- नेपाल में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए, जिसमें 22 लोगों की मौत और संसद में तोड़फोड़ की गई है.
- केपी शर्मा ओली ने विरोध प्रदर्शन के बीच पीएम पद से इस्तीफा दे दिया, चीन की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.
- ओली की चीन यात्रा के बाद मीडिया में उनका विरोध हुआ और चीन समर्थक नीतियों को देश में आलोचना का सामना करना पड़ा.
नेपाल में पिछले 48 घंटों से जो हो रहा है, सबको दिख रहा है लेकिन चीन अभी तक इस पर खामोश है. कुछ ही दिनों पहले बीजिंग में जिस केपी शर्मा ओली का स्वागत शानदार तरीके से हुआ था, आज जब उनकी सरकार में इतना बवाल हो रहा है तो चीन खामोश है. नेपाल में 8 सितंबर से शुरू हुआ जेन-जी के विरोध प्रदर्शन पर चीन की तरफ से कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. ओली ने मंगलवार को बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. प्रदर्शनकारियों ने कई प्रमुख नेताओं के निजी आवासों, राजनीतिक दलों के मुख्यालयों पर हमला किया और संसद में भी तोड़फोड़ की. एक दिन पहले ही प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई में 19 लोगों की मौत हो गई थी. इन प्रदर्शनों में मरने वालों की संख्या अब 22 हो गई है.
अभी तो हुआ था तियानजिन में वेलकम
तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन और द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर चीन की जीत की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित चीनी सैन्य परेड में भाग लेने के लिए चीन की ओली की हाई-प्रोफाइल यात्रा के कुछ दिनों बाद ही उनका पतन हो गया. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने सोमवार को ओली के इस्तीफे और नेपाल में काठमांडू और देश के अन्य हिस्सों में भड़के विरोध प्रदर्शनों की एक बहुत छोटी रिपोर्ट प्रकाशित की. ओली, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बाद किसी दक्षिण एशियाई देश के दूसरे ऐसे नेता हैं जिन्होंने चीन यात्रा के बाद हुए दंगों के बीच इस्तीफा दे दिया.
हसीना पिछले साल 5 अगस्त को अपनी अवामी लीग सरकार के भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर बड़े पैमाने पर छात्र विरोध प्रदर्शनों के बाद देश छोड़कर भाग गई थीं. यह घटना बीजिंग की एक हाई-प्रोफाइल यात्रा से लौटने के कुछ दिनों बाद हुई थी. चीन के लिए, नेपाल की पारंपरिक रूप से भारत-अनुकूल विदेश नीति को नया रूप देने के अपने प्रयासों के लिए बीजिंग समर्थक नेता माने जाने वाले ओली का अपमानजनक इस्तीफा, श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के शासन के पतन की याद दिलाता है.
राजपक्षे की राह पर ओली
महिंदा राजपक्षे के भाई गोटबाया राजपक्षे ने 2022 में अपने परिवार द्वारा वर्षों से जमा किए गए कुशासन और भ्रष्टाचार के कारण देश के दिवालिया होने के खिलाफ बड़े पैमाने पर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों के बाद राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद हुए दंगों का खामियाजा पूरे राजपक्षे परिवार को भुगतना पड़ा. ओली की तरह, महिंदा राजपक्षे, जिन्होंने 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति पद संभाला, ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत भारी चीनी निवेश की अनुमति देकर अपने देश की विदेश नीति को चीन की ओर मोड़ दिया, जिसमें हंबनटोटा बंदरगाह भी शामिल था. इसे चीन ने बाद मेंलोन एक्सचेंज के तौर पर 99 साल की लीज पर हासिल कर लिया.
अपने ही देश में हुई थी अलोचना
ओली ने भारत पर निर्भरता कम करने के लिए, स्थल-रुद्ध नेपाल को आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु चीन के साथ एक ट्रांजिट ट्रीटी पर साइन किए थे. तिब्बत के जरिये से चीन-नेपाल रेलवे प्रोजेक्ट का समर्थन किया है. ओली की हालिया चीन यात्रा की स्वदेश में कड़ी आलोचना हुई क्योंकि उन्होंने जापान, जो नेपाल का एक बड़ा समर्थक और मददगार था, की आपत्तियों के बावजूद वैलेंटाइन डे परेड में भाग लिया. शी जिनपिंग के साथ अपनी बैठक के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI) और वैश्विक सभ्यता पहल (GCI) का समर्थन करने पर भी स्वदेश में तीखी आलोचना हुई.
चीन को खुश करने की कोशिश!
काठमांडू पोस्ट अखबार के एक संपादकीय में ओली की हाल ही में खत्म बीजिंग यात्रा पर टिप्पणी करते हुए कहा गया, 'नेपाल की एक के बाद एक सरकारों ने जीएसआई का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है. जीएसआई एक चीनी सुरक्षा संरचना है जिसके बारे में माना जाता है कि यह वैश्विक अमेरिकी सैन्य प्रभुत्व के प्रतिकार के रूप में उभरी है.' एडीटोरियल में कहा गया है,'नेपाली प्रधानमंत्री ओली चीनियों को खुश करने के लिए हर संभव प्रयास करते दिख रहे हैं, यहां तक कि बीजिंग में उनकी साफ तौर पर जापान-विरोधी परेड में शामिल होने के लिए भी सहमत हो गए हैं. प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में शामिल होने के फैसले के नेपाल के सबसे भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय साझेदारों में से एक, जापान के साथ उसके संबंधों पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.'
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