस आऊंगा। लेकिन पहले मैं घर जाकर इंतजार करूंगा। उम्मीद है सब अच्छा होगा।
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