Shaheed Diwas: शहीद-ए-आजम भगत सिंह भगत सिंह (Bhagat Singh), Shivaram Rajguru (शिवराम राजगुरु) और Sukhdev Thapar सुखदेव थापर को आज फांसी दी गई थी. 23 मार्च 1931 के दिन इन तीनों देशभक्तों ने हसंते-हसंते लाहौर जेल में बलिदान दिया था. इनके इस बलिदान की याद में ही शहीद दिवस (Shahid Diwas) मनाया जाता है. जिस दिन भगत सिंह (Bhagat Singh) और बाकी शहीदों को फांसी दी गई थी, उस दिन लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं थीं. फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई. तीनों ने एक स्वर में कहा कि हम आपस में गले मिलना चाहते हैं...पढ़ें भगत सिंह का आखिरी खत
यहां जानिए भगत सिंह के जुड़ी और भी खास बातें...
1. भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिह का जन्म पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर, 1907 को पिता किशन सिंह और माता विद्यावती के घर हुआ था.
2. 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली.
3. वीर सेनानी भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है.
4. भगत सिंह का 'इंकलाब जिंदाबाद' नारा काफी प्रसिद्ध हुआ. वो हर भाषण और लेख में इसका जिक्र करते थे.
5. आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में 'सांडर्स-वध' और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी.
शहीद दिवस : फांसी के फंदे को चूमने से पहले भगत सिंह ने अपने आखिरी खत में क्या लिखा था
6. परिजनों ने जब उनकी शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए. अपने पीछे जो खत छोड़ गए उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है.
7. वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों-सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिह के नाम का खौफ पैदा कर दिया.
8. भगत सिंह को पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसंद नहीं आती थी. 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ. अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों की नीतियों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फोड़कर अपनी बात सरकार के सामने रखी. दोनों चाहते तो भाग सकते थे, लेकिन भारत के निडर पुत्रों ने हंसत-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया.
9. असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद जब हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे तो उनको गहरी निराशा हुई. जिसके बाद 1930 में लाहौर सेंट्रल जेल में उन्होंने अपना प्रसिद्ध निबंध ''मैं नास्तिक क्यों हूं'' (व्हाई एम एन एथीस्ट) लिखा.
10. लाहौर षड्यंत्र केस में उनको राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख नियत हुई. लेकिन नियत तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी गई. कहा जाता है कि जब उनको फांसी दी गई तब वहां कोई मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं था जबकि नियमों के मुताबिक ऐसा होना चाहिए था.
Video: शहीद भगत सिंह की शख्सियत से कितने वाकिफ हैं हम?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं