छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में मौजूद मोहतरा गांव के निवासी मगरमच्छ 'गंगाराम' की मौत से दुखी हैं. गंगाराम ग्रामीणों का तकरीबन सौ वर्ष से 'मित्र' था. मित्र ऐसा कि बच्चे भी तालाब में उसके करीब तैर लेते थे. गांव के सरपंच मोहन साहू बताते हैं, ‘‘गांव के तालाब में पिछले लगभग सौ वर्ष से मगरमच्छ निवास कर रहा था. इस महीने की ग्रामीणों ने मगरमच्छ को तालाब में अचेत देखा तब उसे बाहर निकाल गया. बाहर निकालने के दौरान जानकारी मिली कि मगरमच्छ की मृत्यु हो गई है. बाद में इसकी सूचना वन विभाग को दी गई.''
साहू ने बताया, ‘‘ग्रामीणों का मगरमच्छ से गहरा लगाव हो गया था. मगरमच्छ ने दो तीन बार करीब के अन्य गांव में जाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार उसे वापस लाया जाता था. यह गहरा लगाव का ही असर है कि गंगाराम की मौत के दिन गांव के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला.''
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उन्होंने बताया कि लगभग 500 ग्रामीण मगरमच्छ की शव यात्रा में शामिल हुए थे और पूरे सम्मान के साथ उसे तालाब के किनारे दफनाया गया. सरपंच ने बताया कि ग्रामीण गंगाराम का स्मारक बनाने की तैयारी कर रहे हैं और जल्द ही एक मंदिर बनाया जाएगा जहां लोग पूजा कर सकें.
बेमेतरा में वन विभाग के उप मंडल अधिकारी आर के सिन्हा ने बताया कि विभाग को मगरमच्छ की मौत की जानकारी मिली तब वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी घटनास्थल पर पहुंच गए. विभाग ने शव का पोस्टमार्टम कराया था. शव को ग्रामीणों को सौंपा गया था क्योंकि वह उसका अंतिम संस्कार करना चाहते थे.
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सिन्हा ने बताया कि मगरमच्छ की आयु लगभग 130 वर्ष की थी तथा उसकी मौत स्वाभाविक थी. गंगाराम पूर्ण विकसित नर मगरमच्छ था. उसका वजन 250 किलोग्राम था और उसकी लंबाई 3.40 मीटर थी. अधिकारी ने कहा कि मगरमच्छ मांसाहारी जीव होता है. लेकिन इसके बावजूद तालाब में स्नान करने के दौरान उसने किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया. यही कारण है कि उसकी मौत ने लोगों को दुखी किया है. ग्रामीणों और मगरमच्छ के बीच यह दोस्ती सह अस्तित्व का एक बड़ा उदाहरण है.
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