महाराष्ट्र से मैनचेस्टर पहुंची ये पुरानी लोहे की कुर्सी, वहां के रेस्टोरेंट में आई नज़र, जानें क्या है पूरी कहानी...

लेले ने कुर्सी का एक वीडियो पोस्ट किया जो उन्हें मैनचेस्टर के अल्ट्रिनचैम में टहलते हुए नज़र आ गई थी. उन्हें ये लोहे की कुर्सी एक रेस्तरां में रखी हुई दिखाई दी और कुर्सी के पीछे 'बालू लोखंडे, सावलज' शब्द लिखे हुए थे.

महाराष्ट्र से मैनचेस्टर पहुंची ये पुरानी लोहे की कुर्सी, वहां के रेस्टोरेंट में आई नज़र, जानें क्या है पूरी कहानी...

महाराष्ट्र से मैनचेस्टर पहुंची ये पुरानी लोहे की कुर्सी, वहां के रेस्टोरेंट में आई नज़र

इंटरनेट पर सामने आने वाली कुछ अजीबोगरीब कहानियां कई बार हमको हैरान कर देती हैं. एक लोहे की कुर्सी (Iron Chair) की कहानी जो महाराष्ट्र (Maharashtra) से ब्रिटेन (Britain) के मैनचेस्टर (Manchester) पहुंच गई, कुछ ऐसी ही है. इंस्टाग्राम पर सुनंदन लेले द्वारा शेयर किया गया एक वीडियो अब सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से वायरल हो रहा है और लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिर यह हुआ कैसे ? ज़ाहिर सी बात है एक पुरानी लोहे की कुर्सी जो महाराष्ट्र से ब्रिटेन पहुंच जाए तो किसी को भी हैरानी होगी. आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी...

लेले ने कुर्सी का एक वीडियो पोस्ट किया जो उन्हें मैनचेस्टर के अल्ट्रिनचैम में टहलते हुए नज़र आ गई थी. उन्हें ये लोहे की कुर्सी एक रेस्तरां में रखी हुई दिखाई दी और कुर्सी के पीछे 'बालू लोखंडे, सावलज' शब्द लिखे हुए थे. वीडियो में लेले ने मराठी में आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे एक कुर्सी ने 7000 किमी से ज्यादा दूरी वाल लंबा सफर तय किया होगा.

देखें Video:

इस दिलचस्प खोज को देखकर हर कोई हैरान है. जबकि कुछ ने कहा, कि कुर्सी के वहां तक पहुंचने के लिए स्क्रैप सामग्री का भारतीय बाजार जिम्मेदार है, कई लोगों ने बताया, कि उन्हें मराठी होने पर कितना गर्व है.

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कुर्सी के पीछे जो शब्द लिखे हैं उसके मुताबिक, कुर्सी महाराष्ट्र के साल्वाज के डेकोरेटर बालू लोखंडे की थी. विभिन्न आयोजनों में सस्ती प्लास्टिक की कुर्सियों को पेश किए जाने के बाद, लोखंडे को अपनी पुरानी लोहे की कुर्सियों से छुटकारा पाना था और जिसके लिए उन्हें काफी कम कीमत पर लोहे की कुर्सी को बेचना पड़ा. उसके बाद किसी तरह लंबा सफर तय करते हुए ये कुर्सी मैनचेस्टर की सड़कों पर पहुंच गई.