प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
पेरिस:
पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में समझौते का जो ताजा ड्राफ्ट तैयार किया गया है, उसमें भारत की उस मांग को जगह मिलती दिख रही है, जिसमें विकसित देशों से थोड़ी सरल और सादी जीवनशैली अपनाने की अपील की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में 30 नवंबर को दिए अपने भाषण में इसका जिक्र किया था। विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली की वजह से बिजली की कई गुना खपत हो रही है और उसकी वजह से पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है।
यहां पेरिस में गुरुवार रात को समझौते का जो नया मसौदा तैयार किया गया है, उसमें सोलहवें पन्ने पर इस बात को लिखा गया है कि सभी देश सस्टेनबल लाइफ स्टाइल ( कम से कम विलासितापूर्ण जीवन) की कोशिश करेंगे, जिसके तहत उपभोग की चीजों की खपत और उनका उत्पादन कम किया जाएगा। वहीं विकसित देश इसके लिए सबसे पहले कदम उठाएंगे।
वास्तव में विकसित देशों में लोग रोजमर्रा के हर काम के लिए इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक उपकरणों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं, जो पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि इसमें बिजली की काफी खपत होती है। विकासशील देशों की मांग रही है कि अमेरिका जैसे देश विलासिता कम करें, कारों का इस्तेमाल घटाएं और बिजली और पानी की प्रति व्यक्ति खपत कम करें।
एक्शन एड के अंतरराष्ट्रीय पॉलिसी मैनेजर हरजीत सिंह का कहना है कि हर अमेरिकी निजी ज़रूरतों के लिए एक भारतीय के मुकाबले 34 गुना ज्यादा बिजली की खपत करता है। लीमा में पिछले साल हुई क्लामेट चेंज समिट में जीवनशैली को लेकर ये बातें इतने साफ तरीके से नहीं कही गईं जो अब कही जा रही हैं। और अब अगर समझौते में ये बात कही गई हैं तो ये अच्छा संकेत है। अच्छा होगा कि इस पर सभी देश करनी और कथनी में अंतर न करें।
उद्योगों और वाहनों से हो रहे प्रदूषण की वजह से कार्बन का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है और धरती का तापमान बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए ही पेरिस में ये जद्दोजहद चल रही है। महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जहां पश्चिमी देशों को रहन-सहन को लेकर सलाह दी है, वहीं भारत में भी शहरी आबादी इस पर अमल करना शुरू करे, क्योंकि शहरों को साफ रखने के लिए कारों का इस्तेमाल और बिजली की खपत में रोक नहीं लगी तो जीना मुश्किल हो जाएगा। दिल्ली में इसकी चिंता साफ दिख रही है।
यहां पेरिस में गुरुवार रात को समझौते का जो नया मसौदा तैयार किया गया है, उसमें सोलहवें पन्ने पर इस बात को लिखा गया है कि सभी देश सस्टेनबल लाइफ स्टाइल ( कम से कम विलासितापूर्ण जीवन) की कोशिश करेंगे, जिसके तहत उपभोग की चीजों की खपत और उनका उत्पादन कम किया जाएगा। वहीं विकसित देश इसके लिए सबसे पहले कदम उठाएंगे।
वास्तव में विकसित देशों में लोग रोजमर्रा के हर काम के लिए इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक उपकरणों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं, जो पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि इसमें बिजली की काफी खपत होती है। विकासशील देशों की मांग रही है कि अमेरिका जैसे देश विलासिता कम करें, कारों का इस्तेमाल घटाएं और बिजली और पानी की प्रति व्यक्ति खपत कम करें।
एक्शन एड के अंतरराष्ट्रीय पॉलिसी मैनेजर हरजीत सिंह का कहना है कि हर अमेरिकी निजी ज़रूरतों के लिए एक भारतीय के मुकाबले 34 गुना ज्यादा बिजली की खपत करता है। लीमा में पिछले साल हुई क्लामेट चेंज समिट में जीवनशैली को लेकर ये बातें इतने साफ तरीके से नहीं कही गईं जो अब कही जा रही हैं। और अब अगर समझौते में ये बात कही गई हैं तो ये अच्छा संकेत है। अच्छा होगा कि इस पर सभी देश करनी और कथनी में अंतर न करें।
उद्योगों और वाहनों से हो रहे प्रदूषण की वजह से कार्बन का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है और धरती का तापमान बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए ही पेरिस में ये जद्दोजहद चल रही है। महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जहां पश्चिमी देशों को रहन-सहन को लेकर सलाह दी है, वहीं भारत में भी शहरी आबादी इस पर अमल करना शुरू करे, क्योंकि शहरों को साफ रखने के लिए कारों का इस्तेमाल और बिजली की खपत में रोक नहीं लगी तो जीना मुश्किल हो जाएगा। दिल्ली में इसकी चिंता साफ दिख रही है।
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