- सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में सेंगर की उम्रकैद की सजा पर दिल्ली हाई कोर्ट के निलंबन आदेश को रद्द किया
- कोर्ट ने HC के फैसले पर सवाल उठाते हुए IPC की धारा 376(2)(i) के तहत दोषसिद्धि का परीक्षण करने की जरूरत बताई है
- सुप्रीम कोर्ट ने POCSO एक्ट में विधायक को लोक सेवक से बाहर रखने वाली व्याख्या पर आपत्ति जताई
उन्नाव रेप केस में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व BJP नेता कुलदीप सेंगर जेल से रिहा नहीं होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें सेंगर की सजा को सस्पेंड कर दिया गया था. चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन सदस्यीय बेंच में इस मामले पर फैसला सुनाया. सुनवाई के दौरान CBI की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया और इसके लिए कई दलीलें दीं. सुनवाई में सेंगर की सजा का पैमाना तय करने वाले POCSO और लोक सेवक की परिभाषा पर भी बहस हुई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में वकील अंजले पटेल और पूजा शिल्पकार ने भी अलग से याचिकाएं दायर की थीं. सेंगर को बड़ा झटका देने वाले सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पीड़िता की बहन भावुक नजर आईं. NDTV से बातचीत में उन्होंने कहा कि जब तक पूरा न्याय नहीं मिल जाता है, उनकी लड़ाई जारी रहेगी. सोमवार सुबह 11 बजे शुरू हुई इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने काफी सख्त टिप्पणियां भी कीं. जानिए कोर्ट में क्या दलीलें दी गईं और जजों ने क्या कहा...

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उन्नाव रेप पीड़िता
सुप्रीम फैसले की बड़ी बातें

उन्नाव रेप केस पर सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट के बाहर काफी गहमागमी थी.
- सेंगर की रिहाई पर रोक का फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा के निलंबन के आदेश जारी होने के बाद आमतौर पर उनमें हस्तक्षेप नहीं किया जाता है, लेकिन कोर्ट ने यहां एक विशेष स्थिति पर गौर किया है, क्योंकि दोषी (कुलदीप सेंगर) एक अन्य मामले में अभी भी जेल में है.
- सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जाहिर की कि क्या हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(i) के तहत दोषसिद्धि का परीक्षण किया भी है या नहीं.
- POCSO और 'लोक सेवक' की व्याख्या: सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो (POCSO) के तहत उस व्याख्या पर सवाल उठाया, जिसके परिणामस्वरूप एक कॉन्स्टेबल को तो 'लोक सेवक' माना जा सकता है, लेकिन एक विधायक (MLA) को इससे बाहर रखा जा सकता है.
- सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि पॉक्सो में किए गए संशोधन सजा को बढ़ाने से संबंधित हैं, न कि किसी नए अपराध को बनाने से.
- सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए जोर दिया कि बेहतरीन जजों से भी गलतियां हो सकती हैं और न्यायिक समीक्षा (Judicial scrutiny) कानूनी प्रणाली का ही एक हिस्सा है.
- कोर्ट ने न्यायपालिका को सार्वजनिक रूप से डराने-धमकाने और कानूनी लड़ाइयों को सड़कों पर ले जाने के खिलाफ चेतावनी दी.
सुप्रीम कोर्ट में क्या दलीलें चलीं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (CBI की तरफ से): यह दहलाने वाला केस है. ट्रायल कोर्ट ने सेंगर की दोषसिद्धि के दो पुख्ता आधार दिए थे. सेंगर को संदेह से परे दोषी ठहराया गया था. IPC की धारा 376 और POCSO ऐक्ट की धारा 5 और 6 के तहत आरोप तय किए गए थे.
SG तुषार मेहता: इसमें कोई संदेह नहीं कि सेंगर को रेप मामले में दोषी ठहराया गया है. ( SG मेहता ने इस दौरान ट्रायल कोर्ट के उसे आदेश को भी पढ़कर सुनाया जिसमें सेंगर को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट ने POCSO के सेक्शन 5 के तहत भी सेंगर को दोषी माना था)
SG तुषार मेहता: एक रिकॉर्ड में है कि बच्ची 16 साल से कम उम्र की थी. वारदात के वक्त वह 15 साल 10 महीने की थी.
SG तुषार मेहता: IPC की धारा 376 के दो हिस्से हैं. सेंगर को रेप के तहत दोषी ठहराया गया है जो कि 375 है. ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा रेप जो प्रभावशाली स्थिति में हो तो कम से कम सजा 20 साल या फिर उम्रकैद तक बढ़ सकती है.
CJI: आप कहते हैं कि यह 376(2)(i) के तहत आता है. यह मानते हुए कि पीड़ित नाबालिग नहीं है, तब भी 376 की न्यूनतम सजा लागू होगी.
SG तुषार मेहता: हाई कोर्ट ने गलत फैसला दिया है कि तब के MLA सेक्शन 5(c) POCSO के तहत "सरकारी कर्मचारी" नहीं हैं. (मेहता ने उस फैसले का हवाला दिया जिसमें SC ने फैसला सुनाया था कि जो भी पब्लिक ऑफिस में है, जैसे MP या MLA, उसे सरकारी कर्मचारी माना जाएगा)
CJI ने SG मेहता से पूछा: क्या आपका तर्क यह है कि अगर पीड़ित नाबालिग है तो आरोपी सरकारी कर्मचारी है या नहीं, यह बात मायने नहीं रखती?
SG तुषार मेहता: हाई कोर्ट ने यह कहकर गलती की कि जब अपराध हुआ था, तब विधायक सेंगर एक पब्लिक सर्वेंट नहीं थे, जिन पर ज्यादा गंभीर 'गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट' के लिए मुकदमा चलाया जाए.
SG तुषार मेहता: POCSO प्रावधान कहता है कि जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल, पब्लिक सर्वेंट या शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों के कर्मचारियों जैसे खास व्यक्तियों द्वारा पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट किया जाता है, तो अपराध गंभीर हो जाता है, जिससे कड़ी सजा मिलती है.
SG तुषार मेहता: सेंगर बहुत पावरफुल विधायक थे. इस एक्ट में पब्लिक सर्वेंट को डिफाइन नहीं किया गया है. यह रेफरेंस से दी गई परिभाषा है, IPC के तहत जो भी डिफाइन किया गया है, वही माना जाएगा.
SG तुषार मेहता: किसी भी कानून में इस्तेमाल होने वाले हर शब्द को मैकेनिकल तरीके से परिभाषा नहीं मिलती. संदर्भ के हिसाब से पब्लिक सर्वेंट का मतलब कोई भी ऐसा व्यक्ति होगा जो पावरफुल स्थिति में हो.
CJI: तो आप कह रहे हैं कि पब्लिक सर्वेंट को इस तरह से देखा जाना चाहिए कि जब तक संदर्भ कुछ और न कहे, पब्लिक सर्वेंट एक व्यापक शब्द है. मामले के तथ्यों को देखते हुए पब्लिक सर्वेंट वह होगा जो पावरफुल स्थिति में हो.
हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था
हाई कोर्ट ने उन्नाव बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सेंगर की सजा 23 दिसंबर को निलंबित कर दी थी. अदालत ने कहा था कि वह पहले ही सात साल पांच महीने जेल में बिता चुके हैं. हाई कोर्ट ने बलात्कार मामले में दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील लंबित रहने तक सेंगर की सजा पर रोक लगाई थी. सेंगर ने दिसंबर 2019 के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी.
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