नई दिल्ली:
हिंदू मिथक जानवरों की प्रतीकात्मकता से भरे पड़े हैं. शिव का चित्र कभी भी बासूकी के बगैर पूरा नहीं होता, वो सांप जो उनके गले में लिपटा रहता है. गणेश, वह देवता जिनका मस्तक हाथी का है, हमेशा क्रौंच के साथ रहते हैं वो दिव्य संगीतकार जो चूहा बन गया था. इन जैसी कई कहानियों से चित्रकार बिपाशा सेनगुप्ता ने एक संग्रह तैयार किया है जिसको वर्ल्ड वाइड फंड के सहयोग से न्यू दिल्ली एग आर्ट स्टूडियो ने प्रदर्शनी के माध्यम से पेश किया है.
ये गहरे सांस्कृतिक संबंधों को दिखाता है जो मनुष्य, पशुओं के साथ पारंपरिक रूप से साझा करते हैं. सेनगुप्ता का काम एग आर्ट स्टूडियो में 'द लायर' शीर्षक से चल रही एक प्रदर्शनी का हिस्सा है जिसमें 29 कलाकारों ने मानव और प्रकृति के बीच के संबंध को दर्ज करने का प्रयास किया है.
सेनगुप्ता चाय, सिंदूर और कोयला की धूल जैसी पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का इस्तेमाल करती हैं. उनके चित्र भी प्रदर्शनी हॉल में दीवार पर बोरियों से बनी गैर जरूरी सामग्री से लटकाई गई है. इस संबंध में 'द लायर' की क्यूरेटर अमृता वर्मा कहती हैं, “परंपरा को समकालीनता से मिलाते हुए सेनगुप्ता के चित्र लोगों के लिये वन्य जीवन को अधिक अंतरंग बनाने का प्रयास हैं...यह प्रदर्शनी को किस्सागोई का पहलू प्रदान करती है.”
सेन्गुप्ता के हर कृति के साथ एक हाथ से लिखा नोट है. ''मैं अपने जड़ों पर फ़ोकस करना चाहती हूं, लेकिन साथ ही पर्यावरण सरंक्षण की जरूरत पर जागरुकता भी फैलाना चाहती हूं.” इस संबंध में वह कहती हैं,'' इसलिये मैंने सोचा कि सबसे बेहतर तरीका है किस्सागोई के जरिये अपनी बात कहना. मैंने कुछ दिलचस्प तथ्यों, जटिल घटनाओं और उन कथाओं को शामिल किया है कि ये जीव कैसे उत्प्पन हुए और विलुप्त हुए.”
सेनगुप्ता की पहले की कलाकृतियों में भी पर्यावरण संरक्षण के सवाल को उभारा गया है विशेषकर संकटग्रस्त प्रवाल भित्तियों को. वह कहती हैं, ''मैंने अपने कलाकर्म को मिथकीय और जादूई एवं प्राणियोनि के साथ सजाया है जो आपको रोकती हैं और आपसे सवाल करती हैं.''
ये गहरे सांस्कृतिक संबंधों को दिखाता है जो मनुष्य, पशुओं के साथ पारंपरिक रूप से साझा करते हैं. सेनगुप्ता का काम एग आर्ट स्टूडियो में 'द लायर' शीर्षक से चल रही एक प्रदर्शनी का हिस्सा है जिसमें 29 कलाकारों ने मानव और प्रकृति के बीच के संबंध को दर्ज करने का प्रयास किया है.
सेनगुप्ता चाय, सिंदूर और कोयला की धूल जैसी पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का इस्तेमाल करती हैं. उनके चित्र भी प्रदर्शनी हॉल में दीवार पर बोरियों से बनी गैर जरूरी सामग्री से लटकाई गई है. इस संबंध में 'द लायर' की क्यूरेटर अमृता वर्मा कहती हैं, “परंपरा को समकालीनता से मिलाते हुए सेनगुप्ता के चित्र लोगों के लिये वन्य जीवन को अधिक अंतरंग बनाने का प्रयास हैं...यह प्रदर्शनी को किस्सागोई का पहलू प्रदान करती है.”
सेन्गुप्ता के हर कृति के साथ एक हाथ से लिखा नोट है. ''मैं अपने जड़ों पर फ़ोकस करना चाहती हूं, लेकिन साथ ही पर्यावरण सरंक्षण की जरूरत पर जागरुकता भी फैलाना चाहती हूं.” इस संबंध में वह कहती हैं,'' इसलिये मैंने सोचा कि सबसे बेहतर तरीका है किस्सागोई के जरिये अपनी बात कहना. मैंने कुछ दिलचस्प तथ्यों, जटिल घटनाओं और उन कथाओं को शामिल किया है कि ये जीव कैसे उत्प्पन हुए और विलुप्त हुए.”
सेनगुप्ता की पहले की कलाकृतियों में भी पर्यावरण संरक्षण के सवाल को उभारा गया है विशेषकर संकटग्रस्त प्रवाल भित्तियों को. वह कहती हैं, ''मैंने अपने कलाकर्म को मिथकीय और जादूई एवं प्राणियोनि के साथ सजाया है जो आपको रोकती हैं और आपसे सवाल करती हैं.''
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