
प्रतीकात्मक तस्वीर
लंदन:
मनुष्य जाति और पक्षियों में ध्वनि पैदा करने के लिए बिल्कुल भिन्न अंग होते हैं, लेकिन एक ताजा शोध में पता चला है कि मानव और पक्षी ध्वनि उत्पन्न करने के लिए एक ही बॉडी सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं। मानव जाति आवाज निकालने, बोलने या गाना गाने के लिए मायोइलास्टिक एरोडायनेमिक थ्योरी का उपयोग करते हैं, जिसे एमईएडी क्रियाविधि भी कहा जाता है।
साउदर्न डेनमार्क विश्वविद्यालय के शोधविज्ञानी कोएन एलीमेन्स के मुताबिक, "पक्षी ध्वनि उच्चारण के लिए मानव के समान ही एमईएडी क्रियाविधि अपनाते हैं। यहां तक कि धरती पर विचरण करने वाले सभी कशेरूकी प्राणी भी एमईएडी तकनीक के सहारे ही अपने कंठ से ध्वनि निकालते हैं।"
मानव की कंठ नली में फेफड़ों से होकर जाने वाली हवा वोकल कॉर्ड (स्वर तंत्रिका) को छूकर गुजरती है, जिससे स्वर तंत्रिका में कंपन उत्पन्न होता है। प्रत्येक कंपन के साथ गला हवा के प्रवाह को रोकने और शुरू करने के साथ खुलता व बंद होता रहता है, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पक्षी कंठ नली (लैरिंक्स) से ध्वनि उत्पन्न नहीं करते हैं, बल्कि वे ध्वनि उत्पन्न करने के लिए सीरिंक्स का उपयोग करते हैं, जो मांसपेशियों की कई परतों के नीचे होता है, इसलिए इसका अध्ययन काफी जटिल माना जाता है।
वैज्ञानिकों ने पांच एवियन समूह के छह भिन्न प्रजातियों के पक्षियों का अध्ययन किया। इसमें सबसे छोटा पक्षी 'जेब्रा फिंच' और सबसे बड़ा पक्षी 'ऑस्ट्रिच' भी शामिल था। इस अध्ययन में पता चला कि सभी पक्षी ध्वनि उत्पन्न करने के लिए मानव की तरह ही एमईएडी क्रियाविधि अपनाते हैं।
साउदर्न डेनमार्क विश्वविद्यालय के शोधविज्ञानी कोएन एलीमेन्स के मुताबिक, "पक्षी ध्वनि उच्चारण के लिए मानव के समान ही एमईएडी क्रियाविधि अपनाते हैं। यहां तक कि धरती पर विचरण करने वाले सभी कशेरूकी प्राणी भी एमईएडी तकनीक के सहारे ही अपने कंठ से ध्वनि निकालते हैं।"
मानव की कंठ नली में फेफड़ों से होकर जाने वाली हवा वोकल कॉर्ड (स्वर तंत्रिका) को छूकर गुजरती है, जिससे स्वर तंत्रिका में कंपन उत्पन्न होता है। प्रत्येक कंपन के साथ गला हवा के प्रवाह को रोकने और शुरू करने के साथ खुलता व बंद होता रहता है, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पक्षी कंठ नली (लैरिंक्स) से ध्वनि उत्पन्न नहीं करते हैं, बल्कि वे ध्वनि उत्पन्न करने के लिए सीरिंक्स का उपयोग करते हैं, जो मांसपेशियों की कई परतों के नीचे होता है, इसलिए इसका अध्ययन काफी जटिल माना जाता है।
वैज्ञानिकों ने पांच एवियन समूह के छह भिन्न प्रजातियों के पक्षियों का अध्ययन किया। इसमें सबसे छोटा पक्षी 'जेब्रा फिंच' और सबसे बड़ा पक्षी 'ऑस्ट्रिच' भी शामिल था। इस अध्ययन में पता चला कि सभी पक्षी ध्वनि उत्पन्न करने के लिए मानव की तरह ही एमईएडी क्रियाविधि अपनाते हैं।
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